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Mahashivratri 2024: शिव कौन हैं, महा का अर्थ क्या है, व्रत-उद्यापन कैसे करें, महाशिवरात्रि से जुड़े सभी प्रश्नों का जवाब मिलेगा इस लेख में

Mahashivratri 2024: महाशिवरात्रि को लेकर लोगों के मन में कई सवाल रहते हैं कि क्या शिव-पार्वती का विवाह इसी दिन हुआ था, यदि नहीं तो फिर कब हुआ. इस पर्व से जुड़े हर सवाल का जवाब आपको इस लेख में मिलेगा.

Mahashivratri 2024: क्या आज के दिवस यानी महाशिवरात्रि पर शिव जी और माता पार्वती का विवाह हुआ था? क्या आज के दिवस भागवान ने हलाहल का विष पान किया था? शिवरात्रि और महाशिवरात्रि में क्या अंतर हैं? महाशिवरात्रि व्रत के रहस्य को जानने के लिये यह आवश्यक है कि उसका पदविच्छेद करके उसके प्रत्येक शब्द पर विचार किया जाए. 'शिव' किसे कहते हैं, 'रात्रि' क्या चीज है और 'महा' का अर्थ क्या है. साथ ही, इस व्रत को करने का साधन क्या है और इसे करने से किस प्रकार के फल की प्राप्ति होती है.

उपर्युक्त बातों को समझने पर और आत्मसात करने पर वस्तुतः इसे जान लेना ही शिव का साक्षात्कार कर लेना है, जो बहुत दूर की बात है; फिर भी साधारण ज्ञान के लिए इतना जान लेना आवश्यक है.

शिव कौन हैं ?

शिव का अर्थ :- सायनाचार्य ने वेदों में शिव का अर्थ कल्याण बतलाया है. शिव अंक एक प्रतिष्ठित प्रकाशन के अनुसार : –

सेते तिष्ठति सर्व जगत् धस्मिन् सः शिवः शम्भुः विकाररहितः

अर्थात- 'जिसमें सारा जगत यापन करता है, जो विकार-रहित है वह 'शिव' है,  वे ही मंगल रूप भगवान् शिव हैं. जो सारे जगत्‌ को अपने अन्दर लीन कर लेते हैं वे ही करुणा सागर भगवान शिव हैं, जो भगवान, नित्य, सत्य, जगत के आधार, विकार से रहित, साक्षी–स्वरूप हैं वे ही शिव हैं.

महासमुद्ररूपी शिवजी ही एक अखण्ड तत्व हैं, अनेक विभूतियां अनेक नामों से पूजी जाती हैं, यही सर्वव्यापक और सर्वशक्तिमान हैं, यही व्यक्त-अव्यक्तरूप से क्रमशः 'सगुण ईश्वर' और 'निर्गुण ब्रह्म' कहे जाते हैं तथा यही 'परमात्मा', 'जगदात्मा', 'शम्भव', 'मयोभव', 'शङ्कर', 'मयस्कर', 'रुद्र' आदि नामों से सम्बोधित किए आते हैं.

शिव अंक (प्रतिष्ठित प्रकाशन) अनुसार-"त्वमापस्त्वं सोमः... न विद्मस्तत्तत्त्वं वयमिह तु यत् त्वं न भवसि ।" (तुम ही जल हो, तुम ही चंद्रमा हो. हम इसके बारे में सच्चाई नहीं जानते, लेकिन हम यहां हैं जबकि आप नहीं हैं.)

शिव जी से समस्त विद्याएं एवं कलाएं निकली है, वे ही प्रणव हैं, इन्हीं को वेदों ने 'नेति-नेति' कहा है. ये दया के सागर एवं करुणावतार हैं. इनकी महिमा का वर्णन करना मनुष्य की शक्ति के बाहर है.

महाशिवरात्रि में 'रात्रि' का अर्थ क्या है

अब थोड़ा रात्रि के सम्बन्ध में जान लेते हैं. 'ए' दानार्थक धातु से 'रात्रि' शब्द बनता है, अर्थात जो सुखादि प्रदान करती है वह 'रात्रि' है. ऋग्वेद 1०.127.7 में रात्रि की बड़ी प्रशंसा की गयी है-

उप मा पेपिशत्तमः कृष्णं व्यक्तमस्थित ।
उष ऋणेव यातय ॥7॥ (हे रात्रि! अक्लिष्ट जो तम है यह हमारे पास न आए. रात्रि सदा आनन्ददायिनी है, उसकी स्तुति की गयी है.) यहां रात्रि की स्तुति से प्रकृति देवी, दुर्गादेवी अथवा शिवादेवी की ही स्तुति समझनी चाहिए. इस प्रकार शिवरात्रि का अर्थ होता है 'बड़ी रात्रि जो आनन्द देने वाली है.

