नई दिल्लीः शुक्रवार को चीन के विदेश मंत्री वांग यी ने विदेश मंत्री एस जयशंकर से भले ही फोन पर कोरोना महामारी के दौरान मदद का हाथ बढ़ाया, लेकिन खबर है कि इस दौरान दोनों देशों के विदेश मंत्रियों ने एलएसी के हालात पर भी चर्चा की ताकि पूर्वी लद्दाख में शांति कायम की जा सके. क्योंकि पिछले कुछ समय ‌‌‌‌‌से एलएसी पर दोनों देशों की सेनाओं में तनातनी एक बार फिर से बढ़ रही है. 


विदेश मंत्री एस जयशंकर ने ट्वीट कर जानकारी दी कि वांग यी ने इस बारे में उन्होनें भरोसा दिलाया है कि इन सभी मुद्दों पर जरूर ध्यान देंगे. शुक्रवार को ही चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को भारत में आए कोरोना संकट पर ‘सहानभूति’ मैसेज भेजा था.


लेकिन जानकारी के मुताबिक, इस फोन वार्ता में पूर्वी लद्दाख से सटी लाइन ऑफ एक्चुयल कंट्रोल (एलएसी) के हालात पर भी बात हुई. क्योंकि दोनों देशों के कोर कमांडर स्तर की 11वे दौर के बातचीत के बाद से दोनों देशों की सेनाओं में तनातनी बढ़ गई है. 9वें दौर की वार्ता के बाद भले ही दोनों देशों की सेनाएं पैंगोंग-त्सो के उत्तर और दक्षिण में पीछे हटने के लिए तैयार हो गई हों, लेकिन अब चीनी सेना एलएसी के दूसरे विवादित इलाके—गोगरा, हॉट-स्प्रिंग और डेमोचक से पीछे हटने के लिए तैयार नहीं है. चीनी सेना पहले एलएसी पर भारतीय सैनिकों की मौजूदगी को कम करने के लिए कह रही है, जिसे भारत ठुकरा दिया है. यही वजह है कि दोनों देशों के बीच में एक बार फिर से टकराव की स्थिति बन गई है.


विदित है कि चीन ने करीब एक साल बाद अपनी सेना की डिवीजन और फॉर्मेशन्स में बदलाव लाकर सभी पुरानी बटालियन को आराम करने के लिए बैरक्स में भेज दिया है और उनकी जगह नई बटालियन तैनात कर दी हैं. लेकिन सूत्रों की मानें तो एलएसी के करीब ही चीन ने अपने नए स्थायी बेस बनाने शुरू कर दिए हैं. इससे इस बात का अंदाजा लगाया जा रहा है कि चीनी सेना अपनी स्थायी रूप से यहां तैनाती करने जा रही है. इन नए बेस का फायदा ये होगा कि अगर चीनी सेना फिलहात पीछे हट भी गई तो जरूरत पड़ने पर बेहद तेजी से एलएसी पर तैनात हो सकती है. हाल ही में ओपन सोर्स सैटेलाइट इमेजरी से भी पता चला था कि चीनी सेना एलएसी के करीब रूटोग बेस (छावनियों) को ‘एक्सपेंड’ कर रहा है ताकि ज्यादा से ज्यादा सैनिकों को यहां रोका जा सके. जानकारों की मानें तो अगर चीन एक अड़ियल रवैया तो यहां भी हालात एलओसी जैसे हो जाएंगे. यानि पाकिस्तान बॉर्डर की तरह ही एलएसी पर भारत और चीन की सेनाएं स्थायी रूप से आमने-सामने डटी रहा करेंगी, जिससे कभी भी हालत खराब हो सकते हैं.


फोन वार्ता के बाद विदेश मंत्री जयशंकर ने ट्वीट कर बताया कि उन्होनें चीनी समकक्ष के साथ एलएसी पर पूर्ण रूप से शांति कायम करने के लिए एलएसी के सभी विवादित इलाकों पर ड़िसइंगेजमेंट की प्रक्रिया पूरी करने चर्चा की, और पिछले साल दोनों देशों के विदेश मंत्रियों के बीच हुए ‘मास्को एग्रीमेंट’ को पूरी तरह अमल लाने पर भी बात हुई.


गौरतलब है कि मंगलवार को थलेसना प्रमुख जनरल एम एम नरवणे खुद एलएसी के हालात का जायजा लेने के लिए दो दिन के पूर्वी लद्दाख के दौरे पर गए थे. क्योंकि एलएसी पर दोनों देशों के बीच तनातनी के पूरे एक साल होने जा रहे हैं. पिछले साल 5 मई (2020) को ही दोनों देशों के सैनिकों के बीच में पैंगोग-त्सो लेक के करीब पहली झड़प हुई थी, जिसके बाद से हालात बिगड़ते चले गए थे.  


पिछले साल कोरोना महामारी के दौरान जब भारतीय सेना ने अपनी सभी एक्सरसाइज और पैट्रोलिंग तक बंद कर रखी थी, तभी अप्रैल महीने के आखिर और मई की शुरूआत में चीन की पीएलए सेना ने एक्सरसाइज के नाम पर बड़ी तादाद में अपने सैनिक और टैंक इत्यादि की तैनाती एलएसी पर कर दी थी. हालांकि, भारतीय सेना ने भी उसके बाद अपने सैनिकों की डिप्लोयमेंट वहां बेहद तेजी से की थी. इस दौरान गलवान घाटी, पैंगोंग-त्सो और कैलाश हिल रेंज पर दोनों देशों के सैनिकों के बीच फायरिंग और हिंसक-झड़पें भी हुई थीं. यही वजह है कि मंगलवार को थलसेना प्रमुख का पूर्वी लद्दाख का दो दिन का दौरा बेहद अहम माना जा रहा है.


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