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राज की बात: यूपी में अपराधी-अधिकारी-सियासत के गठजोड़ पर अब दिल्ली की वक्र दृष्टि, नतीजे आने शुरू

देश के सबसे बड़े सूबे उत्तर प्रदेश में इंसाफ या कार्रवाई जाति को आगे रखकर होती है. चाहे अधिकारी हो या अपराधी उसकी जाति के आधार पर सत्ता की तरफ से उसके प्रति व्यवहार तय होता है.

आंतक और अपराध अधर्म है. लिहाज़ा आतंकवादी और अपराधी का कोई धर्म नहीं होता. क़ानून की नज़र में अपराधी सिर्फ अपराधी होता है. मानवता और नैतिकता भी यही कहती है. मगर सियासत तो वो बला है, जिसमें कहा कुछ जाता है, किया कुछ जाता है और होता कुछ और है.

देश के सबसे बड़े सूबे उत्तर प्रदेश में सियासी विरोधाभास भी उसके आकार के मुताबिक़ ही और राज्यों की तुलना में ज्यादा ही बड़े हैं. एक लाइन में कहें तो -जाति- एक ऐसा अकाट्य सत्य और तथ्य है जिसकी कोई काट नहीं है. इंसाफ या कार्रवाई जाति को आगे रखकर होती है. चाहे अधिकारी हो या अपराधी उसकी जाति के आधार पर सत्ता की तरफ से उसके प्रति व्यवहार तय होता है. कैसे इसका जवाब देखने के लिए और यूपी की सियासत का विद्रूप चेहरा देखने के लिए थोड़ा आगे बढ़ते हैं. मगर इससे पहले आपको एक इशारा कर देते हैं कि अपराधी-अधिकारी-सियासत के इस गठजोड़ पर अब दिल्ली की वक्र दृष्टि पड़ गई है, जिसके नतीजे भी आने शुरू हो गए हैं.

यूपी में सियासत-पुलिस-अपराधी का गठजोड़ होता है

राज की बात में यूपी के इस व्यवहारिक समाजशास्त्र या राजनीतिशास्त्र पर हम बात नहीं करने जा रहे. दरअसल, कैसे सियासत-पुलिस-अपराधी का गठजोड़ होता है. कैसे पूरे सूबे की सियासत इस त्रिकोण से संचालित होती है. साथ ही अपराधियों और अधिकारियों के गठजोड़ पर सियासत कैसे खेलती है, ये भी ख़ासा दिलचस्प है. कभी मुख्तार अंसारी या अतीक अहमद यूपी में सुल्तान बने घूमते थे. उनका आतंक और राज ऐसा था कि मौजूदा योगी सरकार के पूरे घोड़े छोड़ने के बाद भी इनका प्रभाव कम तो हुआ है, लेकिन पूरी तरह से ख़त्म नहीं. आपको याद ही होगा कि इन अपराधियों के प्रति प्रेम दिखाने के कारण एसपी और बीएसपी दोनों को ही सियासी और सामाजिक विरोध का सामना करना पड़ा था.

बीजेपी की प्रचंड जीत के बाद योगी सरकार जब सत्ता में आई तो सबसे ज्यादा सख्ती और तत्परता क़ानून-व्वयस्था को दुरुस्त करने और माफियाओं को ठिकाने लगाने में लगाई गई. ताबड़तोड़ पुलिस एनकाउंटर हुए. तमाम दुर्दांत अपराधियों का मान-मर्दन भी हुआ. मगर इस सख्ती के बीच भी कुछ लोग न सिर्फ छूट गए, बल्कि वो पहले से ज्यादा मज़बूत हो गए. सवाल है कि ये हुआ कैसे? तो राज की बात यहीं छिपी है कि कैसे अपराधी-अधिकारी गठजोड़ और सत्ता का सरपरस्त होना इनको प्रभावी बनाता चला गया. फ़िलहाल जब ये मामला दिल्ली की नज़र में आ गया है तो फ़ौरन कार्रवाई हुई है और साथ ही बीजेपी-सरकार और ब्यूरोक्रेसी में खलबली मची है और कुछ खिंची लकीरें जो हल्की दिखाई पड़ रही थीं, वो गहरा गई हैं.

