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RCEP पर अब भी बरकरार हैं भारत की कई चिंताएं, पीएम के दौरे से पहले समाधान तलाशने की कोशिशें जारी

पीएम मोदी 2-4 नवंबर तक आसियान शिखर बैठक में शरीक होने के लिए थाईलैंड जाएंगे. इस बैठक के दौरान प्रधानमंत्री आरसीईपी पर भी शिखर बैठक में शरीक होंगे.

नई दिल्ली: प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी इस सप्ताहांत 35वें आसियान शिखर सम्मेलन के लिए थाईलैंड रवाना हो रहे हैं और इस बैठक का एक अहम एजेंडा है क्षेत्रीय आर्थिक सहयोग समझौता यानी आरसीईपी. हालांकि पीएम के इस दौरे से पहले भारत सरकार ने साफ किया है कि दुनिया के सबसे बड़े एफटीए यानी आरसीईपी को लेकर चल रही वार्ताओं को लेकर अब भी उसकी कई हैं जिनके समाधान का उसे इंतजार है.

विदेश मंत्रालय अधिकारियों ने बताया कि पीएम मोदी 2-4 नवंबर तक आसियान शिखर बैठक में शरीक होने के लिए थाईलैंड जाएंगे. इस बैठक के दौरान प्रधानमंत्री आरसीईपी पर भी शिखर बैठक में शरीक होंगे. हालांकि मुक्त व्यापार समझौते में भारत के शामिल होने के बारे में पूछे जाने पर विदेश मंत्रालय में सचिव पूर्व विजय ठाकुर सिंह ने कहा कि इस बारे में चल रही वार्ताएं अंतिम दौर में हैं. हालांकि अभी भी ऐसे कई अहम मुद्दे हैं जो भारत की प्राथमिकताओं और लोगों की आजीविका से जुड़े हैं जिनका समाधान जरूरी है. एक संतुलित मुक्त व्यापार समझौते के लिए भी यह आवश्यक है.

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ऐसे में माना जा रहा है कि आरसीईपी के मामले पर अंतिम फैसला प्रधानमंत्री आसियान शिखर सम्मेलन में वार्ताओं के बाद लेंगे. पीएम 4 नवंबर को आसियान देशों औऱ अन्य सहयोगी देशों के नेताओं के साथ आरसीईपी पर बैठक में शरीक होंगे.

इस पहले आरसीईपी पर सरकार के उच्च स्तरीय सलाहकार समूह की रिपोर्ट पेश किए जाने के बाद वाणिज्य मंत्री पीयूष गोयल में भी कहा था कि सरकार इसमें किसी तरह की जल्दबाजी में नहीं है. भारत के हितों को ध्यान में रखकर ही फैसला किया जाएगा.

महत्वपूर्ण है कि आसियान कुनबे के 10 मुल्क और भारत, चीन, जापान, कोरिया, ऑस्ट्रेलिया व न्यूजीलैंड समेत कुल 16 मुल्क इस आरसीईपी में शामिल हैं. इस मुक्त व्यापार समझौते को लेकर बीते करीब 7 सालों से चल रही हैं और हाल में चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के बीच तमिलनाडु के महाबलिपुरम में हुए अनौपचारिक वार्ता के दौरान में इस समझौते का मुद्दा प्रमुखता से उभरा था. इस समझौते को लेकर भारत की चिंताएं हैं क्योंकि इसके लागू होने के बाद बहुत से उत्पादों पर आयात शुल्क बहुत कम हो जाएगा. ऐसे में खास तौर पर कृषि और डेयरी क्षेत्र में सस्ते उत्पादों के डिंपिंग का खतरा है जो भारत के घरेलू उत्पादकों के लिए प्रतिस्पर्धा को बढ़ा सकता है.

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ध्यान रहे कि आसियान मुल्क पहले ही भारत के साथ एक मुक्त व्यापार समझौते में शामिल हैं. हालांकि जानकारों के मुताबिक इस समझौते के लागू होने के करीब एक दशक बाद भी कारोबार में घाटे का पलड़ा भारत तरफ ज्यादा है. वहीं यदि भारत के कुल व्यापार घाटे यानी 189 अरब डॉलर का 57 फीसद प्रस्तावित आरसीईपी में शामिल 16 मुल्कों से आता है.

इस मामले पर जहां एक तरफ आसियान मुल्क औऱ चीन समेत अधिकतर देश जल्द समझौते की पैरवी कर रहें है. वहीं भारत की फिक्र इस समझौते के घरेलू बाजार में होने वाले असर को लेकर है. विपक्ष ही नहीं सत्तारूढ़ बीजेपी के साथ संघ परिवार में शामिल स्वदेशी जागरण मंच जैसे संगठन भारत के आरसीईपी में शामिल होने का खुलकर विरोध कर चुके हैं.

हालांकि पूर्व राजनयिक अनिल वाधवा के मुताबिक जैसे जानकार कहते हैं कि आरसीईपी को पूरी तरह नजरअंदाज करना न तो समझदारी है और न ही सही नीति. भारत को बिना किसी समय-सीमा दबाव में आए इस समझौते में अपने हितों को शामिल करवाते हुए मोलभाव करना चाहिए. भारत एक बड़ी अर्थव्यवस्था है और आरसीईपी को पूरी तरह नजरअंदाज करने पर कारोबारी लिहाज से अलग-थलग पड़ने का भी खतरा है.

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पहले से आर्थिक मंदी के बुखार और सुस्ती के दौर से गुजर रही भारतीय अर्थव्यवस्था के मौजूदा सूरते-हाल को देखते हुए सरकार के लिए फौरन आरसीईपी पर कोई फैसला लेना कठिना है. ऐसे में भारत की कोशिश होगी कि 2022 में इस समझौते के लागू होने की प्रस्तावित सीमा से पहले भारतीय अर्थव्यवस्था और उद्योग जगत को ताकत का टॉनिक दिया जाए. ताकि आरसीईपी के लागू होने पर वो प्रतिस्पर्धा में मुकाबला कर सके.

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