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Bell Bottom Review: बड़े पर्दे पर लौटा मनोरंजन, अक्षय कुमार ने इस थ्रिलर में भरी उड़ान, लारा-आदिल भी चमके

कोरोना काल में जब सब तरफ बंदी और मंदी का हाहाकार है, अक्षय कुमार स्टारर बेल बॉटम ने थियेटरों में आने का साहस दिखाया है. यह फिल्म सिने-प्रेमियों को आकर्षित करने का दम रखती है.

Bell Bottom Review:  सौ सुनार की, एक लोहार की. जब सात साल में पांच प्लेन हाईजैक हो चुके हों और हर बार पड़ोसी दुश्मन देश में उतरते हों, वहीं के नेता आतंकियों से समझौता वार्ता करते हों तो जरूरी हो जाता है कि एक बार बातचीत को दरकिनार करके पलटवार कर ही दिया जाए. कोरोना काल में जब सब तरफ बंदी और मंदी का हाहाकार है, अक्षय कुमार स्टारर बेल बॉटम ने थियेटरों में आने का साहस दिखाया है. भले ही अभी सिर्फ 50 फीसदी दर्शकों के साथ सिनेमाघर खुले हैं मगर यह फिल्म सिने-प्रेमियों को आकर्षित करने का दम रखती है. इसकी सफलता दूसरे निर्माताओं को भी हॉल में आने का साहस देंगी.

बेल बॉटम में 200 से ज्यादा यात्रियों से भरा विमान हाईजैक कर लाहौर ले जाया जाता है, तो तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के सामने वही पुराना रास्ता रहता है कि अपहरणकर्ताओं से पड़ोसी ही बात करें क्योंकि उनकी जमीन पर विमान खड़ा है. तब साफ दिखता है कि कुछ नया करने के लिए साहस की जरूरत पीएम को भी होती है. ताकि पुराने घेरे को तोड़ सकें. ऐसे में रॉ के प्रमुख (आदिल हुसैन) उन्हें कहते हैं कि इस बार रुकिए, हम नया दांव चलेंगे. अपने मंजे हुए राष्ट्रवादी ‘खिलाड़ी’ को मैदान में उतारेंगे. यहां से बेल बॉटम रुख बदल लेती है.

लखनऊ सेंट्रल (2017) जैसी नाकाम फिल्म के बाद निर्देशक रंजीत एम.तिवारी की बेल बॉटम इंटरवेल के पहले यहां कहानी को धीरे-धीरे स्थापित करती है. जिसमें विमान हाईजैक के साथ मां-बेटे का भावनात्मक संबंध और पति-पत्नी का प्रेम धीरे-धीरे निखरती नजर आता है. कहानी कभी वर्तमान में और कभी अतीत में चलती है. इसी बीच विमान अपहरण के बाद राजनीतिक गलियारों की राजनीति और प्रधानमंत्री के तमाम शक्तियों से लैस होने के बावजूद उनकी मानवीय चिंताएं जाहिर होती जाती हैं. यहां भले ही वह थ्रिल नहीं होता, जिसकी दर्शक फिल्म से उम्मीद रखता है लेकिन निर्देशक बांधे रखने में कामयाब है. लेकिन जब साधारण जीवन जीने और अंग्रेजी, हिंदी, फ्रेंच, जर्मन भाषाएं जानने वाला तेज याददाश्त का मालिक अंशुल मल्होत्रा जब रॉ के तेज-तर्रार एजेंट, कोडनेमः बेल बॉटम (अक्षय कुमार) के रूप में अवतार लेता है तो फिल्म की रफ्तार बदल जाती है. रोमांच की चमक दिखे लगती है.


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इस हाईजैक की कहानी में विमान अपहरण के साथ अंशुल की निजी जिंदगी के भावनात्मक सिरे भी शामिल हैं. वह क्यों रॉ में आया है और क्यों हाईजैक की घटनाओं का बहुत गहराई से अध्ययन करके विशेषज्ञ बन गया है. कहानी में ट्विट्स तब आता है, जब प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी (लारा दत्ता) पाकिस्तानी राष्ट्राध्यक्ष जिया-उल-हक से कहती हैं कि आप लोग आतंकियों-अपहरणकर्ताओं से बात न करें. हम खुद आगे देखेंगे कि कैसे-क्या करना है. विमान अपहरण के पिछले चार मौकों पर मध्यस्थता करने वाले पाकिस्तान को झटका लगता है और उसकी खुफिया एजेंसी आईएसआई अपने खास आदमी डोड्डी (जैन खान दुर्रानी) को हाइजैक प्लेन को अपने हाथ में लेने के लिए भेज देती है. यहां दुश्मन देश का दोहरा चरित्र खुल कर सामने आ जाता है और सवाल खड़ा होता है कि क्या बेल बॉटल चार आतंकी-अपहरणकर्ताओं को मार कर सभी यात्रियों को सुरक्षित बचा पाएगा? इस सवाल का जवाब फिल्म में आगे मिलता है.

1980 के दशक की यह कहानी सच्ची घटनाओं से प्रेरित है. असीम अरोड़ा और परवेज शेख की लिखी इस फिल्म को रंजीत तिवारी ने कसे हुए ढंग से पर्दे पर उतारा है. 123 मिनिट का यह एंटरटेनमेंट दर्शकों को करीब-करीब पूरे समय बांधे रखता है. 53 साल के अक्षय कुमार के लिए यह फिल्म बड़ी राहत लाई है क्योंकि 2019 में केसरी, मिशन मंगल, हाउस फुल 4 और गुड न्यूज के साथ वह जबर्दस्त फॉर्म में थे. मगर 2020 में कोरना के कारण उनकी सूर्यवंशी रिलीज नहीं हो सकी और ओटीटी पर आई लक्ष्मी को खूब विरोध और आलोचना सहनी पड़ी. रॉ एजेंट के रूप में अक्षय बेल बॉटम में जमे हैं और अपनी पीढ़ी के ऐक्टरों में सबसे फिट नजर आते हैं.


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छह साल में मात्र तीन फिल्में कर यशराज फिल्म्स में जिंदगी के छह कीमती साल खराब करने वाली वानी कपूर पहली बार उस कैंप से बाहर आईं और उन्हें फायदा मिला है. फिल्म में उनका रोल भले ही छोटा है मगर वह सुंदर और सार्थक है. हुमा कुरैशी को ज्यादा स्पेस नहीं मिला और वह विशेष प्रभावित भी नहीं करतीं. बेल बॉटम में रॉ एजेंट के अलावा कोई आकर्षित करता है तो लारा दत्ता और आदिल हुसैन. इंदिरा गांधी के गेट-अप में लारा को पहचाना कठिन है और उन्होंने काम भी बढ़िया किया है. यह फिल्म उनकी लंबी वापसी के रास्ते खोलती है. वहीं शानदार ऐक्टर आदिल हुसैन के हिस्से रॉ के टीम लीडर के रूप कुछ जबर्दस्त डायलॉग आए हैं. कुल मिला कर बॉलीवुड सिनेमा के प्रेमियों के लिए बेल बॉटम थियेटर में बैठ कर फिर से पॉपकॉर्न-समोसे खाने का मौका लाई है. अगर इस अनुभव को आप बीते डेढ़-दो साल से ‘मिस’ कर रहे हों, तो टिकट खरीद सकते हैं. बेल बॉटम को थ्री-डी में भी रिलीज गया है.

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