घटना जहां से इस घमासान की शुरुआत हुई, पहले उस तारीख़ पर चलते हैं. वो तारीख़ है 6 जनवरी 2021 की शाम 8:30 बजे राजधानी लखनऊ के विभूति खंड इलाके में हुआ शूटआउट और मुख्तार गैंग के शार्प शूटर व पूर्व ब्लाक प्रमुख अजीत सिंह की हत्या भले ही गैंगवार की कहानी से शुरू हुई हो लेकिन इस हत्याकांड की कहानी अब सियासी हलकों में भी तपिश पैदा करने वाली है. गैंगवार से अपराधियों का राजनीतिकरण और फ़िर अफसरीकरण की तरफ यह मामला बढ़ गया है. हत्याकांड की शुरुआत मुख्तार अंसारी और आजमगढ़ जेल में बंद कुंटू सिंह के गैंगवार से हुई लेकिन अपराधियों की खेमेबाजी अब पुलिस और बीजेपी में खेमेबाज़ी का कारण बन गई है.

लखनऊ पुलिस कमिश्नर और स्पेशल फोर्स के अफसर थे आमने-सामने

कहानी अजीत सिंह हत्याकांड में अपराध और अपराधियों की ही थी लेकिन मामला सियासी गलियारों में तब गूंजने लगा जब दिल्ली से रिमांड पर लाए गए इस हत्याकांड के शूटर, मास्टरमाइंड गिरधारी को लखनऊ पुलिस ने कथित एनकाउंटर में मार गिराया. मामला गैंगवार से पुलिस की पार्टी बंदी में उस वक्त तब्दील हुआ जब लखनऊ पुलिस ने शूटरों को पकड़ने के लिए पूर्व सांसद धनंजय सिंह के गोमती नगर विस्तार स्थित शारदा अपार्टमेंट को जांच के दायरे में लिया. साथ ही इस गैंगवार में घायल शूटर का इलाज करने वाले गोमती नगर के एक डॉक्टर और फिर ऑपरेशन करने वाले सुल्तानपुर के नर्सिंग होम संचालक को रडार पर लिया. लखनऊ पुलिस की जांच के दायरे में आए लखनऊ के डॉक्टर का पूर्व सांसद धनंजय सिंह से सीधा संबंध था व्हाट्सएप कॉल के जरिए धनंजय सिंह लगातार डॉक्टर और शूटर का इलाज कर रहे करा रहे गुर्गे से बात कर रहे थे. बात तब और बिगड़ गई जब लखनऊ पुलिस ने सुल्तानपुर के कद्दावर डॉक्टर पर शिकंजा कसना शुरू किया, जिसने लखनऊ में प्राथमिक उपचार मिलने के बाद शूटर का 2 दिनों तक सुल्तानपुर में अपने अस्पताल में इलाज किया था.

आप भी चौंकेंगे कि डॉक्टर पर शिकंजा कसने पर उत्तर प्रदेश पुलिस में अपराधियों पर शिकंजा कसने वाली स्पेशल टास्क फोर्स के एक आला अधिकारी के साथ-साथ पश्चिमी उत्तर प्रदेश में तैनात एडीजी रैंक के एक अधिकारी तक तिलमिला उठे. मामला इतना बढ़ा कि एक तरफ लखनऊ पुलिस कमिश्नर थे तो दूसरी तरफ स्पेशल फोर्स के अफसर और एडीजी रैंक के अधिकारी. चर्चा तो यहां तक है के पुलिस कमिश्नर ने जांच में मिले सबूतों और अपने ही साथी अधिकारियों की रंगबाजी की पंचायत सीएम योगी के दरबार तक की.

मामला बिगड़ता दिखा तो गिरधारी उर्फ़ डॉक्टर उर्फ़ लोहार बड़े ही नाटकीय ढंग से दिल्ली पुलिस के द्वारा गिरफ्तार हो गया. मांगावान गिरधारी को वारंट बी पर ले जाने के लिए बनारस पुलिस ने कोर्ट में अर्जी लगाई तो कोरोना के नाम पर गिरधारी ने बनारस पुलिस के साथ जाने से मना कर दिया. लखनऊ पुलिस ने अपने केस में वारंट बी लिया, रिमांड मिली और जब गिरधारी रिमांड पर आया तो रिमांड खत्म होने के महज एक दिन पहले पुलिस हिरासत से भागने के प्रयास में मारा गया. गिरधारी का एनकाउंटर ही उत्तर प्रदेश की सियासत में उठ रहे हो उबाल और बवाल का कारण बना.

