एक्सप्लोरर

भारतीय लोकतंत्र की हीरक जयंती और 'सोशल सवालों' से जूझता देश, डेमोक्रेसी की जड़ों को है लगातार सींचते रहने की जरूरत

विश्व में लोकतंत्र का पहिया निरंतर लंबे अरसे से घूम रहा है. समय दर समय इसकी गति का आकलन लगाने की कोशिश भी हुई, लेकिन पहिये की सही दिशा का अनुमान लगाने में चूक तो नहीं गए? ये सवाल जीवन के बीते 20 सालों के अनुभव से उपजा है, जाहिर है लोकतंत्र एक प्रक्रिया है, दर्शन है जो किसी भी व्यक्ति के जीवन में समानता का भाव, स्वतंत्रता का अधिकार और भाई-चारे की सोच गढ़ता है.  लोकतंत्र की ये गाड़ी चौपहिया है विधायिका, कार्यपालिका इसके अगले पहिये हैं तो न्यायपालिका और मीडिया इसके पिछले पहिए,  अगर किसी एक में भी पंक्चर हो जाए तो पूरी की पूरी व्यवस्था हिलने लगती है. ये व्यवस्था सुचारू रूप से चलती रहे इसके लिए जरूरी है इसका पीपल फ्रैंडली होना और इससे ज्यादा महत्वपूर्ण है सवालों का ईंधन और उससे भी ज्यादा महत्वपूर्ण है एक जवाबदेह सरकार का होना.  गौरतलब है कि सरकारें लोकतांत्रिक प्रकिया से चुनकर आती है लेकिन कई बार खुद लोकतांत्रिक नहीं रह पातीं.  जब मौका अंतराष्ट्रीय लोकतांत्रिक दिवस का हो तो ये और भी ज्यादा जरूरी हो जाता है कि हम ये समझे कि कैसे, कहां कब और किन हालातों में दुनिया में लोकतांत्रिक व्यवस्था का बीजारोपण हुआ और बीज को वटवृक्ष बनाने के लिए दुनियाभर में आंदोलन चलाए गए. 

कैसे अंकुरित हुआ लोकतंत्र का बीज

अगर बात आधुनिक दुनिया की करें तो ब्रिटेन में सबसे पहले लोकतंत्र का बीज अंकुरित हुआ. बात सन् 1215 की है, करीब आठ सौ साल पहले ब्रिटेन में जब समाज के प्रतिनिधियों को लगा कि राजा मनमानी करता है, जनता का शोषण करता है तो उन्होंने लोगों को जगाया, गोलबंद किया, और लोगों ने राजा के खिलाफ बगावत कर दी. मजे की बात ये है कि बिना किसी युद्ध किये ही जनता जीत गई, एक कानूनी दस्तावेज पर दस्तखत हुए, जिसे चार्टर ऑफ मैग्नाकार्टा कहा गया, जिसके तहत राजा ने अपने अधिकार जनता को सौंप दिए. यानी, अब मुकुट महज एक प्रतीक बन गया. अगर उस मुकुट ने जिद पकड़ी होती, तो उसका हाल जार और उसके परिवार सरीखा भी हो सकता था, जिसकी हड्डियों का भी पता नहीं चला.  ब्रिटेन में जनता ने शक्ति संसद के हाथों में सौंप दी, लेकिन उन्हें ये पता नहीं था कि वो एक दलदल में धंस गए हैं. उनकी सरपरस्ती में भी शोषण शुरू हुआ, जैसे ही औद्योगिक क्रांति आई, तो बच्चों को कोयले की खदानों में लगा दिया गया, उनका शोषण शुरू हुआ, महिलाओं को वोट का अधिकार तक नहीं दिया गया.  लॉर्ड अभी लॉर्ड ही बने हुए थे. इतना ही नहीं, खुद कभी लोकतंत्र के लड़ने वाली ब्रिटेन की इसी संसद ने दुनिया को अपनी मुट्ठी में कैद करने के लिए बाकायदा एक कंपनी बनाई, जिन्होंने दुनिया को दो बार विश्व युद्ध में धकेला. लोकतंत्र की वकालत करने वाले ब्रिटेन ने एक बार फिर राजशाही के रास्ते को चुना.

