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जून से सितम्बर तक की भीषण वैश्विक गर्मी दे रही है चेतावनी, कहीं ये ग्लोबल वार्मिंग 2.0 तो नहीं?

असाधारण गर्मी, जिसमें गरम होती पृथ्वी का भी बहुत बड़ा हाथ है; ने दुनिया भर में जलवायु परिवर्तन से संबंधित मौसमी चरम की ना केवल तीव्रता को ही बल्कि उनके घटने की प्राययिकता (प्रोबैबिलिटी) को भी बढ़ा दिया है. इसमें  कैलिफोर्निया, अमेज़न से लेकर ऑस्ट्रेलिया तक की जंगल की आग, चीन यूरोप से लेकर कनाडा तक की झुलसा देने वाली गर्मी, जर्मनी, पाकिस्तान से लेकर लीबिया तक की खतरनाक बाढ़ और चीन के यांग्जी नदी घाटी से लेकर स्पेन तक की सूखा जैसी घटनाएं शामिल हैं. इन सारी घटनाओं में बेतहाशा बढ़ती गर्मी एक तात्कालिक लक्षण है, खास कर गर्मी के मौसम में बढ़ता पारा जिसमें इस साल अब तक महीने दर महीने एक नयी ऊंचाई तय करती आयी है. इसका प्रभाव उन जगहों पर दिखा, सामान्यतः जो क्षेत्र अब तक चरम परिस्थितियों से दो चार नहीं हुए थे.

चरम पर जा रही हैं मौसमी परिस्थितियां

कनाडा में गर्म, सूखी, और तेज हवाओं के मौसम ने समय से पहले ही जंगली आग को लहका दिया जो जुलाई (गर्मी के मुख्य महीने) आते-आते अब तक का सबसे भयावह जंगली आग का दौर साबित हुआ. इस साल केवल जुलाई तक ही 25 मिलियन हेक्टेयर  एकड़ से ज्यादा जंगल जल गया जो पिछले 34 साल पुराने सलाना जंगल जलने से डेढ़ गुना से भी ज्यादा है. इस साल की विभीषिका का अंदाज़ा केवल इस बात से लगाया जा सकता है कि पिछले साल, साल भर में लगभग 4 मिलियन हेक्टेयर जंगल ही जले थे. वहीं उत्तरी ध्रुव यानी आर्कटिक में इस साल ना सिर्फ सामान्य से ज्यादा तापमान रिकॉर्ड किया गया बल्कि बर्फ का दायरा भी अब तक के छठे सबसे कम (1.6 मिलियन वर्ग मील) तक जा पहुँचा.

आर्कटिक में 2012 की गर्मियों में अब तक का सबसे कम बर्फ का क्षेत्र 1.3 मिलियन वर्ग मील रिकॉर्ड किया गया है. अमेरिका में तो गर्मी ने अपने सारे रिकॉर्ड ही तोड़ दिये, तापमान ना सिर्फ बढ़ा बल्कि सारे पिछले रिकॉर्ड तोड़ते हुए बढ़ा तापमान और गर्मी का मौसम लम्बा खिंचता चला गया, फिनिक्स और अलपासो में पारा क्रमशः 37°C और 42°C से ऊपर 31 और 44 दिनों तक लगातार बना रहा. हवा में बढ़ी आर्द्रता ने इस साल की गर्मी को और भी तकलीफदेह बना दिया, कहीं-कहीं तो हीट इंडेक्स यानी आभासी तापमान 46°C के पार चला गया. और उसी हिसाब से बीमार लोगों की संख्या भी बढ़ी जो हीट स्ट्रोक से प्रभावित हुए. हीट इंडेक्स वो आभासी तापमान है जिसे हमारा शारीर सूखे हवा के तापमान और हवा की आर्द्रता के सम्मिलित प्रभाव को महसूस करता है जो असली तापमान से ज्यादा होता है.

