International Women's Day 2024: 08 मार्च का दिन दुनियाभर की महिलाओं के लिए बेहद खास दिन है. इस दिन महिलाओं के सम्मान और समान हक को लेकर लोगों में जागरूकता पैदा करने के लिए अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस (Mahila Diwas) मनाया जाता है. साथ ही विभिन्न क्षेत्रों में महिला द्वारा दिए योगदान के लिए उन्हें सम्मानित भी किया जाता है. बता दें कि यूनाइटेड नेशन्स (United Nations) ने 1975 में 8 मार्च के दिन को महिला दिवस के रूप में मनाने की शुरुआत की थी.


महिलाओं के लिए हमारे देश में भी कई कविताएं और लेख आदि लिखे जाते हैं. हिंदू धर्म के रामचरितमानस में भी संत कवि तुलसीदास जी ने महिलाओं को लेकर कुछ चौपाईयां व दोहे लिखी हैं. लेकिन कुछ  लोग उनके दोहे को अतिरंजिता बताकर तुलसीदास जी पर विशेष रूप से नारी विरोधी होने का आरोप लगाते हैं. लेकिन तुलसीदास जी ने अपनी कई चौपाईयों में स्त्रियों की महत्ता को व्यक्त किया है.


तुलसीदास जी की कुछ चौपाइयों को लेकर आपत्ति जताते हुए उन्हें महिला विरोधी बताया जाता है. लेकिन तुलसीदास ने रामचरिमानस में लिखा और साथ में यह भी निर्णय दिया कि, इसे समझने की क्षमता किसमें है. जिनमें क्षमता पाई गई उनके बारे में कहा गया कि, शुभ चरित्र को वही जानेंगे जो मुनि हैं और ज्ञानी हैं.


यह शुभ चरित जान पै सोई। कृपा राम की जा पर होई।।
जानहिं यह चरित्र मुनि ग्यानी। जिन्ह रघुबीर चरन रति मानी॥


क्या महिला विरोधी थे गोस्वामी तुलसीदास ?


जब तक पूर्ण ज्ञान की प्राप्ति न हो तब तक सही-गलत का भेद करना मुश्किल होता है. खासकर ज्ञानी, संत और महापुरुषों की बात को समझने के लिए ज्ञान का स्तर भी उसी तरह का होना चाहिए. धर्म को लेकर भी कुछ ऐसा ही. धर्म की पूरी जानकारी न होने पर धर्म से जुड़े रहने की आशा करना क्या सही है. खैर, बीती ताहि बिसारिये आगे की सुधि लेइ... तुलसीदास जी माता पार्वती के बारे में लिखते हैं कि, उनके जन्म लेते ही धरती पर चहुंओर खुशहाली छा गई. इसी तरह उन्होंने माता सीता के बारे में बताया कि, हनुमान जी को अष्ट सिद्धि नव निधि दाता होने का वरदान सीता जी से मिला. इन बातों से काफी हद तक स्पष्ट हो जाता है कि गोस्वामी तुलसीदास जी महिला विरोधी नहीं थे. यदि अभी भी कुछ असमंजस है तो तुलसीदास जी की इन चौपाईयों को देखें, जिसमें उन्होंने स्त्रियों की महत्ता का वर्णन किया है.


जननी सम जानहिं पर नारी ।
तिन्ह के मन सुभ सदन तुम्हारे ।।


तुलसीदास जी कहते हैं कि जो पुरुष अपनी पत्नी के अलावा किसी और स्त्री को मां समान समझता है, उसके हृदय में ईश्वर का वास होता है. वहीं जो पुरुष अन्य स्त्रियों संग संबंध बनाता है, वह पापी होता है.


धीरज, धर्म, मित्र अरु नारी।
आपद काल परखिए चारी।।


इस चौपाई में विशेषरूप से नारी को शामिल करते हुए तुलसीदास लिखते हैं कि, धीरज, धर्म, मित्र और नारी की परीक्षा कठिन परिस्थियों में ही की जा सकती है.


सो परनारि लिलार गोसाईं। 
तजउ चउथि के चंद कि नाईं॥


इस चौपाई के माध्यम से तुलसीदास लोगों को समझाते हैं कि स्त्री के सम्मान को सुरक्षित करने के लिए मनुष्य को कुदृष्टि से बचना चाहिए. तुलसीदास कहते हैं कि जो अपना कल्याण, सुंदर यश, सुबुद्धि, शुभ गति और विभिन्न प्रकार के सुख चाहते हैं, वह उसी प्रकार की परस्त्री का मुख न देखें जैसे लोग चौथ के चंद्रमा को नहीं देखते.


मूढ़ तोहि अतिसय अभिमाना।
नारी सिखावन करसि काना।।


तुलसीदास जी कहते हैं, .अगर कोई आपके लाभ की बात कर रहा है तो आपको भी अपना अभिमान भूलकर उसे स्वीकार कर लेना चाहिए. इस दोहे में राम सुग्रीव के बड़े भाई बाली के सामने एक स्त्री का सम्मान करते हुए कहते हैं, दुष्ट बाली तुम अज्ञान पुरुष तो हो ही लेकिन अभिमान के कारण तुमने अपनी विद्वान पत्नी की भी बात न मानी और इसलिए तुम हारे.


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