ये दीगर बात है कि आधुनिक भारत में लोकतंत्र की गाड़ी लाने वाले भी अंग्रेज ही थे. भले ही अमेरिका दुनिया का सबसे पुराना लोकतांत्रिक देश है लेकिन आज भी दुनिया की सबसे बड़ी जम्हूरियत भारत है.  140 करोड़ की आबादी वाले इस देश में लोकतांत्रिक व्यवस्था सुचारू रूप से चलना पूरी दुनिया के लिए मिसाल है.  अगर बात करें संसदीय लोकतंत्र की खूबियों की तो यह केवल समान्य राजनीतिक प्रक्रिया या ये कहें कि एक शासन चलाने की प्रक्रिया ना होकर एक जीवन शैली है, जो सामूहिकता के साथ गतिशील रहती है. जो समाज के साथ व्यक्ति को भी उन्नत करने का मार्ग प्रशस्त करती है. यह दर्शन ना केवल अधिकारों बल्कि कर्तव्यों को भी सुनिश्चित करता है. लोकतंत्र वो व्यवस्था है जो लोकशक्ति में विश्वास पैदा करती है, साथ ही व्यक्ति से मर्यादा की मांग करती है इसी के चलते लोकतंत्र का आधार नैतिकता है. यह नैतिक आदर्शों पर आधारित जीवन शैली है. स्वतंत्रता, समानता व बंधुत्व इसके आदर्श है. लोकतंत्र नैतिकता ईमानदारी आत्मनिर्भरता, दृढ़ता को प्रतिस्थापित करता है. सबसे अहम बात ये है कि लोकतांत्रिक व्यवस्था में परिवर्तन जनता की इच्छा के अनुरूप होता है. यह बहुमत का शासन ना होकर अल्पमत को भी स्वीकार करने की पद्धति है. लोकतंत्र में विपक्ष की भूमिका भी अहम होती है, लेकिन विपक्ष सकारात्मक भूमिका का निर्वहन करता है।

आलोचना लोकतंत्र का शृंगार

आलोचना लोकतंत्र का शृंगार होता है लेकिन यह आलोचना सैद्धांतिक होनी चाहिए. स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद भारत में इसी संसदीय लोकतंत्र को अपनाया गया और प्रतिनिध्यात्मक व्यवस्था लागू की गई, जिसके अंतर्गत जनता के चुने हुए प्रतिनिधि शासन व्यवस्था में भाग लेते हैं. भारतीय संसद भारतीय लोकतंत्र का प्रतीक है.  इस प्रकार कार्यपालिका की राजनीतिक शक्ति का स्रोत संसद है. भारत में लोकतंत्र का एक सफल पक्ष पंथनिरपेक्षता भी है. भारतीय पंथनिरपेक्षता पश्चिमी देशों की पंथनिरपेक्षता से कई मायनों में अलग है कि इसमें पंथनिरपेक्षता का सकारात्मक मॉडल लिया गया है. जहां पश्चिमी देशों में पंथनिरपेक्षता का अर्थ राज्य का धर्म से पूरी तरह से परित्याग है, वहीं भारतीय पंथनिरपेक्षता धर्म को नैतिकता में वृद्धि का एक साधन मानती है, क्योंकि भारतीय लोकतंत्र नैतिक एवं मर्यादित सिद्धांतों के पर आधारित है, इसीलिए भारतीय लोकतंत्र में धर्म को सकारात्मक परिपेक्ष में लिया गया है. इसलिए भारतीय संविधान में सभी धर्मों को समान रूप से लिया गया है. 

