माफिया मुख्तार अंसारी का एक समय उत्तर प्रदेश में ऐसा खौफ था कि पुलिस, कारोबारी, राजनेता सब उसके सामने चुप रहते थे. उसके काफिले में 20 से 30 गाड़ियां हुआ करती थीं और उसके काफिले को रोकने की किसी में हिम्मत नहीं थी.


सब गाड़ियों पर एक ही नंबर-786 हुआ करता था. ये काफिला जब सड़कों पर चलता तो लोगों में खौफ बैठ जाता था.


खौफ इस कदर होता था कि कभी-कभी तो उसके आने-जाने वाला रास्ता आम लोगों के लिए डायवर्ट कर दिया जाता था. खासकर तब, जब वो खुली छत वाली जीप में सफर करता था. तब मुख्तार का आतंक उत्तर प्रदेश के मऊ, गाजीपुर, आजमगढ़, वाराणसी सहित कई जिलों में फैला था. 5 बार मुख्तार अंसारी विधायक रहा है.


दादा स्वतंत्रता सेनानी, चाचा रहे उपराष्ट्रपति
जिस मुख्तार अंसारी के दादा डॉ मुख्तार अहमद अंसारी एक स्वतंत्रता सेनानी थे, महात्मा गांधी के करीबी थे, साल 1926-27 में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के अध्यक्ष भी रहे, उसने महज 15 साल की उम्र में अपराध की दुनिया में कदम रखा और फिर कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा.


इतना ही नहीं, भारत के पूर्व उपराष्ट्रपति हामिद अंसारी रिश्ते में मुख्तार के चाचा लगते थे.


मुख्तार अंसारी के नाना ब्रिगेडियर मोहम्मद उस्मान भारतीय सेना में एक सम्मानित अफसर थे. 1948 में जम्मू और कश्मीर के नौशेरा सेक्टर में पाकिस्तान के साथ लड़ाई के दौरान उनकी वीरता को देखते हुए उन्हें मरणोपरांत महावीर चक्र से सम्मानित किया गया. वहीं मुख्तार के पिता सुबहानउल्लाह अंसारी भी एक साफ सुथरी छवि वाले राजनेता थे. 


15 साल की उम्र में पहला अपराध
मुख्तार अंसारी का जन्म 30 जून 1963 को गाजीपुर में हुआ था. 15 साल की उम्र में साल 1978 में उसके खिलाफ पहला मामला दर्ज हो गया था. इसके बाद उसके खिलाफ 60 से ज्यादा केस दर्ज किए गए, जिनमें से 16 हत्या के आरोप थे.


उसके और गैंग के खिलाफ नई दिल्ली, पंजाब, यूपी के मऊ, वाराणसी, लखनऊ, आजमगढ़, बाराबंकी, चंदौली, सोनभद्र, आगरा, गाजीपुर में मुकदमे दर्ज हैं. सबसे ज्यादा 22 मुकदमे गाजीपुर जिले में दर्ज हैं. 


साल 1986 में मुख्तार अंसारी के खिलाफ पहला हत्या का मामला दर्ज हुआ, लेकिन गवाहों और शिकायत करने वालों में उसका इतना खौफ था कि कोई उसके खिलाफ खुलकर बोल नहीं पाया. यूपी में योगी आदित्यनाथ की सरकार आने के बाद माफिया पर शिकंजा कसना शुरू हुआ.




मुख्तार को पहली सजा दिलवाने में 44 साल लग गए. 2022 में उसे पहली सजा मिली.


सितंबर 2022 से मार्च 2024 के बीच 18 महीने के भीतर माफिया मुख्तार अंसारी को आठ अलग-अलग मामलों में सजा सुनाई गई. साथ ही, यूपी पुलिस ने उसकी करीब 900 करोड़ रुपये की संपत्ति को या तो जब्त कर लिया या नष्ट कर दिया.


कैसे अपराध की दुनिया में आया मुख्तार
बात है 1980 के दशक की. सच्चिदानंद राय नाम के एक शख्स की हत्या के बाद मुख्तार सबसे पहले चर्चा में आया था. मुख्तार के पिता मुहम्मदाबाद नगर पंचायत के चेयरमैन थे, तब मुख्तार के पिता और सच्चिदानंद के बीच कुछ विवाद हो गया था. आरोप लगा कि मुख्तार ने उसका ही बदला लेने के लिए सच्चिदानंद की हत्या कर दी. 