शिवरात्रि की व्याख्या ऐसे भी की गई है शिव अंक में - ''शिवस्य प्रिया रात्रियस्मिन व्रते अंगत्वेन विहिता तदव्रतं शिवरात्र्‌याख्याम्‌।" (भगवान शिव की प्रिय रात्रि को इस व्रत के एक भाग के रूप में निर्धारित किया गया है और इसे शिवरात्रि कहा जाता हैं.) जिसका शिव के नाम के साथ विशेष सम्बन्ध है.' ऐसी रात्रि फाल्गुन कृष्ण चतुर्दशी की है, जिसमें शिवपूजा, उपवास और जागरण होता है. उक्त फाल्गुन कृष्ण चतुर्दशी की रात्रि को शिवपूजा करना एक महान कार्य है, अतः उसका नाम महा शिवरात्रि-व्रत पड़ा. परमात्मा शिव के अनुयायियों ने लिये इस सम्बन्ध में कुछ उद्धरण दिये हैं-

परात् परतरं नास्ति शिवरात्रिपरात् परम्। न पूजयति भक्ध्येशं रुद्रं त्रिभुवनेश्वरम्। जन्तुर्जन्मसहस्रेषु भ्रमते नात्र संशयः॥ (स्कन्दपुराण)

अर्थ- भगवान शिव की रात्रि से बेहतर कुछ भी नहीं है. वह भक्तों के भगवान, तीनों लोकों के स्वामी भगवान रुद्र की पूजा नहीं करता है, इसमें कोई संदेह नहीं कि एक प्राणी हजारों योनियों में विचरता रहता है.

सौरो वा वैष्णवो वान्यो देवतान्तरपूजकः। न पूजाफलमामोति शिवरात्रिवहिर्मुखः॥ (नृसिंह-परिचर्या और पद्मपुराण)

अर्थ: – सौर हो या वैष्णव या अन्य देवताओं के उपासक, जो शिवरात्रि व्रत से विमुख होता है, उसे उसकी पूजा का फल नहीं मिलता. जो व्यक्ति इस शिवरात्रि में महादेव की भक्तिपूर्वक पूजा नहीं करता, वह अवश्य सहस्रों वर्षों तक घूमता रहता है, चाहे सूर्यदेव का उपासक हो, चाहे विष्णु तथा अन्य किसी देव का, जो शिवरात्रि को नहीं मानता उसको फल की प्राप्ति नहीं होती.

स्कन्दपुराण कहता है-
शिवं तु पूजयित्वा यो जागर्ति च चतुर्दशीम् । मातुः पयोधररसं न पिवेत् स कदाचन ॥
अर्थ – जो शिव-चतुर्दशी में शिव की पूजा (सच्ची पूजा) करके जागता रहता है, वह व्यक्ति मोक्ष प्राप्त करता है.

सागरो यदि शुध्येत श्रीवेत हिमवानपि। मेरुमन्दरशैलाश्र श्रीशैको विन्ध्य एव च ॥ चलत्स्येते कदाचिद्वै निबलं द्वि शिवव्रतम्।
(स्कन्दपुराण)

अर्थात– 'चाहे सागर सूख जाए, हिमालय भी क्षय को प्राप्त हो जाए, विन्ध्यादि पर्वत भी विचलित हो जाए, पर शिव-व्रत कभी विचलित (निष्फल) नहीं हो सकता.' इसका फल अवश्य मिलता है.

