अहमदाबाद में एक उपभोक्ता अदालत ने बीमा कंपनी को लंग कैंसर के इलाज पर हुए खर्च की अदायगी का आदेश दिया है. कंपनी ने स्वास्थ्य बीमा का दावा ये कहते हुए देने से इंकार कर दिया था कि मरीज को स्मोकिंग की लत थी, जो बीमारी की वजह बनी. अदालत ने कहा कि इसको साबित करने का कोई आधार नहीं है कि मरीज को लंग कैंसर स्मोकिंग की लत के कारण हुआ. अदालत ने ये भी कहा कि स्मोकिंग नहीं करनेवाले भी लंग कैंसर से पीड़ित होते हैं. 


मरीज को इलाज के खर्च का दावा देने से बीमा कंपनी ने किया मना


पॉलिसी धाररक आलोक कुमार बनर्जी ने निजी अस्पताल में लंग कैंसर का इलाज कराया था. इलाज पर 93,297 रुपए खर्च होने के बाद आलोक ने बीमा कंपनी से इंश्योरेंस देने की मांग की. कंपनी ने उसके दावे को इस आधार पर खारिज कर दिया कि उसे स्मोकिंग की लत थी जैसा उसके इलाज के दस्तावेज में बताया गया है. इंश्योरेंस की राशि देने से मना करने पर बनर्जी की पत्नी स्मिता ने अहमदाबाद के उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग में चुनौती दी.


30 सिंतबर को उपभोक्ता अदालत ने उसकी याचिका पर सुनवाई करते हुए माना कि साबित करने के लिए कोई सबूत नहीं है कि उसके पति को स्मोकिंग की लत थी और न ही टिप्पणी करनेवाले डॉक्टर से सबूत का कोई स्पष्टीकरण मांगा गया था. इलाज के दस्तावेजों में किए गए सिर्फ अवलोकन को निर्णायक प्रमाण के रूप में नहीं गिना जा सकता.


उपभोक्ता कोर्ट ने कहा स्मोकिंग से लंग कैंसर का सबूत नहीं निर्णायक


अदालत ने कहा कि इस दावे के समर्थन में स्वतंत्र सबूत पेश किए जाने की जरूरत है. इसलिए, आयोग की राय है कि बीमा कंपनी ने दावे को झूठा कारिज किया अपने समर्थन में किसी निर्णायक सबूत को उपलब्ध किए बिना. अदालत ने कंपनी को दावे के तौर पर 93,297 रुपए आवेदन की तारीख से 7 फीसद ब्याज सहित भुगतान करने का आदेश दिया.


उसके अलावा, कंपनी मानसिक प्रताड़ना के लिए 3,000 और मुकदमे के खर्च पर 2,000 रुपए 30 दिनों के अंदर भुगतान करेगी. पॉलिसी मई 2014 और 2015 के बीच तक वैध थी, और शिकायतकर्ता के पति का इलाज 29 जुलाई, 2014 को हुआ. इलाज पर 93,297 रुपए के हुए खर्च का बीमा कंपनी से दावा किया गया था.


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