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Kamalnath-Digvijay Political Relations: सबसे बड़े सियासी दोस्त से अदावत भी कम नहीं, दिलचस्प है दिग्विजय-कमलनाथ की तीन दशक पुरानी सियासी जुगलबंदी की कहानी

Kamal Nath And Digbijay Singh Political Chemistry: मध्य प्रदेश चुनाव में दिग्विजय सिंह के बेटे जयवर्धन सिंह को टिकट मिला है. कमलनाथ से लाख तल्खी के बावजूद दिग्विजय सिंह का रिश्ता दशकों पुराना रहा है.

Madhya Pradesh Election Campaign: राजनीति में यही ध्रुव सत्य है कि कोई किसी का स्थाई सगा नहीं होता. फिलहाल देश के पांच राज्यों में विधानसभा चुनाव होने हैं. इनमें मध्य प्रदेश की चर्चा सबसे तेज है क्योंकि प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष कमलनाथ और सूबे के बड़े कांग्रेस नेता दिग्विजय सिंह के बीच तल्खियां सुर्खियां बनी हुई हैं.

प्रदेश में कांग्रेस उम्मीदवारों के घोषणा के बाद नाराज नेताओं के समर्थकों से कमलनाथ कह रहे हैं - जाकर दिग्विजय और उनके बेटे के कपड़े फाड़ो. बीजेपी ने जब इस वीडियो को सोशल मीडिया पर शेयर किया तो सूबे में सियासी भूचाल आ गया. वैसे कमलनाथ और दिग्विजय दोनों के बीच तल्खी कोई नई बात नहीं है, बावजूद दोनों एक दूसरे से मधुर पारिवारिक और राजनैतिक रिश्ते के दावे करते हैं.

भारत जोड़ो यात्रा में भी कमलनाथ ने उठाए थे सवाल

इसके पहले राहुल गांधी की भारत जोड़ो यात्रा के समय भी कमलनाथ ने दिग्विजय पर राहुल गांधी के सामने अति सक्रिय रहने के आरोप लगाए थे. उन्होंने कहा था कि दिग्विजय ने अपना चेहरा खूब दिखाया. यानी राहुल गांधी  की उपस्थिति में अती सक्रिय रहे. दिग्विजय भी कमलनाथ पर गाहे-बगाहे ऐसी टिप्पणी करते रहे हैं. हालांकि ऐसे हर सवाल पर दोनों एक दूसरे से तल्खी से इनकार करते हैं. आखिर मध्य प्रदेश कांग्रेस के इन दोनों नेताओं की यह केमिस्ट्री क्या है?

कमलनाथ की बदौलत पहली बार सीएम बने दिग्विजय

वैसे मध्य प्रदेश की सियासत में भले ही कांग्रेस और बीजेपी के बीच सियासी रण होते रहे हैं, लेकिन कांग्रेस के दोनों बड़े नेताओं दिग्विजय सिंह और कमलनाथ के बीच भी जुगलबंदी हमेशा सुर्खियों में रहती है. इसकी कहानी भी तीन दशक पुरानी है. दिग्विजय सिंह पहली बार 1971 में राघोगढ़ नगर पालिका के अध्यक्ष पद का चुनाव जीतने के बाद 1977 में पहली बार राघोगढ़ से ही विधायक चुने गए. वहीं कमलनाथ ने 1980 में छिंदवाड़ा लोकसभा सीट से चुनाव लड़कर सियासत में कदम रखा था. कमलनाथ ने दिल्ली में कांग्रेस नेतृत्व के साथ नजदीकी बढ़ाई तो दिग्विजय ने सूबे की रियासत में पांव जमा लिए थे.

