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Meghalaya Politics: क्या मेघालय में TMC बन पाएगी विकल्प, कोनराड संगमा और BJP के लिए कैसी राह, कांग्रेस के लिए अस्तित्व की लड़ाई, जानें हर समीकरण

Meghalaya Election 2023: आगामी विधानसभा चुनाव को देखते हुए मेघालय में हर दल के नेता पाला बदलने में लगे हुए हैं. टिकट बंटवारे के बाद इसमें और तेज़ी आने की संभावना है.

Meghalaya Assembly Election 2023: त्रिपुरा (Tripura) और नागालैंड (Nagaland) के साथ ही मेघालय में भी अगले साल के फरवरी में चुनाव होने की संभावना है.  मेघालय (Meghalaya)विधानसभा का कार्यकाल 15 मार्च 20 23 को खत्म हो रहा है.  मेघालय विधानसभा में 60 सीट है. इनमें से 55 सीट अनुसूचित जनजाति (Scheduled Tribes) के लिए आरक्षित है. मेघालय की 85 फीसदी से ज्यादा आबादी जनजातियों की है. 

इस बार के चुनाव में एनपीपी (NPP) नेता और मुख्यमंत्री कोनराड संगमा (Conrad Sangma) के सामने सत्ता में बरकरार रहने की चुनौती है. वहीं बीजेपी को मेघालय में जनाधार बढ़ाने के लिए बड़ी मशक्कत करनी पड़ रही है. मेघालय के लोगों के इस बार टीएमसी के तौर पर नया विकल्प मिल सकता है. वहीं कांग्रेस के सामने अस्तित्व बचाने की लड़ाई है.  

मेघालय में 2023 में 11वीं बार विधानसभा चुनाव होगा. इस बार का मेघालय विधानसभा चुनाव बड़ा ही दिलचस्प होने वाला है. पिछले पांच साल में यहां की राजनीति में बड़ी उथल-पुथल देखने को मिली है. मेघालय में इस दौरान कई सारे अजीबोगरीब मोड़ आए हैं. इनके कुछ नमूनों पर नजर डालते हैं:

  1.  कांग्रेस पिछली बार के चुनाव में सबसे बड़ी पार्टी बनी थी, लेकिन 2023  में होने वाले चुनाव से पहले एक तरह से उसका सफाया हो गया है. व्यावहारिक तौर से अभी उसके पास एक भी विधायक नहीं. 
  2.  2018 के चुनाव में एक भी सीट नहीं जीतने वाली ममता बनर्जी की तृणमूल कांग्रेस (TMC) अचानक मेघालय विधानसभा में मुख्य विपक्षी पार्टी बन गई.  
  3.  चुनाव नतीजों के बाद  मार्च 2018 में सरकार बनी तो उस वक्त  मुकुल संगमा विधानसभा में कांग्रेस विधायक के तौर पर नेता प्रतिपक्ष बने. लेकिन फिलहाल वे तृणमूल कांग्रेस के विधायक के तौर पर नेता प्रतिपक्ष हैं.
  4. मेघालय में 2018 चुनाव नतीजों के बाद एनपीपी की अगुवाई में गठबंधन सरकार बनी. इस गठबंधन में एनपीपी के साथ यूनाइटेड डेमोक्रेटिक पार्टी (UDP), पीपुल्स डेमोक्रेटिक फ्रंट (PDF), हिल्स स्टेट पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी (HSPDP) और बीजेपी शामिल हैं. पांच साल तक सरकार में रहने के बावजूद 2023 में होने वाले चुनाव में ये सभी एक-दूसरे के खिलाफ ताल ठोकते मिलेंगे. 
  5. जिसके साथ बीजेपी पिछले 5 साल से सरकार में हिस्सेदारी निभा रही है, अब उसी पार्टी के खिलाफ आग उगल रही है. बीजेपी, एनपीपी के नेता और मुख्यमंत्री कोनराड संगमा पर धोखा देने का आरोप लगा रही है. बीजेपी का कहना है कि कोनराड संगमा राज्य में प्रशासन संभालने में नाकाम साबित हुए है. जबकि खुद बीजेपी उसी सरकार का हिस्सा रही है. 

