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लोकसभा चुनाव: देवरिया सीट पर होगी बीजेपी की गठबंधन से सीधी टक्कर, जानें इतिहास से लेकर सांसद के रिपोर्ट कार्ड तक सबकुछ
देवरिया संसदीय सीट का इतिहास देश के पहले लोकसभा चुनाव (1952) के साथ ही पुराना है. यहां पर लंबे समय तक कांग्रेस का दबदबा रहा. लेकिन 1991 के बाद उसका असर यहां से कम होने लगा और मुकाबला बीजेपी, सपा और बसपा के बीच ही होने लगा.
![लोकसभा चुनाव: देवरिया सीट पर होगी बीजेपी की गठबंधन से सीधी टक्कर, जानें इतिहास से लेकर सांसद के रिपोर्ट कार्ड तक सबकुछ Loksabha election 2019- Full details of Deoria Loksabha seat there will be direct fight between alliance and BJP लोकसभा चुनाव: देवरिया सीट पर होगी बीजेपी की गठबंधन से सीधी टक्कर, जानें इतिहास से लेकर सांसद के रिपोर्ट कार्ड तक सबकुछ](https://static.abplive.com/wp-content/uploads/sites/2/2019/04/24124313/SP-BSP-flags.jpg?impolicy=abp_cdn&imwidth=1200&height=675)
देवरियाः लोकसभा चुनाव में प्रत्याशी को लेकर उहापोह के बाद अब हार-जीत का ताना-बाना पार्टियां बुन रही हैं. बीजेपी से लेकर गठबंधन और कांग्रेस शीर्ष नेतृत्व भी जातीय समीकरण के साथ जनता के बीच अपनी पहुंच का आंकलन कर रही है. जिला, तहसील और ब्लॉक स्तर पर जोड़-तोड़ और माहौल को परखा जा रहा है. देवरिया लोकसभा सीट पर भी मुकाबला काफी रोचक होता नजर आ रहा है. यहां के पिछले सांसद का रिपोर्ट कार्ड कैसा रहा है. साल 2014 का जनादेश कैसा रहा है. इसके साथ ही इस सीट के राजनीतिक इतिहास पर नजर डालते हैं. लेकिन, फिलहाल साल 2019 के लोकसभा चुनाव में इस सीट पर बीजेपी और गठबंधन के बीच सीधी टक्कर होती दिख रही है. ये भी देखना होगा कि संतकबीरनगर के जूताकांड का असर कहीं देवरिया में भी तो नहीं दिखाई देगा.
देवरिया लोकसभा सीट से काफी मंथन के बाद बीजेपी के पूर्व प्रदेश अध्यक्ष रमापति राम त्रिपाठी को टिकट देकर मैदान में उतारा गया है. इसके पहले कलराज मिश्र यहां से सांसद रहे हैं. उन्होंने बढ़ती उम्र के कारण चुनाव लड़ने से इंकार कर दिया था. इस सीट पर मंथन के बीच ही संतकबीरनगर में हुए जूताकांड ने बीजेपी की खूब किरकिरी कर दी. ऐसे में वहां के सांसद और बीजेपी के पूर्व प्रदेश अध्यक्ष रमापति राम त्रिपाठी के बेटे शरद त्रिपाठी के टिकट कटने की चर्चा ने जोर पकड़ लिया. आखिरकार बीजेपी ने वहां से सपा से बीजेपी में आए प्रवीण निषाद को मैदान में उतार दिया.
उसके बाद डैमेज कंट्रोल के लिए देवरिया सीट पर शरद त्रिपाठी के पिता रमापति राम त्रिपाठी को टिकट देकर मैदान में उतार दिया गया. पार्टी में अच्छी छवि रखने वाले वरिष्ठ बीजेपी नेता रमापति राम त्रिपाठी और उनके पुत्र शरद त्रिपाठी ने भी इसे सहर्ष स्वीकार कर लिया. गठबंधन में बसपा के खाते में आई इस सीट पर बिहार के बड़े कारोबारी और पूर्व सांसद गोरख प्रसाद जायसवाल के दामाद विनोद जायसवाल को टिकट दिया गया है. वहीं कांग्रेस ने पिछली बार बीएसपी से लड़ चुके नियाज अहमद का टिकट कटने के बाद उन्हें मैदान में उतारा है.