लैटिन अमेरिका में भी मौसम का चक्र बिगड़ा  

विषुवत रेखा के दक्षिण लैटिन अमेरिका और ऑस्ट्रेलिया में जहाँ जाड़े का मौसम होता है, वहाँ भी कुछ जगहों पर तापमान इस साल सामान्य से 10°C तक बढ़ गया. यहां तक तीव्र गर्मी वाले अफ्रीका, उत्तर पश्चिम चीन और ईरान सहित मध्य पूर्व में आभासी तापमान असमान्य रूप से ज्यादा दर्ज किया गया. उत्तर पश्चिम चीन में तो अब तक सबसे ज्यादा तापमान 52°C तक पाया गया, वही बीजिंग में पारा अब तक सबसे अधिक बार 35°C को पार करता दर्ज किया गया. सुदूर पूर्व समुद्र से घिरे जापान में भी इस बार रिकॉर्ड गर्मी पड़ी. यूरोप में इस साल के पिछले चार महीने खास कर स्पेन, फ्रांस, इटली, क्रोएशिया, स्विट्ज़रलैंड और ग्रीस में मुख्य रूप से झुलसती गर्मी (तापमान 35°C-40°C तक), लम्बे दौर के हीट वेव, सूखती नदी और जंगल में लगी आग से आम जीवन अस्त-व्यस्त रहा. कई जगहों में पानी के बहाव में कमी के चलते नदी यातायात बंद करना पड़ा. गर्मी के पर्यटन के लिए प्रसिद्ध भू-मध्यसागरीय इटली और ग्रीस में जंगल की आग के कारण पर्यटन उद्योग बुरी तरह से पस्त पड़ गया. पिछले कुछ ही सालों में यूरोप का तापमान अन्य किसी क्षेत्र के मुकाबले ज्यादा तेजी से बढ़ा है. 

पूरे उत्तरी गोलार्द्ध में बिगड़ा है मौसम

पूरे उत्तरी गोलार्द्ध में बीता गर्मी का मौसम (जून से अगस्त) अब तक का सबसे तापमान वाला गर्मी का मौसम रहा, जो इस मौसम के पिछले औसत तापमान से बहुत ज्यादा बढ़ोत्तरी है. जैसा कि विदित है कि जून, जुलाई और अगस्त, जब से तापमान का रिकॉर्ड रखा जाने लगा है, अब तक से सबसे गर्म जून, जुलाई और अगस्त के महीने रहे है. जुलाई 2023 तो तापमान के अनेक मायनों में चरम रहा, कम से कम पिछले एक लाख बीस हज़ार साल का सबसे गर्म दिन (6 जुलाई; 17.38°C) सबसे गर्म सप्ताह (3-10 जुलाई; हरेक दिन तापमान 17°C से ऊपर) सबसे गर्म महीना (जुलाई; औसत तापमान 16.95°C) वाला महीना रहा. कॉपरनिकस क्लाइमेट चेंज सर्विस (सी3सी) के मुताबिक पिछला सितम्बर भी 16.38°C के औसत तापमान के साथ अब तक का सबसे गर्म महीना रहा, जो पिछला सबसे गर्म सितम्बर (2020) से 0.5°C और पिछले तीस सालों के सितम्बर के औसत तापमान से 0.93°C ज्यादा है. इस प्रकार बढ़ते तापमान के चरम पर पहुँचने का सिलसिला जो जून महीने से शुरू हुआ वो जुलाई, अगस्त यहां तक कि सितम्बर तक जारी रहा.

पृथ्वी के तापमान की बढ़ोतरी की गणना में आमतौर किसी खास दिन, सप्ताह, महीने या किसी मौसम जैसे गर्मी या सर्दी या किसी खास क्षेत्र या फिर गोलार्द्ध या फिर पूरे साल का औसत तापमान महत्वपूर्ण मानक होता है, जिसके आधार पर तुलनात्मक रूप से तापमान की बढ़ोतरी या कमी की गणना होती है. परन्तु उससे भी महत्वपूर्ण मानक औसत तापमान में समय के साथ आने वाला तुलनात्मक रूप से बड़े स्तर का बदलाव. ऐसा देखा गया है कि किसी खास दिन, सप्ताह, महीने या किसी मौसम का औसत वैश्विक तापमान  का नया रिकॉर्ड अक्सर पिछले रिकॉर्ड से एक डिग्री के 100वें या अधिक से अधिक 10वें भाग के अंतर से टूटता है, पर विगत जुलाई और अगस्त और यहाँ तक सितम्बर में तो धरती के तापमान में जैसे कोई उछाल ही आ गयी हो.

