How To Recognise Depression In Your Ward: बोर्ड परीक्षाओं के बारे में बचपन से ही इतनी चर्चा होती है कि जब तक बच्चा बड़ा होता है उसके दिमाग में कूट-कूटकर भर जाता है कि ये बहुत ही जरूरी पेपर होते हैं. जाहिर हैं जरूरी हैं तो इनमें स्कोर करना और भी जरूरी हो जाता है. कुछ बच्चे इस प्रेशर को आसानी से डील कर लेते हैं, कुछ कठिनाई से तो कुछ डील नहीं कर पाते. इस बात में कोई शक नहीं की दुनिया का कोई भी एग्जाम बच्चे की सेहत और जिंदगी से बढ़कर नहीं होता. ऐसे में अगर आप भी बोर्ड परीक्षाओं के पहले और बाद में बच्चे में ये लक्षण देखें तो चौकन्ने हो जाएं.


क्या कहना है एक्सपर्ट्स का


इस बारे में साइकेट्रिस्ट डॉ. आलोक बाजपेयी का कहना है कि बोर्ड एग्जाम के प्रेशर को हैंडल करने वाले बच्चे दो तरह के होते हैं. एक तो वे जो समस्या होने, स्ट्रेस होने पर खुद ही आकर अपने पैरेंट्स से शेयर कर लेते हैं और ये बहुत अच्छी बात है. दूसरे वे जो अंदर ही अंदर परेशान होते रहते हैं पर कुछ कहते नहीं. ऐसे बच्चों के पैरेंट्स को थोड़ा ज्यादा सतर्क रहना चाहिए. वे लक्षणों के बारे में ये बताते हैं.


क्या हैं लक्षण


लक्षणों की बात करें तो अगर आप अपने बच्चे के व्यवहार में किसी तरह का बड़ा बदलाव देखें जैसे वो अचनाक चुप रहने लगे, लोगों से मिलना-जुलना बंद कर दें, कम बोले, खाना-पीना न खाए, दोस्तों से मिलना या बात करना भी एवॉएड करे तो समझ जाएं कुछ गड़बड़ है. अपने पसंदीदा कामों में भी रुचि न दिखाए, स्लीपिंग पैटर्न में बदलाव हो (इसमें ज्यादा सोना और कम सोना दोनों शामिल हैं), नॉर्मल रूटीन बदल जाए, पढ़ाई करना बंद कर दे, उसे घबराहट हो, पूरे समय मोबाइल चलाता रहे तो भी उससे बात करें.


कुछ अलग करता है तो


अगर आपका बच्चा अचनाक पढ़ाई कम कर देता है और मोबाइल या टीवी से ज्यादा चिपकने लगता है. अगर वो सोने ज्यादा लगता है तो इसे उसकी बदमाशी में काउंट न करें. अगर आपका सिंसियर बच्चा अचानक ऐसे काम कर रहा है तो मान लीजिए अपने मन में चल रही उलझनों से भागने के लिए वह दिमाग डायवर्ट करने के तरीके तलाश रहा है. उससे बात करें, उसे आपकी मदद चाहिए, ऐसे में उसे डांटें-डपटें कतई नहीं.


कैसे पहचानें स्ट्रेस और डिप्रेशन में अंतर


इस बारे में एजुकेशनल काउंसलर और साइकोलॉजिस्ट डॉ. अमिता बाजपेयी का कहना है कि स्ट्रेस होगा तो कुछ समय में चला जाएगा लेकिन डिप्रेशन की शुरुआत होगी तो लक्षण ज्यादा समय तक रहते हैं. अगर सैडनेस लंबे समय तक रह रही है तो उससे बात करें. पैरेंट्स से अच्छा उसे कोई नहीं समझ सकता और मां-बाप जीवन के इतने महत्वपूर्ण लोग होते हैं कि जब वे साथ देते हैं और समझते हैं तो एक अलग ही लेवल का कांफिडेंस बच्चे में आ जाता है.


कब करें एक्सपर्ट से संपर्क


हमेशा अरुचि या स्ट्रेस डिप्रेशन ही नहीं होता. कई बार एग्जाम स्ट्रेस की वजह से इमोशनल अनस्टेबिलिटी भी होती है. ये कुछ समय में चली जाती है. बच्चा आप से बात करके ठीक महसूस करता है तो उसका संबल बनें और उसे बताएं की कोई परीक्षा उससे ज्यादा जरूरी नहीं. थोड़ा-बहुत प्रेशर जिसे पॉजिटिव प्रेशर कहते हैं, वो ठीक है लेकिन हद से ज्यादा तनाव को खुद पर हावी न होने दें. अगर लंबे समय तक बच्चा इसी स्थिति में रहता है और दोस्तों, पैरेंट्स किसी के भी कुछ भी कहने से उस पर असर नहीं पड़ रहा तो साइकोलॉजिस्ट या साइकेट्रिस्ट किसी से भी मिल सकते हैं. किसी तरह के टैबू में न फंसे, ये एक छोटी सी सामान्य समस्या है जो विशेषज्ञ की मदद से आसानी से ठीक हो सकती है. 


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