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Karpoori Thakur Jayanti: मुख्यमंत्री रहते हुए सरकार विरोधी प्रदर्शन में हो गए शामिल... ऐसे थे कर्पूरी ठाकुर, पढ़ें उनकी ईमानदारी के 5 किस्से

कर्पूरी ठाकुर साल 1952 में पहली बार विधायक बने और इसके बाद वह कभी बिहार विधानसभा का चुनाव नहीं हारे. मुख्यमंत्री रहते हुए उन्होंने जनता पर अपनी जो छाप छोड़ी वो किस्से आज भी बिहार के लोग याद करते हैं.

देश बुधवार (24 जनवरी, 2024) को एक ऐसे राजनेता की जयंती मना रहा है, जिनकी ईमानदारी के किस्से सालों से मशहूर हैं. दो बार मुख्यमंत्री और एक बार बिहार के उपमुख्मंत्री रहे कर्पूरी ठाकुर की आज 100वीं जन्म जयंती है. सरकार ने कर्पूरी ठाकुर को मरणोपरांत भारत रत्न से सम्मानित करने का ऐलान किया है. इसे लेकर राष्ट्रपति भवन की तरफ से बयान भी जारी किया गया है.

कर्पूरी ठाकुर दो बार मुख्यमंत्री रहे और 30 साल वह राजनीति में सक्रिय रहे. वो ऐसे मुख्यमंत्री थे जो रिक्शा पर चलते थे. आज के दौर में इस पर यकीन करना मुश्किल होगा क्योंकि आज करोड़ों रुपये राजनीतिक दल चुनाव प्रचार में खर्च कर देते हैं, लेकिन कर्पूरी ठाकुर इतनी सादगी भरा जीवन जीते थे कि उनके पास एक घर भी नहीं था. ना ही अपने परिवार को विरासत में देने के लिए एक इंच जमीन. उनकी ईमानदारी के कई किस्से मशहूर हैं, उन्ही में से कुछ चुनिंदा किस्से हम आपको सुनाने जा रहे हैं, आप भी पढिए-

बहनोई नौकरी के लिए आए तो कर्पूरी ठाकुर ने पकड़ा दिए 50 रुपये
बीबीसी की रिपोर्ट के मुताबिक, कर्पूरी ठाकुर जब बिहार के मुख्यमंत्री थे तो उनके बहनोई नौकरी के लिए उनके पास आए. उन्होंने कर्पूरी ठाकुर से नौकरी के लिए सिफारिश लगवाने के लिए कहा. तब कर्पूरी ठाकुर गंभीर होकर कुछ सोचने लगे और फिर जेब से पचास रुपये का नोट निकालकर अपने बहनोई को दिया. साथ में कहा, 'जाइए, उस्तरा वगैरह खरीद लीजिए और अपना पुश्तैनी काम शुरू कीजिए.' कर्पूरी ठाकुर अति पिछड़ा वर्ग से ताल्लुक रखते थे.

जब सीएम रहते हुए खुद विरोध प्रदर्शन में शामिल हो गए कर्पूरी ठाकुर
कर्पूरी ठाकुर की जयंती पर भारतीय जनता पार्टी (BJP) के नेता अश्विनी कुमार चौबे ने एक किस्सा सुनाया है. उन्होंने बताया कि मुख्यमंत्री रहते हुए कर्पूरी ठाकुर खुद विरोध प्रदर्शन में शामिल हो गए थे. अश्विनी चौबे ने बताया कि जब 1977-78 में कर्पूरी ठाकुर मुख्यमंत्री थे तो नालंदा में हिंसा गोलीकांड हुआ था, जिसमें कई लोग मारे गए थे. तब आक्रोशित भीड़ ने सरकार के खिलाफ प्रदर्शन किया और जांच की मांग की, जिसमें हजारों लोगों के साथ कर्पूरी ठाकुर भी शामिल हो गए थे. वह दिल्ली से आए और हवाई जहाज से पटना उतरते ही सीधे प्रदर्शन में लोगों के साथ शामिल हो गए. उन्होंने बताया कि गोलीकांड को लेकर सरकार से जांच की मांग हो रही थी तो ऐसा जननायक कहां होता है, जो खुद मुख्यमंत्री है वह प्रदर्शन में शामिल हो जाए.

देवीलाल ने पटना में दोस्त से कहा- कर्पूरी जी 5-10 हजार मांगें तो दे देना
उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री और कद्दावर नेता रहे हेमवती नंदन बहुगुणा ने भी अपने संस्मरण में कर्पूरी ठाकुर की सादगी का वर्णन किया है. इसमें हेमवती नंदन बहुगुणा ने लिखा है कि कर्पूरी ठाकुर की आर्थिक स्थिति ज्यादा अच्छी नहीं थी. उनकी आर्थिक तंगी को देखते हुए हरियाण के पूर्व मुख्यमंत्री देवीलाल ने पटना में अपने एक मित्र से कहा था कि कभी कर्पूरी जी 5-10 हजार रुपये मांगें तो दे देना. उन्होंने कहा कि यह दोस्त का उनके ऊपर कर्ज होगा. हेमवती नंदन बहुगुणा ने आगे बताया कि लेकिन जब देवीलाल ने दोस्त से कई बार पूछा कि कर्पूरी जी ने कुछ मांगा तो दोस्त बोला- नहीं, साहब वह तो कुछ मांगते ही नहीं.

मुख्यमंत्री बनने पर बेटे को पत्र में क्या लिखा
कर्पूरी ठाकुर के बेटे रामनाथ ठाकुर बताते हैं कि जब पिता मुख्यमंत्री बने तो उन्हें पत्र लिखा करते थे. इस पत्र में उन्हें बार-बार यही बात याद दिलाते थे कि लालच-लोभ में मत आना. रामनाथ ठाकुर ने बताया, 'पिता कर्पूरी ठाकुर के पत्र में तीन ही बातें लिखी होती थीं, तुम इससे प्रभावित मत होना, कोई लोभ लालच देगा तो उस लोभ में मत आना, मेरी बदनामी होगी.'

जब कर्पूरी ठाकुर ने घर की ईंटों से बनवा दिया था स्कूल
राज्यसभा के उपाध्यक्ष हरिवंश एन. सिंह ने कर्पूरी ठाकुर की ईमानदारी का एक किस्सा बताया है. उपाध्यक्ष हरिवंश ने कहा कि कर्पूरी जी ने अपने लिए कुछ नहीं किया, घर तक नहीं बनाया. उन्होंने बताया कि एक बार कर्पूरी जी का घर बनवाने के लिए 50 हजार ईंटें भेजी गईं तो कर्पूरी जी ने घर ना बनाकर स्कूल बनवा दिया.

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