ये सारे वो बिन्दु हैं, जिसकी वजह से मेघालय के आगामी विधानसभा चुनाव में आम लोगों के साथ ही राजनीतिक विश्लेषकों की दिलचस्पी भी बढ़ गई है.  इस बार मेघालय के सियासी मुकाबले में टीएमसी के कूदने से एनपीपी और बीजेपी के लिए मुश्किलें बढ़ गई हैं. हालांकि कांग्रेस भी चुनाव मैदान में है, लेकिन उसके लिए ज्यादा संभावना दिख नहीं रही है. 

बीजेपी के लिए साख का सवाल

 2014 के बाद से ही बीजेपी का लक्ष्य रहा है कि पूर्वोत्तर के हर राज्य की सरकार में उसकी भागीदारी हो. इस रणनीति के साथ राजनीतिक महत्वाकांक्षा को साधने की कला का ही नतीजा है कि 2018 में सिर्फ दो सीट जीतने के बावजूद बीजेपी मेघालय की सरकार में शामिल है. पूर्वोत्तर के 7 राज्यों में से 4 में बीजेपी अपने बलबूते और दो राज्यों में गठबंधन सरकार का हिस्सा है. इनमें से असम, अरुणाचल प्रदेश, त्रिपुरा, मणिपुर में अपने बलबूते बीजेपी सरकार चला रही है. वहीं मेघालय और नागालैंड (Nagaland) में गठबंधन सरकार में शामिल है. बीजेपी चाहती है कि जहां वो गठबंधन सरकार का हिस्सा है, वहां आगामी चुनाव में खुद के बलबूते सरकार बनाने में कामयाबी हासिल कर सके. इस नजरिए से वो नागालैंड के साथ ही मेघालय में भी अपना जनाधार बढ़ाना चाहती है. 

पूर्वोत्तर राज्यों पर पीएम मोदी का फोकस

पूर्वोत्तर राज्यों में तेजी से विकास प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की प्राथमिकताओं में शामिल रहा है. आजाद भारत के इतिहास में नरेंद्र मोदी ऐसे पहले प्रधानमंत्री हैं, जिन्होंने 50 से ज्यादा बार पूर्वोत्तर राज्यों का दौरा किया है. बीते 8 सालों से पूर्वोत्तर पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का जिस तरह से फोकस है, उससे पता चलता है कि  मेघालय, त्रिपुरा, नागालैंड जैसे छोटे राज्यों की राजनीति भी बीजेपी के लिए कितनी अहमियत रखती है. 2014 के बाद हुए सभी विधानसभा चुनावों में पीएम मोदी ही पूर्वोत्तर राज्यों में भी बीजेपी के लिए सबसे बड़े चेहरे रहे हैं. 

बीजेपी मेघालय में अकेले लड़ेगी चुनाव

बीजेपी इस बार मेघालय की सभी 60 सीटों पर चुनाव लडेंगी. बीजेपी हाईकमान ने पार्टी प्रदेश इकाई को सभी सीटों के लिए उम्मीदवार की सूची बनाने को कहा है. पिछले कुछ महीनों से बीजेपी और एनपीपी के बीच रिश्तों में दरार दिख रहा है.  गठबंधन सरकार की अगुवाई कर रही एनपीपी और गठबंधन में दूसरी सबसे बड़ी पार्टी UDPने भी सभी सीटों पर अपने उम्मीदवार उतारने का एलान किया है.  बीजेपी के लिए अच्छी बात ये हैं कि 14 दिसंबर को एनएनपी के दो और टीएमसी के एक विधायक उसमें शामिल हो गए हैं. इसके साथ ही एक निर्दलीय विधायक भी बीजेपी में शामिल हुए हैं. इसका फायदा बीजेपी को हो सकता है. मेघालय की सियासत में बड़ा नाम बनने के लिए बीजेपी अपना वोटबैंक बढ़ाने में लगी हुई है. बीजेपी को अहसास है कि  जितना ज्यादा से ज्यादा सीटें जीतेगी, आगामी सरकार में उसकी हिस्सेदारी की उतनी ही संभावना बनेगी. 