यहां तक 'शिव' और 'रात्रि' का अर्थ उस विशेष रात्रि में व्रत करने की प्रशंसा की गई. अब शिवरात्रि व्रत क्या है तथा फाल्गुन कृष्ण चतुर्दशी- की रात्रि में क्या विशेषता है, इसका थोड़ा-सा  विवेचन भी उचित है. जो मनुष्य 'कालतत्व' को मात्र जानते हैं उन्हें विदित है कि समय पर कार्य करने से इष्ट पदार्थो की प्राप्ति होती है. फाल्गुन के पश्चात् नये वर्ष-चक्र का प्रारम्भ होता है. इस प्रकार सृष्टि और फाल्गुन कृष्ण चतुर्दशी के बाद वर्षचक्र की पुनरावृत्ति एक ही बात है. वर्षचक्र की पुनरावृत्ति के समय मुमुक्षु जीव परम-तत्व शिव के पास पहुंचना चाहता है. ज्योतिषशास्त्र के अनुसार कृष्ण चतुर्दशी में चन्द्रमा सूर्य के समीप होते हैं. अतः उसी समय में जीवरूपी चन्द्र का शिवरूपी सूर्य के साथ योग होता है,फाल्गुन कृष्ण चतुर्दशी को शिव-पूजा करने से जीव को इष्ट पदार्थ की प्राप्ति होती है.

ईशान संहिता में शिवरात्रि व्रत के सम्बन्ध में कहा है-
माघकृष्णचतुर्दश्यामादिदेवो महानिशि । शिवलिङ्गतयोज़ तः कोटिसूर्यसमप्रभः ॥ तरकालव्यापिनी ग्राह्या शिवरात्रिवते तिथिः ॥

अर्थ – कृष्ण चतुर्दशी को आदिदेव महादेव कोटि सूर्य के समान दीप्ति सम्पन्न हो शिव लिंग के रूप में आविर्भूत हुए थे, अतएव शिवरात्रि व्रत में उसी महानिशा व्यापिनी चतुर्दशी को ग्रहण करना चाहिए.

ईशान संहिता के मत से शिव की प्रथम मूर्ति उक्त तिथि की महानिशा में पृथ्वी से पहले पहल आविर्भूत हुई थी, इसी के उपलक्ष्य में इस व्रत की उत्पत्ति होती है.

शिव अंक में कहा गया है कि एक बार कैलास शिखर पर स्थित पार्वती ने शंकर से पूछा-
"कर्मणा केन भगवन् मतेन तपस्यापि वा। धर्मार्थकाममोक्षाणां हेतुरत्वं परितुष्यसि ॥"

अर्थात- हे भगवन्! धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष इस चतुर्वर्ग के तुम्हीं हेतु हो. साधना से सन्तुष्ट हो मनुष्य को तुम्हीं इसे प्रदान करते हो. अतएव यह जानने की इच्छा होती है कि किस कर्म, किस व्रत या किस प्रकार की तपस्या से आप प्रसन्न होते हो?

इसके उत्तर मे भगवान महादेव कहते है –

"तिथिः स्थाश्चतुरंशी। तस्यां या तामसी रात्रिः सोच्यते शिवरात्रिका ॥ तत्रोपवासं कुर्वाणः प्रसादयति मां भुवम्। न स्नानेन न यसक्षेण न धूपेत न यार्चया ॥ तुष्यामि न तथा पुष्पैर्थधा तत्रोपवासतः ॥"

अर्थ – फाल्गुन के कृष्णपक्ष की चतुर्दशी तिथि को आश्रयकर जिस अन्धकारमयी रजनी का उदय होता है उसी को ‘शिवरात्रि' कहते हैं. उस दिन जो उपवास करता है वह निश्चय ही मुझे प्रिय है. उस दिन उपवास करने से मैं जैसा प्रसन्न होता हूं धूप और पुष्प के अर्पण से भी नहीं होता.

उपर्युक्त श्लोक से यह जाना जा सकता है कि इस व्रत का उपवास ही प्रधान अंग हैं. तथापि रात्रि के चार पहरों में चार बार पृथक् पृथक् पूजा का विधान भी प्राप्त होता हैं.

महाकवि कालिदास अपने अमर काव्य रघुवंश में प्रारम्भ में ही कहते हैं-
वागर्थाविव सम्पृक्ती वागर्थप्रतिपत्तये । जगतः पितरी बन्दे पार्वती परमेश्वरी ॥
अर्थ – वाक्य और अर्थ की ज्ञान-प्राप्ति के लिये वाक्य और अर्थ के समान नित्य-संयुक्त जगत के माता पिता पार्वती और शंकर की मैं वन्दना करता हूं.

क्या है महाशिवरात्रि की कहानी? क्या इसी दिन हुई थी शिव–पार्वती की शादी ? क्या इसी दिन भगवान शिव ने विष का पान किया था? क्या इस दिवस माता सती और भगवान शिव की शादी हुई थी? 
 
