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(Source:  ECI | ABP NEWS)

महंगाई से निजात के लिए सरकार को छोड़ना होगा तिजोरी भरने का लालच

नई दिल्ली: कोरोना महामारी ने देशवासियों पर ऐसी दोहरी मार डाली है जिससे उबरने में कितना वक्त लगेगा,यह कोई नजूमी भी नहीं बता सकता. पहले लोगों का रोजगार छीना और अब महंगाई ऐसी डायन बनकर आई है कि उसने घरों की रसोई का बजट भी बिगाड़कर रख दिया है. पेट्रोल की कीमतें तो कई शहरों में सौ रुपये प्रति लीटर को पार कर चुकी हैं और डीज़ल भी शतक लगाने को बेताब है. लेकिन खाने के तेल की कीमतों में आए जबरदस्त उछाल ने तो हर घर के किचन को बेस्वाद करके रख दिया है.

ऐसे में सवाल उठता है कि महंगाई की मार झेल रही जनता को थोड़ी-सी भी राहत देने के लिए आखिर सरकार कुछ ठोस उपाय सोचती क्यों नहीं है? पेट्रोल-डीजल पर बेतहाशा एक्साइज ड्यूटी से अपना खजाना भरने वाली सरकार को फौरी तौर पर लोगों की जेब में पैसा डालकर उन्हें इस संकट से उबारने की कोई योजना लाना चाहिए.

विपक्ष का मोदी सरकार पर हमला
बढ़ती हुई महंगाई और बेरोजगारी को लेकर अगर विपक्षी दल सरकार को निशाने पर ले रहे हैं,तो इसमें गलत कुछ भी नहीं है.आंकड़ों का हवाला देते हुए कांग्रेस नेता प्रियंका गांधी अगर ये कहती हैं, "अर्थव्यवस्था में आपदा और आपदा में अवसर”यही मोदी सरकार का मास्टरस्ट्रोक है." तो इससे सरकार को चिढ़ नहीं होनी चाहिए क्योंकि यही मौजूदा हक़ीक़त भी है.

ऐसे वक्त पर सरकार का यह तर्क देना भी बिल्कुल बेमानी ही कहा जायेगा कि चूंकि वो कोरोना महामारी से निपट रही है,इसलिए महंगाई पर काबू पाना या रोजगार के नए अवसर पैदा करना उसकी प्राथमिकता नहीं है. महामारी पूरी दुनिया में आई है और कमोबेश हर देश की अर्थव्यवस्था भी लड़खड़ाई है लेकिन उन देशों ने लोगों को सीधे आर्थिक मदद देकर उनकी तकलीफ़ कम करने की कोशिश की है.

जबसे सरकार ने पेट्रोल-डीजल की कीमतें तय करने से अपना नियंत्रण हटाकर इसे बाजार के हवाले किया है,तभी से तेल कंपनियों को मनमानी करने की ऐसी छूट मिली है कि उन पर लगाम कसने वाल कोई नहीं है. आलम यह है कि पिछले 13 महीने में पेट्रोल की कीमत 24 रुपये 90 पैसे प्रति लीटर बढ़ गईं हैं जबकि डीजल के दाम में 23 रुपये नौ पैसे प्रति लीटर का इज़ाफ़ा हुआ है.

हैरानी तो यह भी है कि अकेले मई के महीने में ही 16 बार पेट्रोल-डीजल की कीमतें बढ़ाई गईं लेकिन महामारी के ख़ौफ़नाक दौर में किसी ने इस तरफ ध्यान ही नहीं दिया.माना कि कीमतों पर अब सरकार का नियंत्रण नहीं है लेकिन वह अपनी एक्साइज ड्यूटी घटाकर बढ़ती हुई महंगाई पर कुछ हद तक तो काबू पा ही सकती है.अगर लोगों का भला करना है,तो इस नाजुक वक़्त में सरकार को अपनी तिजोरी भरने का लालच कुछ कम करना होगा.

खाद्य तेल की कीमतों में भारी उछाल 
एक और बड़ी हैरानी यह भी है देश में सिर्फ मई महीने में ही खाद्य तेल की कीमतें रिकॉर्ड 200 रुपये प्रति लीटर तक पहुंच गई हैं.इसमें मूंगफली, सरसों, वनस्पति, सोया, सूरजमुखी, पाम ऑयल आदि तेल शामिल हैं. कहना गलत नहीं होगा कि इस महामारी में खाद्य तेल के निर्माताओं ने भी "आपदा में अवसर" तलाशकर भरपूर मुनाफा कमाया है क्योंकि खाद्य तेल की कीमतों में पिछले एक साल में लगभग 50 फीसदी का इज़ाफा हुआ है. हालांकि तेल कारोबारियों की दलील है कि अंतर्राष्ट्रीय बाजार में खाद्य तेल की कीमतें आसमान छू रही हैं, जिसके चलते भारत में भी कीमत बढ़ी हैं.

ऐसा इसलिए है क्योंकि भारत अपनी कुल खाद्य तेल की ज़रूरत का एक बड़ा हिस्सा विदेशों से आयात करता है.अगर आंकड़ो पर नज़र डाली जाए तो भारत में हर साल लगभग 2.5 करोड़ लीटर खाद्य तेल की खपत होती है. भारत अपने घरेलू उत्पादन के ज़रिए लगभग 90 लाख लीटर की ज़रूरत पूरी कर पाता है और बाकी दूसरे देशों से आयात करता है. वैसे साल 1994-1995 तक भारत अपनी खाद्य तेल की ज़रूरतों को पूरा करने के लिए केवल 10 फीसद ही आयात करता था. जबकि अगर साल 2021 की बात की जाए तो भारत अपनी कुल ज़रूरत का 70 फीसदी  हिस्सा अर्जेंटीना, कनाडा, मलयेशिया, ब्राजील और अन्य दक्षिणी अमेरिकी देशों से आयात करता है.

(नोट- उपरोक्त दिए गए विचार व आंकड़े लेखक के व्यक्तिगत विचार हैं. ये जरूरी नहीं कि एबीपी न्यूज ग्रुप इससे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.)

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