करगिल युद्ध के दौरान दुश्मनों के अधिक ऊंचाई पर होने की वजह से भारतीय फौज के लिए यह लड़ाई आसान नहीं थी. इस जंग के दौरान सबसे मुश्किल था टाइगर हिल पर दोबारा अपना नियंत्रण पाना और पाकिस्तान घुसपैठिए को मार भगाना. चोटी पर चढ़कर दुश्मन को भगाना ही सबसे पहला लक्ष्य था. परंतु वहां पर पहुंचने से पहले तोलोलिंग से पाकिस्तान घुसपैठिए को भगाने की योजना बनाई गई और इसकी कमान मेजर राजेश अधिकारी को दी गई थी.


14 मई 1999 को मेजर राजेश अधिकारी तीन 10 सदस्यीय टीमों का केन्द्रीय नेतृत्व कर रहे थे, जो 16 हजार फीट की ऊंचाई पर तोलोलिंग में बने बंकर को कब्जा करने की कोशिश कर रहे थे. इस दौरान दुश्मनों की तरफ से उन पर मशीनगनों ने सीधा हमला किया गया और मेजर अधिकारी ने तुरंत अपनी रॉकट लांचर टुकड़ी को दुश्मनों को उलझाए रखने का निर्देश दिया और दुश्मन के दो जवानों को मार गिराया.


मेजर राजेश अधिकारी ने इसके बाद बेहद धैर्य से काम लेते हुए मीडियम मशीनगन टुकड़ी को एक चट्टान के पीछे मार्चा लेने और दुश्मनों को उलझाए रखने का निर्देश दिया. इसके साथ ही, वह इंच दर इंच बढ़ते रहे.




इस दौरान दुश्मनों की भीषण गोलीबारी में वह गंभीर रूप से घायल हो गए. इसके बावजूद वह अपने जवानों को निर्देश देते रहे और मोर्चे से हटने से मना कर दिया. राजेश अधिकारी ने दुश्मन के दूसरे बंकर पर हमला कर वहां पर काबिज सैनिकों को ढेर कर दिया. मेजर अधिकारी ने तोलोलिंग ऑपरेशन में दो बंकरों पर कब्जा किया था, जो बाद में प्वाइंट जीतने में बेहद मददगार रहा. लेकिन दुश्मनों की गोलियों से बुरी तरह घायल मेजर अधिकारी ने 15 मई को दम तोड़ दिया. करगिल युद्ध में शहीद होने वाले वह दूसरे आर्मी ऑफिसर थे.


उनका शव 13 दिनों के बाद बरामद हुआ था. उनकी जेब में पत्नी के तरफ से लिखी गई एक चिट्ठी थी, जिसे उन्होंने पढ़ी नहीं थी. राजेश अधिकारी को इस बहादुरी के लिए उन्हें मरणोपरांत महावीर चक्र से सम्मानित किया गया था.


मेजर राजेश सिंह अधिकारी का जन्म 25 दिसंबर साल 1970 को नैनीताल में हुआ और उनकी शुरुआती पढ़ाई सेंट जोसेफ़स कॉलेज से 1987 में हुई. माध्यमिक शिक्षा उन्होंने गवर्मेंट इंटर कॉलेज नैनीताल से की और उसके बाद बीएससी कुमाऊँ यूनिवर्सिटी, नैनीताल से किया था.


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