भले ही भारत में अमीरी गरीबी के बीच की खाई पाटने की गति बहुत धीमी हो, लेकिन  भारतीय संविधान उसे नीति निर्देशक तत्वों के जरिए उसे पाटने का संकल्प ज़रूर लेता है. भारतीय लोकतंत्र में पंचायती राज संस्थाओं के माध्यम से लोकतांत्रिक विकेन्द्रीकरण की प्रक्रिया पहले से मजबूत हई है. पंचायती राज संस्थाएं निम्न स्तर पर आर्थिक सामाजिक एवं राजनैतिक लोकतंत्र को स्थापित करती हैं. पंचायती राज संस्था ने संसदीय लोकतंत्र की जड़ों को मजबूत करने में खाद-पानी का काम किया है. 

जन जागरण का समय...

नागरिक समाज का उदय भारतीय लोकतंत्र का एक प्रमुख बिंदु है.  नागरिक समाज के लोगों में जिनमें प्रबुद्ध वर्ग भी शामिल है जिसने भारतीय लोकतंत्र को सशक्त बनाने में अधिक योगदान दिया है दिया, चाहे फिर बात भ्रष्टाचार-विरोधी आंदोलन की हो, सामाजिक सुधारों की हो या फिर राजनीतिक आंदोलन की. यह वर्ग समाज का नेतृत्व करने के रूप में प्रमुख रूप से आगे रहा है जिसके फलस्वरूप सुधारों की गति तेज हुई है. लिहाज़ा भारतीय लोकतंत्र ने पिछले 7 दशकों में मजबूत प्रगति की है परन्तु इसमें कुछ चुनौतियां भी आईँ हैं मसलन चुनावों में बढ़ता भ्रष्टाचार, संप्रदायवाद एवं जातिवाद की राजनीति, राजनैतिक दलों में बढ़ती अनुशासनहीनता,हॉर्स ट्रेडिंग और  राजनैतिक दलों में दलीय संघर्ष जो कि संसदीय लोकतंत्र के विरूद्ध है. संसद में सकारात्मक चर्चाओं का दौर कम हुआ है जिसका स्थान व्यक्तिगत कटाक्षों ने ले लिया है. प्रतिनिध्यात्मक लोकतंत्र की कमजोर होती शक्ति ने नौकरशाही को लाल फीताशाही की तरफ धकेल दिया है जो कि लोकतंत्र का सफल पक्ष नहीं है. हाल फिलहाल में केन्द्रीयकरण की बढ़ती प्रवृति भी केन्द्र-राज्य सरकारों में एक खटास का मुद्दा बनी है.

 'सोशल' सवालों से जुझता लोकतंत्र

 हाल के दिनों में डेमोक्रेसी इंडेक्स की आई रिपोर्ट एक भारतीय को ये सोचने पर मजबूर कर सकती हैं कि समय के साथ घूमते लोकतंत्र के पहिये की गति पहले से ज्यादा थमी है या बढ़ी है, क्या हम एक संपूर्ण लोकतांत्रिक व्यवस्था का सही पता निर्धारित करने में सफल हो पाएंगे? क्या हम भारत में लोकतंत्र का वो मॉडल स्थापित कर पाएंगे जिसकी परिकल्पना राष्ट्रपिता महात्मा गांधी ने की थी. क्या 21 वीं सदी के भारत में हर नागरिक जाति, वर्ग, धर्म से परे हटकर अपने अधिकारों और कर्तव्यों के बीच के मूलभूत अंतर को लेकर अपनी समझ मजबूत कर पाया है?  कहीं ऐसा तो नहीं कि लोकतंत्र की ये चैापहिया गाड़ी पथभ्रमित हो रही हो, ठीक हमारे उन अधिकांश युवाओं की तरह जो अपनी उर्जा का व्यय सोशल, डेटिंग साइट पर करने में लगे हैं, पहले भारत को गुलाम बनाने के लिए अंग्रेजों ने हमारी संस्कृति और शिक्षा पद्धति पर कुठाराघात किया और अब हम उन विदेशी कंपनियों के अदृश्य ऐजेंडे की चपेट में आ रहे हैं जो हमसे हमारी जिन्दगी का सबसे महत्वपूर्ण समय ‘अभी’ छीन ले रहे हैं. नतीजतन हम नहीं तय कर पा रहे कि इस लोकतंत्र को जीवंत बनाए रखने के लिए हम कैसे अपनी भागीदारी सुनिश्चित करें, हम नहीं सोच पा रहे कि भविष्य का भारत कैसा हो, कैसे परिवार, समाज में लोकतंत्र की जड़ों को मजबूत किया जाए. निस्संदेह लोकतंत्र के मूल में व्यक्ति सबसे छोटी ईकाई है फिर परिवार, समाज और फिर देश है. अगर व्यक्ति लोकतंत्र के मायने समझ पाए तो परिवार, समाज और देश के स्तर पर इस समझ को मजबूत करना और भी आसान होगा, लेकिन सवाल ये कि इस समझ को मजबूत करने के लिए किया क्या जाए? 

