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Corona और Ukraine- Russia War जैसे वैश्विक संकट ने बढ़ाया भारत का रुतबा, अब भारत है दुनिया की नई धुरी

India's Position on World: पश्चिम से लेकर पूरब तक और उत्तर से लेकर दक्षिण तक हर कोई कोरोना महामारी और रूस-यूक्रेन युद्ध जैसे संकट के बीच भारत को लुभाने और साधने की कोशिश में जुटा है.

India's Position on World: धरती ने सूरज के दो चक्कर क्या पूरे किए कि दुनिया में बहुत कुछ बदल गया. इस दौरान पहले आए कोरोना और फिर रूस-यूक्रेन युद्ध जैसे संकट ने भारत की हैसियत और दुनिया को उसकी जरूरत की नई इबारत खड़ी कर दी है. यह इबारत साफ करती है कि दुनिया में होने वाले किसी भी बड़े काम में न तो भारत को नजरअंदाज किया जा सकता है और न उसके रुख को. यही वजह है कि पश्चिम से लेकर पूरब तक और उत्तर से लेकर दक्षिण तक हर कोई भारत को लुभाने और साधने की कोशिश में जुटा है.

धरती पर आकार के हिसाब से सातवें और आबादी के लिहाज से दूसरे सबसे बड़े देश को साथ लिए बिना न तो जलवायु परिवर्तन के वैश्विक लक्ष्यों को पूरा किया जा सकता है और ना ही वैश्विक सप्लाई चेन की मजबूती तय की जा सकती है. पश्चिम के कई विकसित देश भी इस बात को बखूबी समझ चुके हैं.

यह सवाल उठना लाजिमी है कि बीते दो सालों में ऐसा क्या हो गया जो दुनिया के लिए कई मुल्कों के लिए भारत एक जरूरत बन गया। उसके नेता से मिलने, बात करने और दौरा करने के लिए हर छोटा-बड़ा नेता आना चाहता है. दरअसल, कोरोना के संकट ने दुनिया को झकझोर दिया. अमेरिका और यूरोपीय कुनबे के अमीर देशों को भी इस बात का एहसास हो गया कि चीन के पैंतरों के आगे वो कितना कमजोर हैं. वहीं अपनी उत्पादन क्षमता के कारण उनकी चीन पर किस हद तक निर्भरता है. कोरोना जैसी महामारी में मास्क की जरूरत हो या वैंटीलेटर और दवाओं की आवश्यकता, कोयले से लेकर कंटेनर की कमी हो या सेमिकंडक्टर चिप का संकट. हर लड़खड़ाई सप्लाई चेन पर कहीं न कहीं चीन की कैंची के निशान नजर आए.

ऐसे में हाइड्रोक्सीक्लोरोक्वीन जैसी दवा हो या मास्क और पीपीई जैसे सामान की जरूरत, या फिर कोरोना टीकों की आपूर्ति का मामला. दुनिया के कई देशों ने भारत में बने टीकों का सहारा लिया. इतना ही नहीं भारत दुनिया का दवाखाना है यह बात भी खुलकर साबित हुई.

भारत की क्षमताओं पर बढ़ा भरोसा 

भारत की क्षमताओं पर बढ़े भरोसे का ही असर था कि अमेरिका, यूरोप के 28 देशों ने एक बार फिर भारत के साथ मुक्त व्यापार समझौते पर बातचीत शुरु करने का ऐलान किया. अमेरिका यह कहते नहीं थक रहा कि उसकी हिंद-प्रशांत नीति की अहम धुरी भारत है. वहीं यूरोप के मुल्क भी यह कहने में अब नहीं हिचकते कि उनके लिए चीन के मुकाबले लोकतांत्रिक भारत अधिक अहमियत रखता है. बीते दिनों दिल्ली आईं यूरोपीय कमिशन की प्रमुख उर्सुला वान डर लियेन की पीएम नरेंद्र मोदी से मुलाकात के बाद यूरोपीय संघ और भारत के बीच भविष्य की भरोसेमंद तकनीक विकसित करने पर समझौता हुआ. स्वाभाविक तौर पर 5G तकनीक पर चीन का कब्जा हर किसी की फिक्र बढ़ाने वाला है.