1993 के चुनाव में कांग्रेस बहुमत के साथ सत्ता में लौटी थी. तब केंद्र में पीवी नरसिम्हा राव के नेतृत्व में कांग्रेस की सरकार थी. मध्य प्रदेश में किसे मुख्यमंत्री बनाया जाएगा, इसे लेकर मंथन हो रहा था. दिग्विजय सिंह के अलावा माधवराव सिंधिया और श्यामा चरण शुक्ल इस रेस में थे. बाद में जब सिंधिया ने श्यामा चरण का समर्थन कर दिया तब दिग्विजय और श्यामा चरण के बीच मुकाबला रह गया था. ऐसे समय में कमलनाथ ही दिग्विजय के लिए सबसे बड़ा सहारा बनकर उतरे थे.

कमलनाथ ने की थी दिग्विजय  को मुख्यमंत्री बनाने की पैरोकारी

कमलनाथ ने नरसिम्हा राव से विधायकों की राय जानने को कहा और इसकी जिम्मेवारी कमलनाथ को ही सौंप दी गई. अधिकतर विधायकों ने दिग्विजय का समर्थन किया, जिसके बाद कमलनाथ ने यह जानकारी नरसिम्हा राव को दी और 1993 में पहली बार दिग्विजय सिंह मध्य प्रदेश के सीएम बने. वह 2003 तक लगातार दो बार सूबे के मुख्यमंत्री रहे.

दिग्विजय ने भी चुकाया कर्ज

कमलनाथ की वजह से पहली बार मध्य प्रदेश का मुख्यमंत्री बनने का सफर जब दिग्विजय सिंह ने शुरू किया तो उन्होंने हमेशा इस तरफदारी को याद रखा. 2018 के चुनाव में जब एक बार फिर कांग्रेस जीती तब कमलनाथ मध्य प्रदेश कांग्रेस के अध्यक्ष थे और सीएम पद के सबसे प्रबल दावेदार भी. कमलनाथ पहली बार विधायक भी बने थे. साथ ही ज्योतिरादित्य सिंधिया (अब बीजेपी में) भी इस रेस में थे. दिल्ली में दोनों को लेकर मैराथन बैठक होती रही लेकिन कहते हैं कि दिग्विजय ने 1993 का कर्ज चुकाया और कमलनाथ का समर्थन किया.

उन्होंने राहुल गांधी के सामने कहा था कि सिंधिया युवा हैं, उनके पास अभी बहुत समय है. कमलनाथ अनुभवी हैं, उन्हीं को मध्य प्रदेश की कमान दी जाए. इसके बाद कांग्रेस आला कमान ने कमलनाथ को मध्य प्रदेश का सीएम बनाने का ऐलान कर दिया. हालांकि दो साल बाद ही विधायकों ने सिंधिया के नेतृत्व में विद्रोह किया और कमलनाथ सरकार गिर गई. तब बागी विधायकों के साथ सिंधिया बीजेपी से जा मिले और शिवराज सिंह चौहान के नेतृत्व में फिलहाल सूबे में बीजेपी की सरकार है.

बेटे को राजनीति में मुकाम दिलाना चाहते हैं दिग्विजय

एक बार फिर मध्य प्रदेश के सियासी रण में कमलनाथ का नाम कांग्रेस की जीत होने पर मुख्यमंत्री पद के लिए आगे चल रहा है, और खबर है कि लाख तल्खी के बावजूद दिग्विजय कमलनाथ के नेतृत्व में ही सरकार बनाने की खुलकर समर्थन कर रहे हैं. आखिर इसकी क्या वजह है. राजनीतिक विश्लेषकों की मानें तो इस बार चुनाव में दिग्विजय सिंह के बेटे जयवर्धन सिंह को भी टिकट मिला है और दिग्विजय के लिए यह अपने बेटे को सियासत में सेट करने का बड़ा मौका है. इसलिए दिग्विजय तमाम तल्खियों के बावजूद कमलनाथ की दावेदारी की सबसे प्रबल पैरोकारी कर रहे हैं. 1993 में कमलनाथ का एहसान और बेटे को भी राजनीति में सफलता का स्वाद चखाने की दिग्विजय सिंह की चाहत ने कमलनाथ से सियासी अदावत के बावजूद रिश्ते मधुर रखने का रास्ता साफ रखा है.

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