बीते कुछ सालों में भारतीय लोगों की वित्तीय आदतों में बदलाव आया है. एक हालिया रिपोर्ट इस संबंध में चिंताजनक तस्वीर पेश करती है. रिपोर्ट बताती है कि भारतीय परिवार बैंकों में जितना पैसा जमा कर रहे हैं, उससे ज्यादा वे कर्ज ले रहे हैं. यह ट्रेंड पिछले तीन साल से लगातार चला आ रहा है.


भारतीयों ने जमा किए इतने पैसे


मोतीलाल ओसवाल फाइनेंशियल सर्विसेज की इकोस्कोप रिपोर्ट के हवाले से बिजनेस स्टैंडर्ड ने बताया है कि पिछले तीन सालों से भारतीय परिवार बैंकों में जमा करने से ज्यादा पैसे उधार ले रहे हैं. रिपोर्ट के अनुसार, वित्त वर्ष 2023-24 के पहले 9 महीनों यानी अप्रैल से दिसंबर 2023 के दौरान इंडियन हाउसहोल्ड ने बैंकों में जितना पैसा जमा किया, वह देश की जीडीपी के 4.5 फीसदी के बराबर है.


9 महीने में ले लिए बैंकों से इतने कर्ज


रिपोर्ट इसके साथ ही ये भी बताती है कि अप्रैल से दिसंबर 2023 के दौरान भारतीयों ने बैंकों से जीडीपी के 4.9 फीसदी के बराबर कर्ज ले लिया. मतलब वित्त वर्ष 2023-24 के पहले 9 महीनों में भारतीय परिवारों ने बैंकों में जितने पैसे जमा किए, उससे कहीं ज्यादा उन्होंने बैंकों से कर्ज ले लिया. चिंताजनक बात ये है कि यह कोई ताजा ट्रेंड नहीं है, बल्कि पिछले तीन वित्त वर्षों से ऐसा चला आ रहा है.


ऐतिहासिक उच्च स्तर पर पहुंचा कर्ज


भारतीय परिवारों के कुल कर्ज का आंकड़ा देखने पर वित्तीय स्थिति की गंभीरता का अंदाजा लगता है. रिपोर्ट बताती है कि दिसंबर 2023 में भारतीय परिवारों के ऊपर बैंकों का कुल कर्ज अपने उच्चतम स्तर पर पहुंच गया था और कुल कर्ज जीडीपी के 40 फीसदी के स्तर पर जा चुका था. दूसरी ओर नेट फाइनेंशियल सेविंग कम होकर 5 फीसदी के नीचे अपने सर्वकालिक निचले स्तर पर आ चुका था.


ये हैं रिजर्व बैंक के आंकड़े


इससे पहले रिजर्व बैंक के आंकड़ों में भी इस तरह की जानकारी सामने आई थी. रिजर्व बैंक के आंकड़ों में बताया गया था कि वित्त वर्ष 2022-23 में भारतीयों की नेट फाइनेंशियल सेविंग जीडीपी के 5.1 फीसदी के बराबर पर आ गई थी, जो करीब 5 दशक का सबसे निचला स्तर था. उससे एक साल पहले वित्त वर्ष 2021-22 में यह आंकड़ा जीडीपी के 7.2 फीसदी के बराबर था. दूसरी ओर एनुअल फाइनेंशियल लायबलिटीज वित्त वर्ष 2021-22 में जीडीपी के 3.8 फीसदी से बढ़कर 2022-23 में जीडीपी के 5.8 फीसदी के बराबर पर पहुंच गई थीं.


ये फैक्टर हैं सबसे ज्यादा जिम्मेदार


मोतीलाल ओसवाल की रिपोर्ट में कहा गया है कि भारतीय परिवारों के बैंक डिपॉजिट में कमी आने और बैंकों से कर्ज बढ़ने के लिए लोगों की कमाई में मामूली वृद्धि, उपभोग में तेजी से विस्तार और फिजिकल सेविंग्स के बढ़े चलन जैसे फैक्टर जिम्मेदार हैं. कई एक्सपर्ट मानते हैं कि समय के साथ लोगों में खासकर नई पीढ़ी में निवेश के प्रति रिस्क उठाने का ट्रेंड स्वीकार्य होता जा रहा है. ऐसे में लोग बचत के पैसे को बैंकों में पार्क/डिपॉजिट करने के बजाय बेहतर रिटर्न की संभावनाओं वाले इंस्ट्रुमेंट्स में लगाते हैं.


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