भारत भी बढ़ी अहमियत का ही निशान है कि यूक्रेन युद्ध पर रूस के खिलाफ लगाए गए प्रतिबंधों से किनारा करने और मॉस्को के साथ अपने संबंधों को बचाने की बात करने के बावजूद पश्चिमी कुनबा उसके विरुद्ध खड़ा नजर आना नहीं चाहता. वाशिंगटन में हुई 2+2 वार्ता के बाद सार्वजनिक मंच से अमेरिका के विदेशमंत्री टोनी ब्लिंकन ने भी माना कि भारत के रूस के साथ पुराने रिश्ते हैं. जिनको अचानक खत्म नहीं किया जा सकता. इतना ही नहीं यूक्रेन पर भारतीय रुख को लेकर उठे सवालों पर भी ब्लिंकन ने कहा कि भारत के नेतृत्व ने दोनों पक्षों से हिंसा खत्म करने और बातचीत से समाधान निकालने की बात की है.

ब्रिटेन ने किया भारतीय नजरिए को स्वीकार्य

रूस का खुलकर विरोध करते हुए यूक्रेन को हथियार आपूर्ति करने वाले ब्रिटेन के पीएम बोरिस जॉन्सन भी 21-22 अप्रैल को भारत आए तो उन्होंने भारतीय नजरिए को स्वीकार किया. मीडिया के सवालों पर जॉन्सन ने भी कहा कि भारतीय नेतृत्व यूक्रेन संकट पर शांति के प्रयास कर रहा है और फौरन हिंसा रोककर कूटनीति के जरिए समाधान निकालने का पक्षधर है. दरअसल, भारत ने यही रुख संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद और यूएन की बैठकों में आए प्रस्तावों के खिलाफ अपनाते हुए वोटिंग से कई बार भी किनारा किया.

इसे एतिहास का मीठा न्याय ही कहा जा सकता है कि भारतीय भूभाग पर 200 साल तक राज करने वाला ब्रिटेन और दुनिया की पांचवीं बड़ी अर्थव्यवस्था बन चुके इस देश के साथ कारोबारी साझेदारी में अपनी आर्थिक सुरक्षा भी तलाश रहा है. इतना ही नहीं, एक तरफ जहां पश्चिमी देश जहां भारत को साधने की कोशिश कर रहे हैं वहीं सीमा तनाव के बावजूद चीन उसके साथ संवाद के गलियारे खुले रखना चाहता है. चीन के विदेश मंत्री वांग यी की तरफ से ही भारत यात्रा का आग्रह भी आया और 24 मार्च को उनका दौरा भी हुआ. वहीं तमाम तनाव के बावजूद रूस के विदेश मंत्री सर्गेई लावरोव भी 31 मार्च से 1 अप्रैल तक दो दिनी भारत दौरे पर आए थे.

भारत के इस बढ़ते रुतबे से पड़ोसी देशों में जलन 

स्वाभाविक तौर पर भारत के इस बढ़ते रुतबे से जलन भी होना लाजिमी है. वहीं पड़ोसी पाकिस्तान जैसा मुल्क हो तो उसकी जलन और कुढ़न का अंदाजा लगाया जा सकता है. सो, पाकिस्तान की सत्ता से बाहर हुए पूर्व प्रधानमंत्री इमरान खान अब भी अपनी जनसभाओं में कह रहे हैं कि भारत को कोई कुछ नहीं कहता. जबकि उन्होंने अमेरिका और पश्चिमी देशों के दबाव का विरोध किया तो उन्हें सत्ता से बाहर करने की नौबत ला दी गई.

तभी तो भारत के विदेश मंत्री एस जयशंकर विदेशी मेहमान नेताओं की मौजूदगी में यह कह पाते हैं कि अब दुनिया सोचे कि उसे भारत के नजरिए की कैसे परवाह करनी है. भारत को खास फर्क नहीं पड़ता कि दुनिया उसके बारे में क्या सोचती है. कोरोना के हालात और यूक्रेन युद्ध के संकट ने वैश्विक व्यवस्था में चली आ रही खामियों और दुनिया की वास्तविकताओं पर भारत की शिकायतों को ही उभारा है. ध्यान रहे कि भारत यह लगातार कहता रहा है कि संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद से लेकर अंतरराष्ट्रीय व्यवस्था संचालन का मौजूदा ढांचा दुनिया की हकीकत से परे है. लिहाजा इसमें व्यावहारिक बदलाव की जरूरत है ताकि इन्हें और प्रासंगिक बनाया जा सके.

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