ऐसा कोई भी पुराणों में वर्णन नहीं मिलता की इस दिवस शिव-पार्वती या शिव–सती की शादी महाशिवरात्रि को हुई थी ये कही वर्णित नहीं मिलता. लेकिन अगर इस दिन नहीं हुई थी तो किस दिन हुई थी? शिव पुराण पार्वती खंड 35.58 के अनुसार, शिव-पार्वती की शादी मार्गशीष माह के सोमवार को हुई थी और शिव-सती (पार्वती जी पिछला जन्म) की शादी चैत्र माह में हुई थी (शिव पुराण सती खंड 18.20). भगवान शिव ने विष पान किया था महाशिवरात्रि के दिन ऐसा भी कोई पुराणों में उल्लेख नहीं मिलता. तो फिर सत्य क्या है? क्यों मनाई जाती हैं महाशिवरात्रि? आइये जानते हैं-

शिव पुराण विद्योशवरसंहिता 9.9-10 के अनुसार 
"ईश्वर उवाच तुष्टोऽहमद्य वां वत्सौ पूजयास्मिन् महादिने ॥ 9
दिनमेतत्ततः पुण्यं भविष्यति महत्तरम्। शिवरात्रिरिति ख्याता तिथिरेषा मम प्रिया ॥ 10"
अर्थ :— ईश्वर (महादेव) बोले- हे पुत्रो! आजका दिन महान है. इसमें तुम्हारे द्वारा जो आज मेरी पूजा हुई है, इससे मैं तुमलोगोंपर बहुत प्रसन्न हूं. इसी कारण यह दिन परम पवित्र और महान्-से-महान् होगा. आज की यह तिथि शिवरात्रि के नाम से विख्यात होकर मेरे लिए परम प्रिय होगी. भगवान शिव जी का इस दिवस प्राकट्य हुआ था अर्थात वो निराकार स्वरुप में साकार स्वरूप में आए थे. शिव पुराण विद्योशवर संहिता 9.15-16 के अनुसार, लिंग भगवान का निराकार स्वरुप है और जो शिव मूर्ति वो साकार स्वरुप है.

महाशिवरात्रि और शिवरात्री में क्या अंतर हैं? (Difference Between Shivratri and Mahashivratri)

स्कंद पुराण, ब्राह्म खण्ड-ब्रह्मोत्तर खण्ड अध्याय क्रमांक 2 अनुसार शिवरात्री हर महीने की कृष्ण चतुर्दशी को मनाई जाती है. लेकिन भगवान शिव फाल्गुन कृष्णा चतुर्दशी (शिवरात्रि) में पूर्णतः विद्यमान रहते हैं, इसलिए इसे महाशिवरात्रि कहा जाता है.

शिवरात्रि व्रत का वैज्ञानिक महत्व (Scientific importance of Shivratri Vrat): जैसा कि आपको पता है कि शिवरात्रि व्रत एक बार और एकादशी व्रत दो बार हर महीने में आता है. हम रोजमर्रा की जीवनचर्या में लगभग हर दिन तामसिक या अस्वस्थ भोजन करते हैं जिससे हृदय या मोटापे का रोग होता है. इसलिए महीने में कुछ ऐसे भी दिन होने चाहिए जिस दिन पेट को आराम मिले ताकि आपके शरीर का विषहरण (Detoxify) हो सके. ये व्रत एक तरह से आपके पेट को आराम दिलाने का जरिया है और साथ ही साथ भगवान का नाम जप कर के अध्यात्म से जुड़े रहने का भी एक साधन है. कई लोग पैसा कमाने में इतने व्यस्त हैं कि वे भगवान को याद नहीं करते जोकि अनुचित है. व्रत एक जरिया बनता है उनको अध्यात्म की ओर खींचने का.

शिवरात्रि का पूजन कैसे करें?

  • शिव पुराण रूद्र संहिता अध्याय क्रमांक 38 अनुसार शिवरात्रि में 108 बार शिव मंत्र (ॐ नमः शिवाय) पढ़कर जलधारा और बेलपत्र से निर्गुण होते हुए भी सगुण शिव की पूजा करें.
  •  पंचगव्य जिसमे दूध, दही, घी, मधु और शक्कर होती है, उससे शिवलिंग का आलेपन कर, उसे मंदोषण जल से नहलाएं. (Shiv Puran, VS 24.40)ॉ
  •  व्रत रखने का महत्व: शिवरात्रि को यदि किसी ने उपवास किया तो उसे सौ यज्ञों से अधिक पुण्य मिलता है. (Skanda Puran, BK 201).

