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Russia-Ukraine War: रूस-यूक्रेन युद्ध के एक साल हो रहे पूरे, जानिए कैसे वैश्विक अर्थव्यवस्था को युद्ध ने पहुंचाई सबसे बड़ी चोट

Global Economy: रूस और यूक्रेन के युद्ध ने सबसे ज्यादा नुकसान वैश्विक अर्थव्यवस्था को हुआ है. युद्ध अपने साथ बेकारी, बेरोजगारी, महंगाई और आंशिक मंदी अपने साथ लेकर आया है.

Russia-Ukraine War: 24 फरवरी 2023 को रूस के यूक्रेन पर हमले के एक साल पूरे हो जायेंगे. और बड़ी बात ये है कि दोनों देशों के बीच युद्ध एक साल बाद भी अब तक जारी है जिसमें 19,000 से ज्यादा आम नागरिक अपनी जान गंवा चुके हैं. लाखों लोग बेघर हो चुके हैं. इस तबाही के कारण यूक्रेन की अर्थव्यवस्था को अरबों डॉलर का नुकसान हो चुका है. यूक्रेन पर युद्ध थोपने के चलते रूस पर जो आर्थिक प्रतिबंध लगाया गया उससे रूसी अर्थव्यवस्था को बड़ा खामियाजा उठाना पड़ा है. लेकिन भारत ने रूस से कच्चे तेल की खरीदारी कर उसकी अर्थव्यवस्था को होने वाले नुकसान को सीमित कर दिया. 

कमोडिटी के दामों में लगी आग

रूस ने यूक्रेन पर जैसे ही हमला बोला उसके कुछ दिनों बाद ही अंतरराष्ट्रीय बाजार में कमोडिटी के दामों में आग लग गई. कच्चा तेल 140 डॉलर प्रति बैरल के करीब जा पहुंचा जो 2008 के बाद कच्चे तेल के दामों का सबसे ऊंचा स्तर था. गैस के दामों से लेकर स्टील, एल्युमिनियम, निकेल से लेकर सभी कमोडिटी के दाम आसमान छूने लगे. जिसका असर वैश्विक अर्थव्यवस्था पर देखा गया. वैश्विक महंगाई आसमान छूने लगी. युद्ध के चलते सप्लाई बाधित हो गई. यूक्रेन पर हमला बोलने के बाद अमेरिका और यूरोपीय देशों ने रूस पर आर्थिक प्रतिबंध लगा दिया जिससे रूस को आर्थिक तौर से नुकसान पहुंचाई जा सके. 

गेहूं और खाने के तेल में लगी आग 

रूस के यूक्रेन पर हमले के चलते रूस और यूक्रेन से दुनियाभर के देशों में बेचे जाने वाले गेहूं पर ब्रेक लग गया. दुनियाभर में गेहूं के एक्सपोर्ट्स में दोनों देशों की हिस्सेदारी एक चौथाई फीसदी से भी ज्यादा है. खाने के तेल सनफ्लावर ऑयल में भी आग लग गई. युद्ध के चलते दुनियाभर में गेहूं समेत अन्य खाद्य वस्तुओं की कीमतों आसमान छूने लगी. दुनियाभर में गेहूं की किल्लत हो गई. तो भारत को भी घरेलू जरुरतों को पूरा करने के लिए गेहूं के निर्यात पर रोक लगाना पड़ा. क्योंकि घरेलू बाजार में गेहूं के दाम आसमान छूने लगे थे जिससे आटा समते उससे बनने वाली चीजें महंगी हो रही थी. ग्लोबल फूड प्राइसेज अब तक के अपने एतिहासिक स्तरों पर जा पहुंचा.

महंगाई के चलते हुआ कर्ज महंगा 

रूस के यूक्रेन पर हमले के बाद कच्चा तेल-गैस समेत दूसरे कमोडिटी के दामों में तेजी आई, खाद्य वस्तुएं महंगी हो गई तो दुनियाभर के देशों पर इसका असर पड़ा. अमेरिका ब्रिटेन में महंगाई दर 40 सालों के उच्चतम स्तर पर जा पहुंचा. भारत समेत सभी दूसरे देशों में भी महंगाई छप्परफाड़ बढ़ गई. नतीजा सभी  देशों के सेंट्रल बैंकों को कर्ज महंगा करना पड़ा है. बीते एक वर्ष में सेंट्रल बैंक बीते कई चरणों में अनेकों बार ब्याज दरों में बढ़ोतरी कर चुके हैं. भारत में भी आरबीआई कर्ज महंगा करता रहा है. दुनियाभर में कर्ज महंगा होता रहा जिससे लोगों की ईएमआई महंगी गई. तो कॉरपोरेट्स के बैलेंसशीट पर भी महंगे कर्ज का असर पड़ा है. महंगे कर्ज से मांग घट रही है. ऐसे में कंपनियां छंटनी कर रही हैं. 

स्थानीय करेंसी हुआ ढेर 

अमेरिका के फेड रिजर्व ने कर्ज महंगा किया तो विदेशी निवेशक इमर्जिंग मार्केट्स से निवेश निकालने लगे. भारत में भी ऐसा ही देखने को मिला. अक्टूबर 2021 के बाद से विदेशी निवेशकों ने 2 लाख करोड़ रुपये के करीब अपने निवेश निकाल लिए थे. जिससे स्थानीय करेंसी रुपया डॉलर के मुकाबले कमजोर होती चली गई. भारत में डॉलर के मुकाबले रुपया 10 फीसदी तक कमजोर हो गया और एक डॉलर के मुकाबले 83 के लेवल पर रुपया आ गया. विदेशी निवेशकों के निवेश निकालने और रुपये को संभालने के लिए आरबीआई ने जो डॉलर बेचे उससे विदेशी मुद्रा भंडार में 100 अरब डॉलर से ज्यादा की कमी आ गई जो अक्टूबर 2021 मे 645 अरब डॉलर था. विदेशी निवेशकों की बिकवाली के चलते दुनियाभर के शेयर बाजार औंधे मुंह गिर गए. 

भारत ने रूस को किया बेलआउट 

रूस पर आर्थिक प्रतिबंध लगा तो उसने भारत को अंतरराष्ट्रीय दाम से बेहद कम कीमत पर कच्चा तेल बेचने का ऑफर दिया. नतीजा बीते एक साल में रूस की अर्थव्यवस्था को भारत का सहारा मिला है. भारत ने सस्ते कच्चे तेल का भरपूर लाभ उठाया. भारत की तेल कंपनियां सस्ते दामों पर रूस से कच्चा तेल आयात कर रही हैं. सऊदी अरब, इराक से लेकर दूसरे खाड़ी के देशों से भारत कच्चे तेल आयात किया करता था लेकिन रूस भारत का सबसे बड़ा ऑयल ट्रेडिंग पार्टनर बन चुका है. भारत के कुल कच्चे तेल के आयात में रूस की हिस्सेदारी 26 फीसदी हो चुकी है जो पहले बेहद कम थी. बहरहाल कच्चे तेल के दाम अब 82 डॉलर प्रति बैरल तक घट चुका है तो गैस के दाम भी फरवरी 2022 के मुकाबले आधा हो चुका है. लेकिन रूस के यूक्रेन पर हमले का खामियाजा लंबे समय तक वैश्विक अर्थव्यवस्था को उठाना होगा. दुनियाभर में आंशिक मंदी की आशंका गहरा गई है. 2023 में भी इस युद्ध का असर देखने को मिल सकता है.  

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