जहाँ जुलाई में तापमान ने पिछले सबसे गर्म जुलाई (2019) से डिग्री के एक तिहाई भाग की छलांग लगाई, वही हाल अगस्त का रहा जो पिछले सबसे गर्म अगस्त (2016, 2020) से 0.31°C बढ़ा. सितम्बर में तो ये विचलन बढ़ के 0.51°C तक जा पंहुचा है. लगातार चार महीने से औसत तापमान में हो रही अभूत्वपूर्ण वृद्धि एक असामान्य परिस्थिति और खतरे की घंटी है और तापमान के बढ़ोतरी में एक नए दौर की शुरुआत है जो आने वाले समय में और गति पकड़ेगा.

इस साल कहीं ग्लोबल वार्मिग 2.0 तो नहीं...

मौजूदा साल वैश्विक गरमी के एक नए दौर में पहुंच चुका है, जिसका अंदाजा पिछले चार महीने के अब तक के सबसे गर्म महीने होने से लगाया जा सकता है. यहां तक कि इस साल जनवरी से सितम्बर का औसत तापमान सामान्य से 0.52°c रहा है. अगर इसकी तुलना अब तक के सबसे  गर्म साल 2016 के जनवरी से सितम्बर तक के औसत तापमान से करे तो पाएंगे की तापमान इस साल का तापमान उससे भी 0.05°C ज्यादा है. निवर्तमान वर्ष के अब तक के गर्मी के आंकड़े, स्पष्ट सन्देश है कि साल 2023 वर्ष 2016 से भी ज्यादा गर्म, यानी कि सबसे गर्म वर्ष हो सकता है. पर 2023 का सबसे गर्म साल होने के अलावा भी खतरे की बात है कि तापमान में बेतहाशा बढ़ोतरी का दौर अल नीनो के चरम पर पहुँचने से पहले हो रहा है. अलनीनो जलवायु से जुड़े बदले अन्तराल पर होने वाली वैश्विक भौगोलिक घटना है, जिसमें अनेक क्षेत्रों में गर्मी का स्तर सामान्य से अधिक हो जाता है. अल नीनो के चरम स्थिति के पा लेने के बाद के कुछ महीनो में तापमान औसत से अधिक बढ़ जाता है. ऐसी सम्भावना है कि अल नीनो की चरम स्थिति अगले साल के शुरू होने से पहले नहीं आने वाली. यह सीधा संकेत है कि अगले साल 2024 की गर्मी इस साल 2023 की गर्मी, जो की खुद में एक रिकॉर्ड रही है, से और भी तीव्र होने वाली है. इस वर्ष की गर्मी आने वाले साल में और अधिक तपन की आहट है. क्योंकि एक तरफ वर्तमान वर्ष 2023 के बारे में अनुमान है कि यह पिछले अब तक के सबसे गर्म साल 2016 को भी पीछे छोड़ देगा, वहीं धीरे-धीरे मजबूत होती अल नीनो की घटना जो आने वाले साल की शुरुआत तक चरम पर होगी. जिससे यह स्पष्ट संकेत मिल रहा है कि आने वाले 2024 ई. में भी तापमान के छलांग का सिलसिला बदस्तूर जारी रहेगा और यह गर्म होती मौसमी परिस्थितयों के एक नये दौर की शुरुआत है.   

[नोट- उपरोक्त दिए गए विचार लेखक के व्यक्तिगत विचार हैं. यह ज़रूरी नहीं है कि एबीपी न्यूज़ ग्रुप इससे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ़ लेखक ही ज़िम्मेदार हैं.]

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