व्रत कैसे करें?

शिव पुराण कोटि रूद्र संहिता अध्याय 38 अनुसार,माघमास के कृष्णपक्ष में शिवरात्रि तिथि का विशेष माहात्म्य बताया गया है. जिस दिन आधी रात के समय तक वह तिथि विद्यमान हो, उसी दिन उसे व्रत के लिए ग्रहण करना चाहिए. शिवरात्रि करोड़ों हत्याओं के पाप का नाश करने वाली है. उस दिन सबेरे से लेकर जो कार्य करना आवश्यक है वर्णन करता हूं. बुद्धिमान् पुरुष सबेरे उठकर बड़े आनन्द के साथ स्नान आदि नित्यकर्म करें. आलस्य को पास न आने दे. फिर शिवालय में जाकर शिवलिंग का विधिवत पूजन करके शिव को नमस्कार करने के पश्चात् उत्तम रीति से संकल्प करें:

संकल्प: देवदेव महादेव नीलकण्ठ नमोऽस्तु ते। कर्तुमिच्छाम्यहं देव शिवरात्रिव्रतं तव॥ प्रभावाद्देवेश निर्विघ्नेन भवेदिति। तव कामाद्याः शत्रवो मां वै पीडां कुर्वन्तु नैव हि॥ 

अर्थ: “देवदेव! महादेव! नीलकण्ठ ! आपको नमस्कार है। देव! मैं आपके शिवरात्रि व्रतका अनुष्ठान करना चाहता हूं। देवेश्वर! आपके प्रभाव से यह व्रत बिना किसी विघ्न-बाधा के पूर्ण हो और काम आदि शत्रु मुझे पीड़ा न दें.” ऐसा संकल्प करके पूजन-सामग्री का संग्रह करे और उत्तम स्थान में जो शास्त्र–प्रसिद्ध शिवलिंग हो, उसके पास रात में जाकर स्वयं उत्तम विधि-विधान का सम्पादन करे; फिर शिव के दक्षिण या पश्चिम भाग में सुन्दर स्थान पर उनके निकट ही पूजा के लिये संचित सामग्री को रखें. तदनन्तर फिर स्नान करें. स्नान के बाद सुन्दर वस्त्र और उपवस्त्र धारण करके तीन बार आचमन करने के पश्चात् पूजन आरम्भ करें. जिस मंत्र के लिए जो द्रव्य नियत हो, उस मन्त्र को पढ़कर उसी द्रव्य के द्वारा पूजा करनी चाहिए. गीत, वाद्य, नृत्य आदि के साथ भक्तिभाव से सम्पन्न हो रात्रि के प्रथम पहर में पूजन करके विद्वान् पुरुष मन्त्र का जप करे.

यदि मन्त्रज्ञ पुरुष उस समय श्रेष्ठ पार्थिव लिंग का निर्माण करे तो नित्यकर्म करने के पश्चात् पार्थिव लिंग का ही पूजन करें. पहले पार्थिव बनाकर पीछे उसकी विधिवत स्थापना करे. फिर पूजन के पश्चात विभिन्न प्रकार के स्तोत्रों द्वारा भगवान वृषभध्वज को संतुष्ट करे. रात्रि के चारों पहरों में चार पार्थिव लिंगों का निर्माण करके आवाहन से लेकर विसर्जन तक क्रमशः उनकी पूजा करे और बड़े उत्सव के साथ प्रसन्नता-पूर्वक जागरण करें. प्रातःकाल स्नान करके पुनः वहां पार्थिव शिव का स्थापन और पूजन करें. इस तरह व्रत को पूरा करके हाथ जोड़ मस्तक झुकाकर बारंबार नमस्कार पूर्वक भगवान शम्भु से इस प्रकार प्रार्थना करें.

प्रार्थना एवं विसर्जन: नियमो यो महादेव कृतश्चैव त्वदाज्ञया। विसृज्यते मया स्वामिन् व्रतं जातमनुत्तमम् ॥ व्रतेनानेन देवेश यथाशक्तिकृतेन च। संतुष्टी भव शर्वाद्य कृपां कुरु ममोपरि ॥
अर्थ: “महादेव ! आपकी आज्ञा से मैंने जो व्रत ग्रहण किया था, स्वामिन् ! वह परम उत्तम व्रत पूर्ण हो गया. अतः अब उसका विसर्जन करता हूं. देवेश्वर शर्व, यथाशक्ति किए गए इस व्रत से आप आज मुझपर कृपा करके संतुष्ट हों.”