दिल्ली पुलिस के इस एनकाउंटर पर आपत्ति नहीं जताई गई

गिरधारी के एनकाउंटर पर सवाल उठाए जाने लगे जो परिवार उसकी लाश लेने को तैयार नहीं था उसकी तरफ से कोर्ट में एनकाउंटर करने वाली पुलिस टीम पर एफआईआर की अर्जी दी जाने लगी इस सब के पीछे पूर्व सांसद धनंजय सिंह और सांसद के पीछे अफसरों का नाम आने लगा. लेकिन गिरधारी का एनकाउंटर अपने आप में कई सवाल छोड़ गया. लखनऊ पुलिस ने जिस गिरधारी को एनकाउंटर में मार गिराया वह दिल्ली पुलिस का मुलजिम था. अदालती लिखा पढ़ी से यूपी आया था. दिल्ली पुलिस यानी भारत सरकार का गृह मंत्रालय. ख़ास बात ये कि दिल्ली पुलिस की तरफ से इस एनकाउंटर पर कोई आपत्ति भी नहीं जताई गई. मायने समझना मुश्किल नहीं है कि दिल्ली ने अपने तरीक़े से सूबे के सियासी सूरमाओं और ब्यूरोक्रेसी को सीधा संदेश दे दिया है कि गठजोड़ खुल चुका है और उसे ध्वस्त करना होगा.

इसे आप ऐसे समझिये कि जो पूर्व सांसद धनंजय सिंह पूरे 4 साल की योगी आदित्यनाथ सरकार में पावर सेंटर का पावर हाउस हुआ करता था. जिसका नाम मुन्ना बजरंगी हत्याकांड में आया तो बाल बांका नहीं हुआ.जिसने सरकार के ही ड्रीम प्रोजेक्ट को पूरा करने वाली कंपनी से रंगदारी मांगने की हिमाकत की, तो भी कोई नजीर पेश करने वाली कार्रवाई नहीं हुई. वैसे तो बहुत छोटे-छोटे मामलों में यूपी शासन गैंगस्टर और रासुका जैसी कार्रवाई कर रहा था. मगर जौनपुर में नमामि गंगे प्रोजेक्ट का काम करने वाली कंपनी से रंगदारी वसूलने की शिकायत पर जब दिल्ली का हस्तक्षेप हुआ तो भी गिरफ्तारी हुई, लेकिन धनंजय पर रासुका तो दूर गैंगस्टर भी नहीं लगा.

अब उस पूर्व सांसद का गिरधारी के एनकाउंटर के साथ ही हाल खराब होने लगा. लखनऊ पुलिस ने धनंजय सिंह पर इनाम घोषित कर दिया तलाश में लखनऊ से लेकर जौनपुर तक छापेमारी शुरू कर दी. धनंजय सिंह ने माहौल बिगड़ते ही पुराने मामले में जमानत खारिज करवा कर सरेंडर कर दिया और वह भी प्रयागराज जाकर. अब यह बात तो उत्तर प्रदेश की सियासत का जर्रा जर्रा जानता है कि अजीत सिंह की हत्या किसने करवाई? एनकाउंटर में मारे गया गिरधारी किसका आदमी था? लखनऊ पुलिस ने गिरधारी को एनकाउंटर में मारकर क्या संदेश दिया? और फिर धनंजय सिंह का खुद ही सरेंडर कर जेल जाना.

यूपी में पूरी तरह से घमासान मचा हुआ है

यानी दिख भले ही सब कुछ सामान्य रहा हो लेकिन अंदर खाने ठीक तो कुछ भी नहीं. राज की बात तो यही है की अंदर खाने पुलिस से लेकर सरकारों में तक तलवारें खींची है. धनंजय सिंह का हाल तो उस तोते की तरह हो गया जिसमें जादूगर की जान है और तोता अब सैयाद के कब्जे में है. इसको लेकर यूपी में पूरी तरह से घमासान मचा हुआ है. मुख्यमंत्री पर पार्टी के एक ख़ास तबके के नेता धनंजय को बचाने के लिए लाबिंग कर रहे हैं, वहीं पार्टी में तमाम नेता कार्रवाई के लिए अब मुखर हो रहे हैं. कुछ ख़ास अपराधियों के प्रति पुलिस का नरम रवैया अब मुद्दा बन रहा है.

वैसे मौजूदा कार्रवाई के बाद प्रदेश में अपराधियों पर कार्रवाई में थोड़ी निरपेक्षता का भरोसा ज़रूर बना है. मगर राज की बात ये है कि सूबे में प्रभावशाली वर्ग इसे टालने में जुटा है. दिल्ली के मौजूदा निज़ाम को जो जानते हैं वह भी मानते हैं कि नियंत्रण से बाहर वो किसी को बर्दाश्त नहीं करते. ऐसे में धनंजय सिंह के सहारे ही सही दिल्ली सरकार ने योगी सरकार पर अपरूप शिकंजा तो कर ही दिया है क्योंकि धनंजय सिंह सिर्फ पूर्व सांसद नहीं बल्कि उत्तर प्रदेश की स्पेशल फोर्स का सबसे खास और प्रदेश में हुए तमाम बड़े घटनाक्रमों का सूत्रधार भी रहा है.

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