बीजेपी के लिए मुश्किल भरा रहा है सफर

बीजेपी पहली बार मेघालय के चुनाव में 1993 में कूदी थी. बीजेपी ने 20 उम्मीदवार उतारे थे, लेकिन उसे किसी सीट पर जीत नहीं मिली. इसके बाद 1998 में हुए चुनाव में पहली बार बीजेपी मेघालय विधानसभा में पहुंचने में सफल रही. बीजेपी के 28 उम्मीदवारों में से तीन जीतने में कामयाब रहे. 2003 में बीजेपी दो सीटों पर जीती. इसके अगले चुनाव में उसे एक ही सीट से संतोष करना पड़ा. 2013 में बीजेपी फिर से शून्य पर पहुंच गई. इन आंकड़ों से साफ है कि मेघालय में बीजेपी को अभी लंबा रास्ता तय करना है.  हालांकि मेघालय बीजेपी के प्रदेश अध्यक्ष अर्नेस्ट मावरी दावा कर रहे हैं  कि आगामी चुनाव में बीजेपी अपने दम पर सरकार बनाएगी.

गारो हील्स में मजबूत हो पाएगी बीजेपी 

Garo Hills के पांच जिलों में कुल 24 विधानसभा सीट है. बीजेपी 2018 के चुनाव में बीजेपी गारो इलाके में कम से कम 5 से 6 सीट जीतने को लेकर आश्वस्त थी. खासी (Khasi Hills) में भी बीजेपी को बहुत उम्मीद थी. हालांकि नतीजों ने से बीजेपी को निराशा मिली. बीजेपी गारो इलाके में कोई भी सीट जीतने में कामयाब नहीं हुई. खासी के इलाकों में बीजेपी को सिर्फ दो सीट से ही संतोष करना पड़ा. राज्य में इसके अलावा बीजेपी कोई और सीट नहीं जीत पाई. इस बार एनपीपी के विधायक बेनेडिक मारक और  फेरलिन संगमा के साथ  बाघमारा से निर्दलीय विधायक सैमुअल एम संगमा  के बीजेपी में शामिल होने से पार्टी को गारो हील्स में मदद मिल सकती है. बीजेपी की नजर इन इलाकों की 15 सीटों पर ज्यादा है. इस बार  इन इलाकों में  ज्यादा से ज्यादा सीट जीतकर बीजेपी मेघालय में बड़ी राजनीतिक ताकत बनने की मंशा रखती है. 

कोनराड संगमा के पास सत्ता बरकरार रखने की चुनौती

नेशनल पीपुल्स पार्टी (NPP)मेघालय की राजनीति में बड़ा नाम बन चुकी है. इसकी स्थापना कोनराड संगमा के पिता पी ए संगमा ने की थी. उन्होंने जुलाई 2012 में एनसीपी से निकाले जाने के बाद इस पार्टी को बनाया था. एक जमाने में पी ए संगमा कांग्रेस के बड़े नेता में शुमार थे. बाद में उन्होंने एनसीपी का दामन थाम लिया था. नेशनल पीपुल्स पार्टी  जून 2019 में राष्ट्रीय पार्टी बन गई थी. पूर्वोत्तर भारत से राष्ट्रीय पार्टी का दर्जा हासिल करने वाली एनपीपी पहली पार्टी है. एनपीपी अध्यक्ष और मुख्यमंत्री कोनराड संगमा पहले ही कह चुके है कि उनकी पार्टी इस बार अकेले चुनाव लड़ेगी. ऐसे भी बीजेपी के साथ उसके रिश्ते बिगड़ते ही गए हैं. जुलाई में बीजेपी मेघालय इकाई के उपाध्यक्ष बर्नार्ड एन मराक की गिरफ्तारी के बाद से हालात और बिगड़े. एनपीपी को असंतुष्ट नेताओं की चुनौतियों से भी निपटना है. हाल ही में उसके दो विधायक पार्टी छोड़कर बीजेपी का दामन थाम चुके हैं. चुनाव नजदीक आने और टिकटों के बंटवारे के बाद कई और नेताओं के बागी रुख से कोनराड संगमा के सत्ता में बने रहने की उम्मीदों पर पानी फिर सकता है.  