तत्पश्चात् शिव को पुष्पांजलि समर्पित करके विधिपूर्वक दान दें. फिर शिव को नमस्कार करके व्रत–सम्बन्धी नियम का विसर्जन कर दें. अपनी शक्ति के अनुसार शिवभक्त ब्राह्मणों, विशेषतः संन्यासियों को भोजन कराकर पूर्णतया संतुष्ट करके स्वयं भी भोजन करें. शिवरात्रि को प्रत्येक प्रहर में श्रेष्ठ शिव भक्तों को जिस प्रकार विशेष पूजा करनी चाहिए.  प्रथम प्रहर में पार्थिव लिंग की स्थापना करके अनेक सुन्दर उपचारों द्वारा उत्तम भक्ति भाव से पूजा करें. पहले गन्ध, पुष्प आदि पांच द्रव्यों द्वारा सदा महादेव जी की पूजा करनी चाहिए. उस उस द्रव्य से सम्बन्ध रखने वाले मन्त्र का उच्चारण करके पृथक-पृथक वह द्रव्य समर्पित करें.

इस प्रकार द्रव्य समर्पण के पश्चात् भगवान शिव को जलधारा अर्पित करें. विद्वान् पुरुष चढ़े हुए द्रव्यों को जलधारा से ही उतारे. जलधारा के साथ-साथ एक सौ आठ मन्त्र का जप करके वहां निर्गुण सगुण रूप शिव का पूजन करे. गुरु से प्राप्त हुए मन्त्र द्वारा भगवान शिव की पूजा करे. अन्यथा नाम मन्त्र द्वारा सदाशिव का पूजन करना चाहिए. चावल और काले तिलों से से पूजा करनी चाहिए. कमल और कनेर के फूल चढ़ाने चाहिये.

महाशिवरात्रि चारों प्रहर की पूजा

आठ नाम-मन्त्रों द्वारा शंकर जी को पुष्प समर्पित करे. वे आठ नाम इस प्रकार हैं-भव, शर्व, रुद्र, पशुपति, उग्र, महान, भीम और ईशान. इनके आरम्भ में श्री और अन्त में चतुर्थी विभक्ति जोड़कर 'श्रीभवाय नमः' इत्यादि नाम मन्त्रों द्वारा शिव का पूजन करे. पुष्प-समर्पण के पश्चात् धूप, दीप और नैवेद्य निवेदन करे. पहले प्रहर में विद्वान् पुरुष नैवेद्य के लिए पकवान बनवा ले. फिर श्रीफल युक्त विशेषार्घ्य देकर ताम्बूल समर्पित करे. तदनन्तर नमस्कार और ध्यान करके गुरु के दिए हुए मन्त्र का जप करे. गुरुदत्त मन्त्र न हो तो पंचाक्षर (नमः शिवाय) मन्त्र के जप से भगवान शंकर को संतुष्ट करे, धेनु मुद्रा दिखाकर उत्तम जल से तर्पण करें. इसके बाद अपनी शक्ति के अनुसार पांच वेद पाठी ब्राह्मणों को भोजन कराने का संकल्प करे. फिर जबतक पहला प्रहर पूरा न हो जाय, तबतक महान उत्सव चलता रहे.

दूसरा प्रहर आरम्भ होने पर पुनः पूजन के लिए संकल्प करे. अथवा एक ही समय चारों प्रहरों के लिये संकल्प करके पहले प्रहरकी भांति पूजा करता रहे. पहले पूर्वोक्त द्रव्यों से पूजन करके फिर जलधारा समर्पित करें. प्रथम प्रहर की अपेक्षा दोगुने मन्त्रों का जप करके शिव की पूजा करे. पूर्वोक्त तिल, जौ तथा कमल पुष्पों से शिव की अर्चना करे. विशेषतः बिल्वपत्रों से परमेश्वर शिव का पूजन करना चाहिए. दूसरे प्रहर में बिजौरा नींबू के साथ अर्घ्य देकर खीर का नैवेद्य निवेदन करे. इसमें पहले की अपेक्षा मन्त्रों की दोगुनी आवृत्ति करनी चाहिए.फिर वेद पाठी ब्राह्मणों को भोजन कराने का संकल्प करे. शेष सब बातें पहले की ही भांति तबतक करता रहे, जबतक दूसरा प्रहर पूरा न हो जाए.

