एक जमाना था, जब बच्चे दादी और नानी से कहानी सुनने के बाद ही नींद के आगोश में जाते थे. अब हाईटेक दुनिया में किस्से-कहानियों को सुनाने का जिम्मा भी सोशल मीडिया और यूट्यूब जैसे प्लेटफॉर्म के हिस्से आ गया है. हालांकि, बच्चे वहां कहानियां सुनने की जगह ऊटपटांग वीडियो में ज्यादा रम जाते हैं तो पैरेंट्स भी उन्हें इससे दूर रखने की कोशिश में लग जाते हैं. आइए आपको बताते हैं कि कहानियां सुनाने से बच्चों पर क्या असर होता है? उन्हें किस तरह इसकी सीख मिलती है, जो उनके विकास में मददगार साबित हो सकती है?


यूं समझिए कहानियों की ताकत
आइंस्टीन ने कहा था कि अगर बच्चे को बुद्धिमान बनाना चाहते हैं तो उसे फेयरी टेल्स जरूर सुनाएं. अगर आप चाहते हैं कि बच्चा बहुत ज्यादा बुद्धिमान बने तो उसे ज्यादा से ज्यादा फेयरी टेल्स सुनाएं. कुल मिलाकर समझ लीजिए कि कहानियों की दुनिया से ही बच्चे के दिमाग के तेज होने के रास्ते खुलते हैं. इसके लिए उसे सोशल मीडिया पर डिपेंड न होने दें, बल्कि दादी-नानी वाले दौर में लेकर जाएं या खुद ही कहानियां सुनाएं. भले ही कम उम्र में बच्चों की एनर्जी ज्यादा नहीं होती है, लेकिन कहानियां सुनने के बाद उनका दिमाग वैसी दुनिया की कल्पना करने लगता है और दुनिया को देखने के उसके तरीके में भी बदलाव आता है.


बढ़ जाती है बच्चों की कल्पनाशक्ति
जब बच्चा कहानी सुनता है तो वह सिर्फ उसे सुनता ही नहीं है, बल्कि उसकी कल्पना भी करने लगता है. कहानी सुनते-सुनते वह खुद को उसी दुनिया में महसूस करने लगता है. इससे बच्चे के अंदर रचनात्मकता का विकास होने लगता है. वह उस दुनिया को जानने और समझने के मकसद से उसके बारे में सोचने लगता है. यही वजह होती है कि कई बार कहानी सुनने के बाद बच्चे के मन में कई तरह के सवाल बनने लगते हैं, जो उसकी रचनात्मकता की ओर इशारा करते हैं.


फोकस के साथ बढ़ेगी दुनिया के बारे में समझ
कहानियां सुनने का असर बच्चों की समझ पर भी पड़ता है. वे न सिर्फ दुनिया को अच्छी तरह समझना सीखते हैं, बल्कि कहानियों के माध्यम से वे दुनिया के सही-गलत जैसे बुनियादी नियम भी सीख लेते हैं. कहानियों से उन्हें पता लगता है कि अच्छा इंसान बनना क्यों जरूरी होता है. इससे उनका चीजों पर फोकस भी बढ़ता है. दरअसल, छोटे बच्चों में काफी ज्यादा एनर्जी होती है, जिसकी वजह से वे दिन-भर इधर-उधर कूदते-फांदते रहते हैं. आपका अटेंशन पाने के लिए ऊलजुलूल हरकतें करते रहते हैं. यह कह लीजिए कि उनका दिमाग एक जगह फोकस नहीं कर पाता. कहानियों की मदद से वे चीजों पर फोकस करना भी सीख जाते हैं.


टीवी-मोबाइल और लैपटॉप से कहानियां दिखाना कितना सही?
जमाना मॉडर्न हो चुका है तो लोग बच्चों को कहानियां सुनाने और दिखाने के लिए टीवी-मोबाइल और लैपटॉप का सहारा लेने लगते हैं. इससे बच्चों का विकास नहीं होता है, क्योंकि स्क्रीन पर कहानियां विजुअल्स के साथ चलती हैं. ऐसे में बच्चों का पूरा ध्यान उन विजुअल्स पर रहता है और वे उनकी कल्पना ही नहीं कर पाते हैं. दादी-नानी या मम्मी-पापा के मुंह से कहानियां सुनकर बच्चों के अंदर क्रिएटिविटी बढ़ती है, जबकि कहानियां देखने पर उनका ध्यान स्क्रीन पर ही रह जाता है. वे कहानियां सुन और समझ तो लेते हैं, लेकिन उसकी दुनिया को गढ़ने की शक्ति उनके अंदर डिवेलप नहीं हो पाती है.


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