2023 का चुनाव कांग्रेस के लिए अस्तित्व की लड़ाई

कांग्रेस के लिए मेघालय का आगामी चुनाव अस्तित्व की लड़ाई बन चुकी है. एक वक्त में कांग्रेस का पूर्वोत्तर के राज्यों में एकछत्र राज था, लेकिन धीरे-धीरे वो यहां के हर राज्य की सत्ता से बाहर होते गई. 2041 में केंद्र में बीजेपी की सरकार बनने के बाद से कांग्रेस पूर्वोत्तर में तेजी से सिमटते गई है. कहने को मेघालय में कांग्रेस के फिलहाल 5 विधायक है, लेकिन पार्टी हाईकमान ने इन पांचों विधायकों को कोनराड संगमा सरकार को समर्थन देने के कारण पिछले साल ही निलंबित कर दिया है. ये भी तय है कि ये बचे पांच विधायक भी अगला चुनाव दूसरे ही पार्टी के टिकट पर लड़ेंगे.  इस तरह से कांग्रेस के पास कोई विधायक नहीं बचा है. 2018 में 21 सीट जीतकर कांग्रेस सबसे बड़ी पार्टी बनी थी. हालांकि वो सत्ता को बरकरार रखने में नाकाम रही थी. पिछले साल नवंबर में कांग्रेस के 12 सदस्य ममता बनर्जी की टीएमसी में शामिल हो गए. हद तो ये हो गई कि कांग्रेस के दिग्गज नेता और नेता प्रतिपक्ष मुकुल संगमा भी इनमें शामिल थे. कांग्रेस के कई नेताओं की शिकायत है कि पार्टी ने मेघालय में अपनी दिशा खो दी है और लोगों का भरोसा खोते जा रही है. इसको मुद्दा बनाकर कांग्रेस की बड़ी नेता और मौजूदा विधायक एंपरीन लिंगदोह ने  19 दिसंबर को पार्टी छोड़ने की घोषणा की.  

क्या मेघालय के लिए नया विकल्प बनेगी टीएमसी

2018 तक टीएमसी का मेघालय को कोई जनाधार नहीं था. नवंबर 2021 में कांग्रेस के मुकुल संगमा समेत 12 विधायकों के टीएमसी में शामिल होने से ममता बनर्जी की पार्टी रातों रात मेघालय की मुख्य विपक्षी पार्टी बन गई. इस घटना के बाद अभी हालात ऐसे है कि ममता बनर्जी की पार्टी आगामी चुनाव में मेघालय की सभी सीटों पर चुनाव लड़ेगी. ममता बनर्जी इस बार मेघालय में टीएमसी की सरकार बनने का दंभ भर रही है. मुकुल संगमा 2010 से 2018 तक मेघालय के मुख्यमंत्री रह चुके हैं. उनका अपना जनाधार रहा है, जिसकी बदौलत इस बार टीएमसी को यकीन है कि वो मेघालय की जनता के लिए नया विकल्प बनेगी. मुकुल संगमा की गारो हील्स के इलाके में जबरदस्त पकड़ है.  पिछले 6 महीने में टीएमसी ने मेघालय में एक लाख से ज्यादा सदस्यों को जोड़ा है. टीएमसी के पक्ष में एक और बात जा रही है कि एनपीपी और सरकार में उसके सभी सहयोगी अलग-अलग चुनाव लड़ रहे हैं. इसके अलावा मुख्यमंत्री कोनराड संगमा के खिलाफ एंटी इनकंबेंसी का फायदा भी टीएमसी को मिल सकता है. 