तीसरे प्रहर के आने पर पूजन पहले के समान ही करे; किंतु जौ के स्थान में गेहूं का उपयोग करे और आक के फूल चढ़ाए. उसके बाद विभिन्न प्रकार के धूप एवं दीप देकर पूए का नैवेद्य भोग लगाए. उसके साथ भांति-भांति के शाक भी अर्पित करे. इस प्रकार पूजन करके कपूर से आरती उतारे. अनार के फल के साथ अर्घ्य दे और दूसरे प्रहर की अपेक्षा दोगुना मन्त्र जप करे. तदनन्तर दक्षिणा सहित ब्राह्मण-भोजन का संकल्प करे और तीसरे प्रहर के पूरे होने तक पूर्ववत् उत्सव करता रहे.

चौथा प्रहर आने पर तीसरे प्रहर की पूजा का विसर्जन कर दे. पुनः आवाहन आदि करके विधिवत पूजा करे. उड़द, कंगनी, मूंग, सप्तधान्य, शंखी पुष्प तथा बिल्वपत्रों से परमेश्वर शंकर का पूजन करें. उस प्रहर में भांति-भांति की मिठाइयों का नैवेद्य लगाये अथवा उड़द के बड़े आदि बनाकर उनके द्वारा सदाशिव को संतुष्ट करे. केले के फल के साथ अथवा अन्य विविध फलों के साथ शिव को अर्घ्य दे. तीसरे प्रहर की अपेक्षा दूना मन्त्र जप करे और यथाशक्ति ब्राह्मण-भोजन का संकल्प करे. गीत, वाद्य तथा नृत्य से शिव की आराधना पूर्वक समय बिताए.

भक्तजनों को तबतक महान उत्सव करते रहना चाहिये, जबतक अरुणोदय न हो जाय. अरुणोदय होने पर पुनः स्नान करके भांति-भांति के पूजनोपचारों और उपहारों द्वारा शिव की अर्चना करे. फिर विभिन्न प्रकार के दान दे और प्रहर की संख्या के अनुसार ब्राह्मणों तथा संन्यासियों को अनेक प्रकार के भोज्य पदार्थों का भोजन कराए. फिर भगवान शंकर को नमस्कार करके पुष्पांजलि दे और बुद्धिमान् पुरुष उत्तम स्तुति करके निम्नांकित मन्त्रोंसे प्रार्थना करे-

तावकस्त्वद्‌गतप्राणस्त्वच्चित्तोऽहं सदा मृड। कृपानिधे इति ज्ञात्वा यथा योग्यं तथा कुरु ॥ अज्ञानाद्यदि वा ज्ञानाञ्जपपूजादिकं मया। कृपानिधित्वाज्ज्ञात्वैव भूतनाथ प्रसीद मे॥ अनेनैवोपवासेन यज्जातं फलमेव च। तेनैव प्रीयतां देवः शङ्करः सुखदायकः ॥ कुले मम महादेव भजनं तेऽस्तु सर्वदा। माभूत्तस्य कुले जन्म यत्र त्त्वं नहि देवता ॥

सुखदायक कृपा निधान शिव! मैं आपका हूं. मेरे प्राण आप में ही लगे हैं और मेरा चित्त सदा आपका ही चिन्तन करता है. यह जानकर आप जैसा उचित समझें, वैसा करें. भूतनाथ! मैंने जानकर या अनजान में जो जप और पूजन आदि किया है, उसे समझकर दया सागर होने के नाते ही आप मुझपर प्रसन्न हों. उस उपवास व्रत से जो फल हुआ हो, उसी से सुखदायक भगवान शंकर मुझपर प्रसन्न हों. महादेव! मेरे कुल में सदा आपका भजन होता रहे. जहां के आप इष्ट देवता न हों, उस कुल में मेरा कभी जन्म न हो.'

इस प्रकार प्रार्थना करने के पश्चात भगवान शिव को पुष्पांजलि समर्पित करके ब्राह्मणों से तिलक और आशीर्वाद ग्रहण करे. तदनन्तर शम्भु का विसर्जन करे. जिसने इस प्रकार व्रत किया हो, उससे भगवान शिव दूर नहीं रहते. मनुष्यों को प्रतिमास भक्तिपूर्वक शिवरात्रि व्रत करना चाहिए. तत्पश्चात् इसका उद्यापन करके मनुष्य सांगोपांग फल लाभ करता है. 