2014 का जनादेश 2014 के लोकसभा चुनाव के समय देवरिया में 18,06,926 वोटर्स रहे हैं. जिसमें, 9,97,314 पुरुष और 8,09,612 महिला मतदाता थे. उस दौरान इस संसदीय क्षेत्र में 9,71,557 यानी 53.8% मतदान हुआ. जिसमें 53.1% यानी 9,59,152 वोट मान्य पाए गए, जबकि यहां पर 12,405 वोट यानी कुल मतों का 0.7% नोटा में पड़ा. यहां पर साल 2014 में बीजेपी के कलराज मिश्रा ने जीत हासिल की थी. उन्होंने चुनाव में 51.1% यानी 4,96,500 वोट हासिल किया था. उन्होंने बसपा के नियाज अहमद को 2,65,386 (27.3%) मतों से हराया. तीसरे स्थान पर समाजवादी पार्टी के बालेश्वर यादव रहे. जिनको 1,50,852 यानी 15.5% वोट हासिल हुआ. कांग्रेस यहां पर चौथे स्थान पर खिसक गई. इस चुनाव में 15 लोगों ने अपनी किस्मत आजमाई थी.सांसद का रिपोर्ट कार्ड
उत्तर प्रदेश की राजनीति में बड़े नेताओं में शुमार किए जाने वाले कलराज मिश्रा 2014 में लोकसभा में पहली बार पहुंचे. वह रक्षा मामले से जुड़ी स्टैंडिंग कमेटी के सदस्य हैं. 77 साल के इस सांसद ने पोस्ट ग्रेजुएट की डिग्री हासिल की है. वह बचपन से ही आरएसएस से जुड़े हुए हैं. वह तीन बार राज्यसभा (1978, 2001 और 2006) में रहे. वह मार्च, 1997 से अगस्त, 2000 तक उत्तर प्रदेश सरकार में भी मंत्री रहे हैं. कलराज मिश्रा गाजीपुर के मलिकपुर में एक ब्राह्मण परिवार से ताल्लुक रखते हैं. उनके पिता रामज्ञा मिश्रा एक अध्यापक रहे हैं. 1941 में गाजीपुर में पैदा होने वाले कलराज ने वाराणसी के महात्मा गांधी काशी विद्यापीठ से एमए की डिग्री हासिल की है. वह पेशे से किसान और सामाजिक कार्यकर्ता हैं. उनके परिवार में दो बेटे और एक बेटी है.
संसद में उपस्थिति
लोकसभा में जहां उनकी उपस्थिति का सवाल है तो उनकी उपस्थिति 95 फीसदी रही है. जबकि इस मामले में वह राष्ट्रीय औसत (80 फीसदी) और राज्य औसत (87 फीसदी) से अधिक है. वह केंद्र में नरेंद्र मोदी सरकार के आने के बाद मंत्री बने और 3 सितंबर, 2017 तक लघु, कुटीर और मध्यम उपक्रम मंत्रालय में मंत्री रहे. संसद में सितंबर, 2017 तक मंत्री रहने के दौरान वह सवाल नहीं पूछ सकते थे. लेकिन, इसके बाद सांसद के रूप में उन्होंने कोई सवाल नहीं पूछे. लेकिन इस दौरान उन्होंने महज एक बहस में हिस्सा लिया है. वहीं प्राइवेट मेंबर्स बिल भी पेश नहीं किया.देवरिया संसदीय सीट का इतिहास
देवरिया संसदीय सीट का इतिहास देश के पहले लोकसभा चुनाव (1952) के साथ ही पुराना है. यहां पर लंबे समय तक कांग्रेस का दबदबा रहा. लेकिन 1991 के बाद उसका असर यहां से कम होने लगा और मुकाबला बीजेपी, सपा और बसपा के बीच ही होने लगा. देवरिया जिले के पहले सांसद रहे विश्वनाथ राय और लगातार चार बार वहां से सांसद चुने गए. महान संत देवरहा बाबा की धरती देवरिया लोकसभा क्षेत्र उत्तर प्रदेश के 80 संसदीय सीटों में से एक है. इसकी संसदीय संख्या 66 है.
कैसे पड़ा देवरिया नाम
देवरिया का इतिहास काफी पुराना है. माना जाता है कि देवरिया नाम की उत्पत्ति ‘देवारण्य’ या ‘देवपुरिया’ से हुई थी. आधिकारिक आंकड़ों के अनुसार, ‘देवरिया’ नाम इसके मुख्यालय के नाम से लिया गया है. इसका मतलब होता है एक ऐसा स्थान, जहां कई मंदिर होते हैं.