यूनाइटेड डेमोक्रेटिक पार्टी के प्रदर्शन पर भी नज़र

यूनाइटेड डेमोक्रेटिक पार्टी  फिलहाल कोनराड संगमा की अगुवाई वाली सरकार का हिस्सा है. मेघालय की राजनीति में कई बार यूडीपी सरकार बनाने में  किंगमेकर साबित हुई है. 2018 के चुनाव में भी उसे 6 सीट पर जीत मिली थी और उसने कोनराड संगमा का साथ देकर मेघालय में एनपीपी की अगुवाई में गठबंधन सरकार बनाने का रास्ता साफ किया था. 2013 में भी 8 सीट जीतने के कारण यूडीपी किंगमेकर की भूमिका में थी. उसके सहयोग से ही कांग्रेस नेता मुकुल संगमा मुख्यमंत्री बने थे. उससे पहले 2008 में यूनाइटेड डेमोक्रेटिक पार्टी को 11 सीटों पर जीत मिली. बाद में एनसीपी के साथ  मिलकर यूनाइटेड डेमोक्रेटिक पार्टी प्रमुख दोनकुपर रॉय ने सरकार बनाई. यूडीपी 2023 में अकेले दम पर चुनाव लड़ने की तैयारियों में जुटी है. उसके अध्यक्ष मेटबाह लिंगदोह का दावा है कि उनकी पार्टी इस बार पहले से बेहतर प्रदर्शन करेगी. फिलहाल  मेटबाह लिंगदोह मेघालय विधानसभा के स्पीकर हैं. यूडीपी ने 32 उम्मीदवारों की सूची भी जारी कर दी है.

2018 में कांग्रेस बनी थी सबसे बड़ी पार्टी

2018 में हुए चुनाव में कांग्रेस सबसे ज्यादा 21 सीटें जीती थी. उसे सबसे ज्यादा 28.5% वोट भी मिले थे. एनपीपी को 20.60 प्रतिशत वोट के साथ 19 सीटों पर जीत मिली थी. बीजेपी को 9.63% वोट के साथ 2 सीट जीतने में कामयाब रही. और पीडीएएफ को 4 सीट पर जीत मिली.  UDP को 6 और HSPDP को 2 सीट पर जीत मिली.  चुनाव नतीजों के बाद बहुमत का आंकड़ा हासिल करने के लिए मेघालय डेमोक्रेटिक एलायंस (MDA) के नाम से गठबंधन बना. इसमें एनपीपी, यूडीपी, बीजेपी, पीडीएफ और HSPDP शामिल हुए और कोनराड संगमा पहली बार मुख्यमंत्री बने. 

2013 में एनपीपी पहली बार लड़ी थी चुनाव

2013 में हुए विधानसभा में कांग्रेस करीब 35 फीसदी वोट के साथ 29 सीट जीतकर सबसे बड़ी पार्टी बनी थी. यूनाइटेड डेमोक्रेटिक पार्टी को 8 सीटें मिली थी. पहली बार मेघालय चुनाव लड़ रही एनपीपी को दो सीटें मिली. HSPDP को 4 सीटों पर जीत मिली. 13 सीटों पर निर्दलीय प्रत्याशी जीते थे. कांग्रेस और यूनाइटेड डेमोक्रेटिक पार्टी ने मिलकर सरकार बनाई और कांग्रेस नेता मुकुल संगमा पहली बार मुख्यमंत्री बने. 