वहीं एक दूसरे गैंगस्टर बृजेश सिंह के साथ दुश्मनी के कारण अंसारी ने अपराध की दुनिया में काफी नाम बनाया. तब पूर्वाचल में बृजेश सिंह की तूती बोलती थी. दोनों एकदूसरे के कट्टर दुश्मन थे. 1991 में मुख्तार चंदौली पुलिस के हाथ लग लग गया था, लेकिन वह दो सिपाहियों को गोली मारकर फरार हो गया.


इसके बाद पुलिस के लिए मोस्ट वांटेड बन गया. अगस्त 1991 में मुख्तार ने यूपी कांग्रेस चीफ अजय राय के भाई अवधेश राय को मौत के घाट उतार दिया था. इस मामले में उसे साल 2022 में आजीवन कारावास की सजा भी मिली.


फिर राजनीति की दुनिया में कैसे रखा कदम
अपराध जगत में अपना नाम कमा चुके मुख्तार धीरे-धीरे समझने लगा था कि अगर लंबी और सुरक्षित पारी खेलनी है तो सिर्फ अपराध का रास्ता काफी नहीं है. राजनीति ही वो जमीन थी जिसके जरिए वो पूर्वांचल में अपनी पकड़ मजबूत कर सकता था.


इसलिए उसने राजनीति में एंट्री करने की ठानी. उसके इस कदम ने पूर्वांचल के करीब छह जिलों के राजनीतिक समीकरणों को पूरी तरह बदल कर दिया.


मुख्तार के दो बड़े भाई सिबगतुल्लाह और अफजाल अंसारी पहले से ही राजनीति में थे. साल 1996 में उसने भी बसपा के टिकट पर घोसी लोकसभा से चुनाव लड़ा. उसके सामने खड़े थे पूर्व केंद्रीय मंत्री कल्पनाथ राय. खास बात ये है कि कल्पनाथ राय पर भी गंभीर अपराधों के आरोपी थे. उनपर दाऊद इब्राहिम की मदद करने का आरोप था.


मुख्तार सांसदी का चुनाव भले ही हार गया, लेकिन उसकी राजनीतिक जमीन तैयार हो चुकी थी. उसी साल वह मऊ से विधायक बनकर विधानसभा पहुंच गया. यह तो सिर्फ शुरुआत थी. मुख्तार ने अपनी रणनीति से पूर्वांचल की सियासत में अपना दबदबा बना लिया.


साथ ही अपने माफिया साम्राज्य को भी मजबूत करता रहा. देखते ही देखते पूर्वांचल में मछली के कारोबार, रियल स्टेट और अन्य सरकारी ठेकों पर कब्जा जमाना शुरू कर दिया था.


2005 में समय ने ली करवट, जेल पहुंचा मुख्तार
2005 में मुख्तार अंसारी मऊ दंगे भड़काने के आरोप में पहली बार जेल गया था. अलग-अलग आपराधिक मामलों में उत्तर प्रदेश और पंजाब की जेलों में बंद रहा. इसी साल उसपर बीजेपी विधायक कृष्णानंद राय और 6 अन्य लोगों की गोलियों से भूनकर हत्या करने का आरोप लगा.


हमलावरों ने करीब 400 राउंड फायरिंग की थी. इस घटना के बाद मुख्तार कभी जेल से बाहर नहीं आ सका. यहां तक कि उसने जेल से दो बार चुनाव लड़ा और जीता भी. जेल में ही जनता दरबार लगाकर अपनी 'सरकार' चलाता रहा.




बीजेपी विधायक कृष्णानंद राय की हत्या मामले में 2022 में उसे पहली बार अदालत ने दोषी ठहराया गया और 10 साल की सजा सुनाई. इसके बाद दूसरे मामलों में सजा मिली. कुछ केस में मुख्तार आजीवन कारावास की सजा भी काट रहा था.


यानी कि जब 1988 में उसके खिलाफ पहला मामला दर्ज हुआ था, उसके 44 साल बाद पहली बार किसी केस में सजा मिली. 


28 मार्च 2024 को जेल में सजा काट रहे मुख्तार अंसारी की मृत्यु हो गई. पुलिस प्रशासन का कहना है दिल का दौरा पड़ने के कारण मुख्तार की मौत हुई. हालांकि उसके बेटे उमर अंसारी का दावा है कि उसके पिता को धीमे-धीमे जहर दिया जा रहा था, जिसकी वजह से दिल का दौरा पड़ा.


गौर करने वाली बात ये भी है कि मौत से 10 दिन पहले 19 मार्च 2024 को मुख्तार अंसारी ने बाराबंकी कोर्ट में बताया था कि उसे खाने में धीमे-धीमे जहर दिया जा रहा है. उत्तर प्रदेश सरकार ने इन आरोपों की जांच के लिए 3 सदस्यीय मजिस्ट्रियल जांच के आदेश दिए हैं.