उद्यापन की विधि:-

शिव पुराण कोटि रूद्र संहिता अध्याय 39 अनुसार, लगातार चौदह वर्षों तक शिवरात्रि के शुभव्रत का पालन करना चाहिए. त्रयोदशी को एक समय भोजन करके चतुर्दशी को पूरा उपवास करना चाहिए. शिवरात्रि के दिन नित्यकर्म सम्पन्न करके शिवालय में जाकर विधिपूर्वक शिव का पूजन करे. तत्पश्चात् वहां यत्न पूर्वक एक दिव्य मण्डल बनवाए, जो तीनों लोकों में गौरी–तिलक नाम से प्रसिद्ध है. उसके मध्यभाग में दिव्य लिंगतोभद्र मण्डल की रचना करे अथवा मण्डप के भीतर सर्वतोभद्र मण्डल का निर्माण करे. वहां प्राजापत्य नामक कलशों की स्थापना करनी चाहिए. वे शुभ कलश, वस्त्र, फल और दक्षिणा के साथ होने चाहिए. उन सबको मण्डप के पार्श्वभाग में यत्नपूर्वक स्थापित करे. मण्डप के मध्य भाग में एक सोने का अथवा दूसरी धातु तांबे आदि का बना हुआ कलश स्थापित करे.

व्रती पुरुष उस कलशपर पार्वती सहित शिव की प्रतिमा बनाकर रखे. वामभाग में पार्वती की और दक्षिण भाग में शिव की प्रतिमा स्थापित करके रात्रि में उनका पूजन करे. आलस्य छोड़कर पूजन का काम करना चाहिए. उस कार्य में चार ऋत्विजों के साथ एक पवित्र आचार्य का वरण करे और उन सबकी आज्ञा लेकर भक्ति पूर्वक शिव की पूजा करे. रात को प्रत्येक प्रहर में पृथक पृथक पूजा करते हुए जागरण करे. व्रती को भगवत्सम्बन्धी कीर्तन, गीत एवं नृत्य आदि के द्वारा सारी रात बिताए. इस प्रकार विधिवत पूजनपूर्वक भगवान् शिव को संतुष्ट करके प्रातः काल पुनः पूजन करने के पश्चात् सविधि होम करे. इसके बाद भगवान शिव से प्रार्थना करें: –
देवदेव शरणागतवत्सल। व्रतेनानेन देवेश कृपां कुरु मया भक्त्यनुसारेण व्रतमेतत् कृतं न्यूनं सम्पूर्णतां यातु प्रसादात्तव ममोपरि ॥ शिव। शङ्कर।।अज्ञानाद्यदि वा ज्ञानाज्जपपूजादिकं मया। कृतं तदस्तु कृपया सफलं तव शङ्कर॥

“महादेव ! शरणागत वत्सल! देवेश्वर! इस व्रत से संतुष्ट हो आप मेरे ऊपर कृपा कीजिए. शिव-शंकर! मैंने भक्तिभाव से इस व्रत का पालन किया है. इसमें जो कमी रह गयी हो, वह आपके प्रसाद से पूरी हो जाय. शंकर! मैंने अनजाने में या जान-बूझकर जो जप पूजन आदि किया है, वह आपकी कृपा से सफल हो.”
इस तरह परमात्मा शिव को पुष्पांजलि अर्पण करके फिर नमस्कार एवं प्रार्थना करे. जिसने इस प्रकार व्रत पूरा कर लिया उसे मनोवांछित फल मिलता है.

व्रत या पुजा में भाव सबसे ज्यादा विशेष होता हैं क्योंकि शिव पुराण रूद्र संहिता 37.19 भी कहता है – "जिसको जहां भगवान शंकर के प्रकट होने का विश्वास हो, उसके लिए वहां प्रकट होकर अभीष्ट फल प्रदान करते हैं." इसलिए भक्ती भाव पर विशेष ध्यान रखें क्योंकि शिव जी तो बेलपत्र और जल चढ़ाने से ही खुश हो जाते हैं.

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नोट- उपरोक्त दिए गए विचार लेखक के व्यक्तिगत विचार हैं. यह ज़रूरी नहीं है कि एबीपी न्यूज़ ग्रुप इससे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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