2008 चुनाव के वक्त एनसीपी थी बड़ी ताकत

2008 के विधानसभा चुनाव में मुख्य मुकाबला कांग्रेस, यूनाइटेड डेमोक्रेटिक पार्टी, और एनसीपी के बीच हुआ था. उस वक्त पीए संगमा की अगुवाई में एनसीपी मेघालय में एक बड़ी  ताकत थी. चुनाव से पहले तक यूनाइटेड डेमोक्रेटिक पार्टी मेघालय में कांग्रेस की अगुवाई वाली सरकार में शामिल थी. ठीक चुनाव को मौके पर उसने कांग्रेस से नाता तोड़कर उसके खिलाफ चुनाव लड़ी. कांग्रेस 25 सीट जीतकर सबसे बड़ी पार्टी बनी. एनसीपी को 14 और यूनाइटेड डेमोक्रेटिक पार्टी को 11 सीटों पर जीत मिली. बीजेपी सिर्फ एक सीट जीतने में सफल रही.  किसी को स्पष्ट बहुमत नहीं मिला. एनसीपी और यूनाइटेड डेमोक्रेटिक पार्टी ने चुनाव बाद गठबंधन कर सरकार बनाने का दावा किया. हालांकि राज्यपाल ने बड़ी पार्टी होने के नाते कांग्रेस को सरकार बनाने का मौका दिया. कांग्रेस नेता डीडी लपांग मुख्यमंत्री बने, लेकिन 9 दिन में ही बहुमत नहीं जुटाने की वजह से उन्हें इस्तीफा देना पड़ा. इसके बाद एनसीपी के साथ मिलकर यूनाइटेड डेमोक्रेटिक पार्टी प्रमुख दोनकुपर रॉय ने सरकार बनाई और वे मुख्यमंत्री बने.

अलग गारोलैंड राज्य की मांग हुई तेज़

इस बार के चुनाव में अलग गारोलैंड का मुद्दा भी जोर-शोर से उठेगा. मेघायल के गारो हिल्स और उसके आसपास के इलाकों को मिलाकर गारोलैंड (Garoland) के नाम से अलग राज्य बनाने की मांग पिछले कई सालों से की जा रही है. गारोलैंड हिल्स स्टेट मूवमेंट कमेटी (GHSMC)इसको मेघालय के पश्चिमी हिस्से में रहने वाले गारो लोगों की पहचान से जुड़ा अहम मुद्दा मानती है. इस कमेटी में क्षेत्रीय राजनीतिक दल गारो नेशनल कौंसिल (GAC)समेत कई गारो संगठन शामिल हैं . इनका मानना है कि गारो हिल्स में रहने वाले लोगों की संस्कृति, भाषा-वेशभूषा खासी और जैंतिया पहाड़ियों में रहने वाले लोगों से बिल्कुल जुदा है. गारो हिल्स का इलाका 10,102 वर्ग किलोमीटर में फैला है. 2011 की जनगणना के मुताबिक यहां की आबादी करीब 14 लाख थी. वहीं 15,546 वर्ग किलोमीटर में फैले खासी-जैंतिया पहाड़ी इलाके में करीब साढ़े बाइस लाख  लोग रहते हैं. राजनीतिक नजरिए से भी गारो हील्स बेहद महत्वपूर्ण है. यहां की पांच जिलों में 24 सीटें आती हैं. गारो हील्स के इलाकों में रहने वाले लोगों का मानना है कि मेघालय की सत्ता में रहने वाले राजनीतिक दल हमेशा ही उनकी उपेक्षा करते आए हैं. मार्च 2014 में मेघालय विधानसभा ने गारोलैंड के विचार पर वीटो लगा दिया था. 

एनपीपी और बीजेपी को हो सकता है नुकसान

अलग गारोलैंड राज्य को लेकर आंदोलन तेज़ होने पर सत्तारूढ़ एनपीपी और बीजेपी को इसका नुकसान उठाना पड़ सकता है. अगर ऐसा हुआ तो इसका सीधा लाभ टीएमसी को मिल सकता है. सरकार में शामिल एनपीपी की सहयोगी Hill State People’s Democratic Party ने अलग गारोलैंड राज्य बनाने की मांग का समर्थन किया है और इसे अपने घोषणापत्र में शामिल करने का भी ऐलान किया है.

जनवरी 1972 में असम से अलग होकर गारो, खासी और जयंतियां पहाड़ियों के इलाकों को मिलाकर मेघालय पूर्ण राज्य बना था.  मेघालय विधानसभा का पहला चुनाव 1972 में ही हुआ था.

ये भी पढ़ें: Nagaland Politics: 5वीं बार मुख्यमंत्री बन पाएंगे नेफ्यू रियो? क्या नागालैंड में बीजेपी का बढ़ेगा जनाधार, कांग्रेस को खोई जमीन पाने की चुनौती

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