राजनीतिक पृष्ठभूमि
देवरिया संसदीय सीट का इतिहास देश के पहले लोकसभा चुनाव (1952) के साथ ही पुराना है. देवरिया जिले के पहले सांसद रहे विश्वनाथ राय और लगातार चार बार वहां से सांसद चुने गए. वह कांग्रेस के दिग्गज नेताओं में थे. वह 1952 से 57 तक पहले लोकसभा में यहां का प्रतिनिधित्व किया.
विश्वनाथ राय इसके बाद 1957-62, 1962-67 और 1967-70 तक लोकसभा में यहां से चुने गए. यहां से राजमंगल पांडे भी (1984 और 1989) सांसद रहे. 1991 के बाद की यहां की राजनीति की बात करें तो मोहन सिंह जनता दल के टिकट पर 1991 में चुने गए. 1996 में बीजेपी ने अपना खाता यहां से खोला और प्रकाश मणि त्रिपाठी चुने गए. बीजेपी यहां पर 1996 के अलावा 1999, 2009 और 2014 में विजयी रही थी. 2014 में कलराज मिश्रा ने बीजेपी के टिकट पर जीत हासिल कर यह सीट बीएसपी से छीनी थी.सामाजिक ताना-बाना और जनसंख्या
2011 की जनगणना के अनुसार देवरिया जिले की आबादी 31 लाख से ज्यादा है. यह उत्तर प्रदेश का 32वां सबसे घनी आबादी वाला जिला है. यहां पर कुल आबादी 31,00,946 है. जिसमें पुरुषों की 15,37,436 (50%) और महिलाओं की 15,63,510 लाख (50%) है. ज्यादातर आबादी गांव में रहती है. गांवों में 27,84,143 आबादी रहती है. जाति के आधार पर देखा जाए तो यहां पर सामान्य वर्ग की आबादी 81 फीसदी है. तो अनुसूचित जाति की आबादी 15 फीसदी और अनुसूचित जनजाति की महज चार फीसद आबादी यहां रहती है.
धर्म के आधार पर जनसंख्या और लिंगानुपात
धर्म के आधार पर देखा जाए तो 88.1% लोग हिंदू धर्म से संबंधित हैं. तो 11.6% लोग मुस्लिम समाज से आते हैं. अन्य धर्म के मानने वालों की संख्या महज 0.3% है. देवरिया का लिंगानुपात सकारात्मक है. प्रति हजार पुरुषों पर 1,017 महिलाएं हैं. साक्षरता दर का स्तर देखा जाए, तो यहां की साक्षरता 71% है. जिसमें, पुरुषों की 83% और महिलाओं की 59% आबादी साक्षर है.
देवरिया संसदीय सीट में आती हैं पांच विधानसभा
देवरिया संसदीय क्षेत्र के अंतर्गत पांच विधानसभा क्षेत्र आती हैं. इसमें देवरिया, तमकुहीराज, फाजिलनगर, पथरदेवा और रामपुर कारखाना शामिल है. यहां से एक भी विधानसभा सीट अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित नहीं है. देवरिया विधानसभा क्षेत्र से बीजेपी के जनमेजय सिंह विधायक हैं. जिन्होंने, 2017 के चुनाव में समाजवादी पार्टी के जेपी जयसवाल को 46,236 मतों से हराया था. तमकुहीराज विधानसभा से कांग्रेस के अजय कुमार लल्लू ने बीजेपी के जगदीश मिश्रा को 18,114 मतों के अंतर से हराकर विधानसभा में अपनी सीट बचाने में कामयाब रही थी.
फाजिलनगर विधानसभा सीट से बीजेपी के गंगा सिंह कुशवाहा ने 2017 के चुनाव में सपा के विश्वनाथ को 41,922 मतों के अंतर से हराया था. वहीं पथरदेवा से बीजेपी के सूर्य प्रताप शाही ने सपा के शाकिर अली को 42,997 मतों के अंतर से हराया था. जबकि रामपुर कारखाना से बीजेपी के कमलेश शुक्ला ने सपा के फासिहा मंजर गजाला लारी को 9,987 मतों के अंतर से हराया था. देवरिया के 5 विधानसभा के परिणाम के आधार पर देखा जाए तो चार सीट पर बीजेपी का कब्जा है. जबकि एक सीट पर कांग्रेस की पकड़ है. सपा-बसपा का यहां पर खाता ही नहीं खुला. खास बात यह है कि इन सीटों पर हार-जीत का अंतर भी काफी ज्यादा है.
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