Corona Effect on philanthropy: देश में बड़े अमीरों की संख्या में भारी उछाल और अमीरों के और अमीर होने के बावजूद कोविड-19 महामारी के दौरान परमार्थ कार्यों में उनका योगदान कम हुआ है. वहीं महामारी के दौरान 20 करोड़ लोग गरीब हो गए हैं. ग्लोबल परामर्श कंपनी 'बेन एंड कंपनी' और परमार्थ केंद्रित घरेलू सलाहकार कंपनी डासरा ने अपनी रिपोर्ट 'भारत परमार्थ 2022' में यह जानकारी दी है.
CSR में दिखी तेजी पर बड़े अमीरों ने घटाया परोपकार कार्यों पर खर्चरिपोर्ट के अनुसार, जहां कॉरपोरेट सामाजिक दायित्व (सीएसआर) खर्च वित्त वर्ष 2014-15 के 12 फीसदी से बढ़कर वित्त वर्ष 2020-21 में 23 फीसदी हो गया, वही अत्यधिक अमीरों या धनाढ्यों द्वारा परोपकार कार्यों पर खर्च वित्त वर्ष 2014-15 के 18 फीसदी से घटकर वित्त वर्ष 2020-21 में 11 फीसदी पर आ गया. रिपोर्ट में कहा गया है कि निजी विदेशी कंपनियों द्वारा भी किये जाने वाला परमार्थ खर्च वित्त वर्ष 2014-15 के 26 फीसदी से गिरकर वित्त वर्ष 2020-21 में 15 फीसदी पर आ गया.
सीएसआर में घरेलू कंपनियों का बढ़ा योगदानवही घरेलू कंपनियों का परमार्थ खर्च इस अवधि के दौरान सालाना आधार पर आठ से दस फीसदी बढ़ा है. इसका मुख्य कारण सीएसआर में उनका योगदान है. रिपोर्ट में पाया गया कि वित्त वर्ष 2014-15 और वित्त वर्ष 2020-21 के बीच सामाजिक क्षेत्र के लिए वित्तपोषण सालाना आधार पर 12 फीसदी बढ़कर सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) का 8.3 फीसदी हो गया.
रिपोर्ट में परमार्थ को तीन श्रेणियों सीएसआर, दान और पारिवारिक परोपकार में बांटा गया है. देश में सीएसआर यानी कॉरपोरेट सोशल रेस्पॉन्सबिलिटी के तहत बड़े कॉरपोरेट परमार्थ कार्यों में खर्च करते हैं और जरूरतमंद लोगों और संस्थानों की मदद करते हैं. देश में बड़े परोपकारियों में विप्रो के अजीम प्रेमजी का नाम सबसे ज्यादा परमार्थ कार्यों को करने वालों में काफी ऊपर है. कई बड़े कॉरपोरेट घराने भी इस क्षेत्र में योगदान देते हैं.
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