लोकतंत्र को इतिहास में खोजा जाए, वर्तमान में जीया जाए या फिर भविष्य के लिए नए सिरे से गढ़ा जाए. तो जवाब है अतीत और वर्तमान परिस्थितियों को समझा जाए. मौजूदा लोकतंत्र की खामियों को चुना जाए, समझा जाए कि इस व्यवस्था के तहत सरकारों ने कितनी जवाबदेही तय की. कहीं ऐसा तो नहीं हम पार्टी बेस सिस्टम का हिस्सा हो चले हों और हमारा वजूद सिर्फ एक वोट बैंक तक तो सीमित हो रहा हो. नहीं भूलना चाहिए कि जिस मौजूदा व्यवस्था में हम जी रहे हैं क्या वो एक सहभागी लोकतंत्र की पक्षधर है.  इन सब सवालों के जवाब टटोलने के लिए 5 सालों का इंतजार करना खुद की जिम्मेदारी से भागना है. याद कीजिए लोहिया के उस वक्तव्य को कि जिंदा कौमें 5 साल का इंतज़ार नहीं करती. याद कीजिए दिनकर की वो पंक्तियां कि सिंहासन खाली करो कि जनता आती है, याद कीजिए अटल बिहारी वाजपेयी के सदन में दिए गए भाषण को कि सरकारें आएंगी, जाएंगी लेकिन देश रहना चाहिए निश्चित ही देश बचेगा तो लोकतंत्र भी अपने नए कलेवर में फलीभूत होगा.

[नोट- उपरोक्त दिए गए विचार लेखक के व्यक्तिगत विचार हैं. ये जरूरी नहीं कि एबीपी न्यूज़ ग्रुप इससे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.] 

View More

ओपिनियन

Sponsored Links by Taboola
25°C
New Delhi
Rain: 100mm
Humidity: 97%
Wind: WNW 47km/h

टॉप हेडलाइंस

आपकी माताजी और दादीजी... वोट चोरी के राहुल के आरोपों पर भरी संसद में अमित शाह और कंगना ने याद दिलाया गांधी परिवार का इतिहास
आपकी माताजी और दादीजी... वोट चोरी के राहुल के आरोपों पर भरी संसद में अमित शाह और कंगना ने याद दिलाया गांधी परिवार का इतिहास
Hanumangarh Farmers Protest: हनुमानगढ़ में इथेनॉल फैक्ट्री के खिलाफ किसानों का बवाल, महापंचायत से पहले माहौल फिर गरम
हनुमानगढ़ में इथेनॉल फैक्ट्री के खिलाफ किसानों का बवाल, महापंचायत से पहले माहौल फिर गर्म
म्यांमार में गृहयुद्ध से हाहाकार, अस्पताल में एयर-स्ट्राइक से 30 लोगों की मौत, इस देश पर दुनियाभर की नजरें क्यों?
म्यांमार में गृहयुद्ध से हाहाकार, अस्पताल में एयर-स्ट्राइक से 30 लोगों की मौत, इस देश पर दुनियाभर की नजरें क्यों?
IPL 2026 के मिनी ऑक्शन में बगैर हेड कोच के उतरेगी पंजाब किंग्स, जानें रिकी पोंटिंग के शामिल न होने की वजह
IPL 2026 के मिनी ऑक्शन में बगैर हेड कोच के उतरेगी पंजाब किंग्स, जानें रिकी पोंटिंग के शामिल न होने की वजह
ABP Premium

