Behavioural Changes In Children: बड़े शहरों में बच्चों की मेंटल तेजी से बिगड़ रही है. टेंशन, मोबाइल की लत, साइबर बुलिंग और पढ़ाई का दबाव ये चार चीजें बच्चों और किशोरों की जिंदगी को अंदर ही अंदर खा रही हैं. एक्सपर्ट का कहना है कि हालात इतने खराब हो चुके हैं कि बड़े लोग बच्चों की परेशानी को पहचान भी नहीं पा रहे. पांडुरंगा रामाराव जिला चिकित्सालय, दुर्ग के मनोचिकित्सा विभाग के प्रोफेसर डॉ. योगेश्वर साहू बताते हैं कि देश को यह समझने की जरूरत है कि मानसिक समस्याओं की शुरुआत बहुत छोटी उम्र से हो जाती है. उनके मुताबिक, “वयस्कों में दिखने वाली आधे से ज्यादा मेंटल हेल्थ दिक्कत 14 साल की उम्र से पहले शुरू हो जाती हैं. बचपन में आई गड़बड़ी पूरी जिंदगी असर छोड़ जाती है.”
भारत में एक बड़ी आबादी
भारत की आबादी में बच्चों की संख्या बेहद बड़ी है, कुल जनसंख्या का 40 प्रतिशत हिस्सा 18 साल से कम उम्र का है. लेकिन मेंटल हेल्थ से जुड़ी सुविधाएं इतनी कम हैं कि 80 से 90 प्रतिशत बच्चों को इलाज तक पहुंच ही नहीं मिल पाती. भय, जागरूकता की कमी और एक्सपर्ट की सीमित उपलब्धता परिवारों को मदद लेने से रोक देती है.
एक्सपर्ट बताते हैं कि, आज के बच्चे पहले की पीढ़ियों से कहीं ज्यादा दबाव झेल रहे हैं, इसमें
- पढ़ाई में अत्यधिक कंपटीशन
- मोबाइल और इंटरनेट का अंधाधुंध इस्तेमाल
- रिश्तों में तनाव
- स्कूल और ऑनलाइन दोनों जगह बदमाशी
एक्सपर्ट बताते हैं कि “बच्चे लगातार उत्तेजना और दबाव के बीच फंसे हुए हैं… सहारा कम है, परेशानी ज्यादा. ज्यादातर बच्चे चुप रहकर सब सहते रहते हैं.”
इन संकेतों पर ध्यान देने की जरूरत
एक्सपर्ट बताते हैं कि कुछ ऐसे संकेत दिखते हैं, जिन्हें मां-बाप और टीचर को कभी नहीं इग्नोर करना चाहिए. शायद यह वही कड़ी हो, जिससे बच्चा यह बताने की कोशिश कर रहा हो कि वह किसी दिक्कत या समस्या का सामना कर रहा है.
- अचानक दूरी बनाना
- चिड़चिड़ापन
- मूड का तेजी से बदलना
- बिना वजह सिरदर्द या पेटदर्द
- पढ़ाई में गिरावट
अगर बच्चा खुद को नुकसान पहुंचाने की बात करे, तो इसे कभी हल्के में न लें.
इन चीजों के लिए प्रोत्साहित करें
अगर आपको बच्चों में डिप्रेशन या बाकी कुछ लक्षण दिखाई देते हैं, तो कोशिश करना चाहिए कि उनको किसी ऐसे काम से जोड़ना चाहिए जहां से वे खुद को अकेला महसूस न करें. इसमें
- रोज का एक्सरसाइज
- खेलकूद
- किसी शौक में समय
- ठीक नींद
- स्वादिष्ट और पौष्टिक आहार
उन्होंने बच्चों के बीच जंक फूड और शक्कर वाले पेयों की बढ़ती आदत को भी खतरनाक बताया, खासकर परीक्षा के दिनों में क्योंकि इससे चिड़चिड़ापन और व्यवहार संबंधी समस्याएं और बढ़ जाती हैं.
सरकार को बढ़ाना चाहिए कदम
सरकार की कई योजनाएं, जैसे राष्ट्रीय बाल स्वास्थ्य कार्यक्रम, स्कूल वेलनेस प्रोग्राम और नई शिक्षा नीति में मानसिक स्वास्थ्य के प्रावधान मौजूद तो हैं, लेकिन इनका दायरा अभी भी बहुत सीमित है. एक्सपर्ट का मानना है कि देश को बच्चों की मानसिक सेहत के लिए और भी मजबूत और व्यापक व्यवस्थाओं की जरूरत है.
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Disclaimer: यह जानकारी रिसर्च स्टडीज और विशेषज्ञों की राय पर आधारित है. इसे मेडिकल सलाह का विकल्प न मानें. किसी भी नई गतिविधि या व्यायाम को अपनाने से पहले अपने डॉक्टर या संबंधित विशेषज्ञ से सलाह जरूर लें.