उत्तर प्रदेश की राजनीति में तीन दशक तक प्रभावशाली भूमिका निभाने के बाद मायावती के नेतृत्व वाली बहुजन समाज पार्टी (बसपा) हाशिये पर चली गई है और पार्टी ने विधानसभा चुनावों में अब तक का सबसे खराब प्रदर्शन किया है.


वहीं पार्टी ने 2017 के उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव में 19 सीट जीती थीं और 21 प्रतिशत से अधिक वोट हासिल करने में सफल रही थी. लेकिन इस बार बसपा 12.79 फीसदी मतों के साथ इकाई के अंक तक सिमट गई है. वह मात्र एक सीट पर लीड कर रही है और वहां भी अभी काउंटिंग जारी है. वर्ष 2007 में जब बसपा ने उत्तर प्रदेश में सरकार बनाई थी तो उसे 206 सीट और 30.43 प्रतिशत मत हासिल हुए थे.


बीजेपी और सपा को रोकने में विफल रहीं मायावती


चुनावी पर्यवेक्षकों का मानना ​​है कि मायावती अपने मूल मत आधार को समाजवादी पार्टी (सपा) और भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) की ओर बढ़ने से रोकने में विफल रहीं. पारंपरिक मतदाताओं के एक धड़े ने बसपा को छोड़कर बीजेपी की ओर रुख कर लिया क्योंकि उन्हें लगा कि सत्तारूढ़ पार्टी ने वास्तव में विभिन्न कल्याणकारी योजनाओं के माध्यम से उनकी मदद की है.


वहीं, बसपा के कुछ कट्टर समर्थकों ने महसूस किया कि उत्तर प्रदेश में विपक्ष का प्रतिनिधित्व करने के लिए सपा ही असली ताकत है. पर्यवेक्षकों ने दावा किया कि पार्टी इस विमर्श को रोकने में भी विफल रही कि उसने बीजेपी के सामने "आत्मसमर्पण" कर दिया है.


चुनावों से पहले कई नेताओं ने छोड़ी पार्टी


बसपा को आकार देने में मदद करने वाले इंद्रजीत सरोज, लालजी वर्मा, राम अचल राजभर और त्रिभुवन दत्त जैसे कई नेताओं ने भी पार्टी छोड़ दी और सपा का रुख कर लिया. बसपा से उनके बाहर निकलने से पार्टी के प्रमुख मतदाता असमंजस में पड़ गए, जिन्होंने राज्य में बीजेपी और सपा सहित अन्य विकल्पों की तलाश की.


लेकिन कुछ पर्यवेक्षकों का विचार था कि बीजेपी क्रमशः सपा और बसपा के "गैर-यादव ओबीसी" तथा "गैर-जाटव दलित" मतदाताओं को अपने पाले में लाने में सक्षम है. बसपा ने 2019 के लोकसभा चुनाव में सपा के साथ गठबंधन कर सपा से बेहतर प्रदर्शन किया था. लोकसभा में बसपा ने 10 सीट जीतीं जबकि सपा पांच सीट पर ही जीत दर्ज कर पाई.


बसपा के पास था सबसे बड़ा दलित आधार


पर्यवेक्षकों ने कहा कि जाहिर तौर पर मायावती ने गठबंधन तोड़ने का जल्दबाजी में कदम उठाया. उनका मानना है कि बसपा का जमीनी कार्यकर्ता बीजेपी से मुकाबले के लिए गठबंधन जारी रखने के पक्ष में था. बसपा का वर्तमान प्रदर्शन 2007 के विधानसभा चुनाव में रहे उसके प्रदर्शन के एकदम विपरीत है जब मायावती को ब्राह्मणों को एक ऐसी पार्टी की ओर आकर्षित करने के लिए सोशल इंजीनियरिंग के फॉर्मूले का श्रेय दिया गया था जिसके पास एक विशाल दलित आधार था.


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