बाहुबली मुख्तार अंसारी का गुरुवार रात निधन हो गया. उन्हें बांदा जेल में दिल का दौरा पड़ने के बाद अस्पताल लाया गया था. जहां उन्होंने आखिरी सांस ली. मुख्तार अंसारी को क्रिकेट बहुत पसंद था. स्कूली दिनों में वह क्रिकेटर बनना चाहता था. लेकिन कॉलेज पहुंचने के बाद क्रिकेट का खेल पीछे छूट गया और वह माफिया फिर बाहुबली बन गया. आइए जानते हैं कि कैसे अंडरवर्ल्ड तक पहुंचा मुख्तार? 


मुख्तार का जन्म स्वतंत्रता सेनानी परिवार में हुआ था. वह बचपन में पढ़ाई लिखाई में ठीक ही था. उसे क्रिकेट का बहुत शौक था. उसके पिता सुभानुल्लाह अंसारी भी क्रिकेट के खिलाड़ी थे. उन्हीं से विरासत में मुख्तार को ये खेल मिला था. वे दिल्ली में कॉलेज में क्रिकेट टीम के कैप्टन थे. लेकिन समय ऐसा बदला कि हाथ में बैट के बजाय मुख्तार के हाथ बंदूक आ गई. 


मुख्तार के परिवार के लोग बताते हैं कि उसने अपने बहुत दोस्त साधू सिंह की दुश्मनियों को कब अपना बना लिया और उसके ऊपर अपराधी का ठप्पा लग गया, यह वह भी नहीं जान पाया. मुख्तार और साधू सिंह ने ठेकों की लूट शुरू की. इस बीच 1988 में मंडी परिषद की ठेकेदारी को लेकर ठेकेदार सच्चिदानंद राय की हत्या हुई. इस केस में मुख्तार अंसारी का नाम आया. इसके कुछ दिनों बाद साधू सिंह की हत्या हो गई, इसमें नाम आया एक और बाहुबली बृजेश सिंह का. इसके बाद पूर्वांचल में गैंगवार का सिलसिला शुरू हो गया. 


इन केसों में आया मुख्तार का नाम

1991 में पुलिस ने मुख्तार को हिरासत में लिया. लेकिन 2 पुलिसवालों को गोली लगी और वह फरार हो गया. इसके साथ साथ मुख्तार क्षेत्र में रॉबिनहुड की छवि बनाई. इसके बाद मुख्तार क्षेत्र के विवादों को अपने घर पर सुलझाने लगा. धीरे धीरे मुख्तार ने राजनीतिक रसूख बढ़ाना शुरू कर दिया. मुख्तार बीजेपी को छोड़कर यूपी के बाकी सभी दलों में रहा. 


मुख्तार ने 1996 का चुनाव बीएसपी के टिकट पर मऊ सीट से लड़ा और विधायक बन गया. 1997 में विश्व हिंदू परिषद के राष्ट्रीय कोषाध्यक्ष नंद किशोर रुंगटा की हत्या में मुख्तार का नाम आया. इसके बाद मायावती ने मुख्तार को पार्टी से निकाल दिया. 


सियासी रसूख भी रखा कायम

इसके बाद मुख्तार 1996, 2002, 2007, 2012 और 2017 में मऊ से जीत हासिल की. इनमें से 3 चुनाव उसने जेल से लड़ें. 2009 में मुख्तार बसपा के टिकट पर वाराणसी से लोकसभा चुनाव लड़ा, लेकिन वे मुरली मनोहर जोशी के खिलाफ 17 हजार वोट से हार गए. इसके बाद मायावती ने मुख्तार को बाहर का रास्ता दिखा दिया. इसके बाद मुख्तार ने अपने भाई के साथ मिलकर कौमी एकता दल बनाया.