दिमाग के इस्तेमाल से लेकर जीभ के स्वाद तक... आप जिन्हें अब तक सच समझ रहे थे वो सब झूठ है
हम बचपन से अपनी ड्राइंग की क्लास में सूरज को हमेशा पीले या नारंगी रंग से रंगते से आए हैं. हमें लगता है कि सूरज पीले या नारंगी रंग का ही होता होगा. लेकिन ऐसा नहीं है.
कुछ बातें ऐसी होती हैं जिन्हें आप बचपन से लेकर बुढ़ापे तक सुनते आते हैं और आपको लगता है कि यह बातें सच भी हैं. चाहे उसमें दिमाग के इस्तेमाल की बात हो या जुबान के स्वाद की या फिर आपसे कहा जाता हो कि अगर आप एक्सरसाइज करना बंद कर देते हैं तो आपकी मांस पेशियों फैट बन जाती हैं. कई लोग तो यहां तक कह देते हैं कि अगर आप बहुत ज्यादा शेविंग करते हैं तो यह आपके बालों की ग्रोथ को प्रभावित करती हैं. लेकिन क्या यह चीजें वाकई में सच है या यह सिर्फ एक मिथक हैं. आज इस आर्टिकल में हम आपको इन्हीं से जुड़ी कुछ तथ्यात्मक चीजें बताएंगे.
एक्सरसाइज बंद कर देने से क्या होता है
यह सच है अगर आप फिट रहना चाहते हैं तो आपको एक्सरसाइज हर दिन जरूर करना चाहिए. लेकिन आपने यह बात भी जरूर सुनी होगी कि अगर आप अपनी एक्सरसाइज अचानक से बंद कर देते हैं तो आपकी मांसपेशियां फैट में बदल जाती हैं. लेकिन क्या यह वाकई में होता है? नहीं! ऐसा बिल्कुल नहीं है. दरअसल जब आप अचानक से एक्सरसाइज करना बंद कर देते हैं तो आपकी मांस पेशियां फैट में तब्दील नहीं होतीं, बल्कि वह सिकुड़ जाती हैं. होता यह है कि जब आप एक्सरसाइज कर रहे होते हैं तो आपकी डाइट भी उस समय सबसे ज्यादा होती है और आपका शरीर ज्यादा कैलोरीज लेने लगता है. लेकिन जैसे ही आप एक्सरसाइज बंद कर देते हैं, आपकी डाइट भी कम हो जाती है. जबकि आपके मांसपेशियों का कैलोरी इनटेक वही रहता है... इस वजह से वह सिकुड़ जाती हैं.
ज्यादा शेविंग से बालों की ग्रोथ प्रभावित होती है
आपने अक्सर सुना होगा कि लोग कहते हैं कि अगर आप ज्यादा शेविंग करते हैं तो आपके बालों की ग्रोथ मजबूत या तेजी से नहीं हो पाती. लेकिन ऐसा बिल्कुल नहीं है. साल 1920 से लेकर अब तक कई रिसर्च हुए हैं और उन शोध में पता चला है कि सेविंग आपके बालों की ग्रोथ रेट को किसी भी तरह से प्रभावित नहीं करती है. दरअसल, होता यह है कि आपके बालों की ग्रोथ को कूप कंट्रोल करते हैं जो स्किन के ठीक नीचे होते हैं और शेविंग इनको प्रभावित नहीं कर पाती है.
क्या डर के शुतुरमुर्ग सच में रेत में अपना सिर डाल देता है
शुतुरमुर्ग को लेकर आपने अक्सर यह बात सुनी होगी कि जब वह किसी चीज से डरता है तो अपने सिर को जमीन में धंसा लेता है. तमाम तरह की कार्टून फिल्मों में भी ऐसा ही दिखाया जाता है. लेकिन यह बिल्कुल सच नहीं है. शुतुरमुर्ग जब भी डर को फील करता है तो वह भागने लगता है, क्योंकि यह दो पैरों पर सबसे तेज भागने वाला पक्षी है. दरअसल, शुतुरमुर्ग जब भी किसी हिंसक जानवर को देखता है तो जमीन पर लेट जाता है और अपनी पूरी बॉडी को जमीन के एकदम पास कर लेता है, ताकि वह उस हिंसक जानवर को दिखाई ना दे. यहीं से इस मिथक की शुरुआत हुई थी.
सूरज के रंग को लेकर मिथक
हम बचपन से अपनी ड्राइंग की क्लास में सूरज को हमेशा पीले या नारंगी रंग से रंगते से आए हैं. हमें लगता है कि सूरज पीले या नारंगी रंग का ही होता होगा. लेकिन ऐसा नहीं है. सूरज का रंग पीला और नारंगी नहीं बल्कि सफेद होता है. सूर्य हमें पीला इसलिए दिखाई देता है क्योंकि वायुमंडल में जब सूरज की रोशनी बिखरती है तो उसका रंग परिवर्तित हो जाता है, इसी की वजह से आसमान दिन में नीला दिखाई देता है और सूरज पीला.
दिमाग को लेकर मिथक
वर्षों से हमें बताया गया है कि इंसान अपने दिमाग का सिर्फ 10% हिस्सा ही इस्तेमाल करता है. लेकिन ऐसा बिल्कुल नहीं है. कई रिसर्च मे यह पता लग चुका है कि अभी तक दिमाग का ऐसा कोई भी एरिया नहीं पाया गया है जो फंक्शन ना करता हो. कई रिपोर्ट तो यहां तक बताते हैं कि जब हम सो रहे होते हैं तब भी हमारे ब्रेन का हर हिस्सा कोई ना कोई एक्टिविटी कर रहा होता है. इसलिए हम यह बहुत आसानी से कह सकते हैं कि हमारा दिमाग सिर्फ 10% नहीं बल्कि पूरा 100 फीसद एक्टिव रहता है.
जीभ के स्वाद को लेकर मिथक
बचपन में हमें पढ़ाया गया है कि जीभ पर अलग-अलग एरिया में अलग-अलग स्वाद के जोन होते हैं. जहां से आपको तरह तरह के स्वाद समझ आते हैं. लेकिन ऐसा बिल्कुल नहीं है. जीभ पर वास्तव में देखा जाए तो कोई जोन नहीं होता. यह मिथक साल 1901 से तब शुरू हुआ, जब हार्वर्ड के साइकोलॉजिस्ट एडविन जी बोरिंग ने एक जर्मन पेपर को गलत ट्रांसलेट कर दिया था. दरअसल, उस पेपर में लिखा था कि डीपी हैनिंग ने जीभ के अलग-अलग हिस्से पर अलग-अलग फ्लेवर को टेस्ट किया, जिसमें कुछ जगह पर कुछ फ्लेवर का स्वाद उन्हें ज्यादा महसूस हुआ. हालांकि, वास्तव में जीभ के ऊपरी सतह पर आप किसी भी जगह पर कोई भी चीज रखें उसका स्वाद पूरे जीभ पर एक जैसा ही मालूम होगा. इसी को जी बोरिंग ने गलत ट्रांसलेट कर दिया था और इसे दशकों तक सच्चाई मान कर बच्चों को पढ़ाया जाने लगा था.
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