वीडियोज

Maharashtra अकेला Crypto Tax King — 3 साल में ₹661 करोड़ दे डाले!| Paisa Live
Rajasthan Hanumangarh Farmers Meeting: किसानों ने बुलाई 11 बजे बड़ी बैठक, होगा बड़ा ऐलान?
Rajasthan Farmer Protest: हनुमानगढ़ में पथराव, किसान- पुलिस में झड़प
Hanumangarh Farmers Protest: हनुमानगढ़ में भड़के किसान, महापंचायत में 'महा'बवाल!
Bollywood News: बाॅलीवुड गलियारों की बड़ी खबरें | Salman Khan | Mumbai | Diljit Dosanjh

पर्सनल कार्नर

टॉप आर्टिकल्स
टॉप रील्स
आपकी माताजी और दादीजी... वोट चोरी के राहुल के आरोपों पर भरी संसद में अमित शाह और कंगना ने याद दिलाया गांधी परिवार का इतिहास
आपकी माताजी और दादीजी... वोट चोरी के राहुल के आरोपों पर भरी संसद में अमित शाह और कंगना ने याद दिलाया गांधी परिवार का इतिहास
Hanumangarh Farmers Protest: हनुमानगढ़ में इथेनॉल फैक्ट्री के खिलाफ किसानों का बवाल, महापंचायत से पहले माहौल फिर गरम
हनुमानगढ़ में इथेनॉल फैक्ट्री के खिलाफ किसानों का बवाल, महापंचायत से पहले माहौल फिर गर्म
म्यांमार में गृहयुद्ध से हाहाकार, अस्पताल में एयर-स्ट्राइक से 30 लोगों की मौत, इस देश पर दुनियाभर की नजरें क्यों?
म्यांमार में गृहयुद्ध से हाहाकार, अस्पताल में एयर-स्ट्राइक से 30 लोगों की मौत, इस देश पर दुनियाभर की नजरें क्यों?
IPL 2026 के मिनी ऑक्शन में बगैर हेड कोच के उतरेगी पंजाब किंग्स, जानें रिकी पोंटिंग के शामिल न होने की वजह
IPL 2026 के मिनी ऑक्शन में बगैर हेड कोच के उतरेगी पंजाब किंग्स, जानें रिकी पोंटिंग के शामिल न होने की वजह
किसी की उड़ी नींद, कोई जाग कर बिता रही पूरी रात, मां बनने के बाद कैटरीना, परिणीति चोपड़ा और कियारा का ऐसा हो गया है हाल
मां बनने के बाद कैटरीना, परिणीति चोपड़ा और कियारा का कैसा हो गया है हाल? जानें यहां
BSSC ने जारी किया गृह विभाग के आरक्षी लिपिक का रिजल्ट, 297 अभ्यर्थी अगले चरण के लिए सफल; जानें आगे की प्रक्रिया
BSSC ने जारी किया गृह विभाग के आरक्षी लिपिक का रिजल्ट, 297 अभ्यर्थी अगले चरण के लिए सफल; जानें आगे की प्रक्रिया
फास्टैग वाली गाड़ियों की KYV कराने में कितना लगता है पैसा? जान लें काम की बात
फास्टैग वाली गाड़ियों की KYV कराने में कितना लगता है पैसा? जान लें काम की बात
Christmas 2025 Decoration: घर पर कागज से कैसे बनाएं सुंदर क्रिसमस ट्री? बच्चों संग ऐसे करें सजावट
घर पर कागज से कैसे बनाएं सुंदर क्रिसमस ट्री? बच्चों संग ऐसे करें सजावट
Embed widget