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कमलनाथ का हिंदू राष्ट्र को लेकर बयान, क्या मध्य प्रदेश में सॉफ्ट हिंदुत्व की राह पर है कांग्रेस, समझें हर पहलू

मध्य प्रदेश में विधानसभा चुनाव दहलीज पर है. इसको देखते हुए सत्ता बरकरार रखने के लिए बीजेपी नेता और मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान हर तरीका अपना रहे हैं. इनमें दनादन सरकारी योजनाओं की घोषणा हो या फिर प्रदेश के लोगों से भावनात्मक जुड़ाव के लिए मामा-बहना-भांजा-भांजी शब्दों का इस्तेमाल हो. वो हर तरीका आजमा रहे हैं. दूसरी तरफ मध्य प्रदेश की सत्ता हासिल करने के लिए कमलनाथ की अगुवाई में कांग्रेस भी जी-जान से जुटी है. इस दौरान दोनों ही पार्टियों के बीच जुबानी जंग के साथ ही रणनीतिक जंग भी तेज़ होते जा रही है.

कमलनाथ की चुनावी रणनीति

कमलनाथ भी हर वो तरीका आजमा रहे हैं, जिससे बीजेपी पर बढ़त बनाने में मदद मिल सके. वो शिवराज सिंह चौहान के सरकारी योजनाओं का भी काट निकाल रहे हैं और हिंदुत्व पर भी बीजेपी को बढ़त लेने का कोई मौका नहीं देना चाह रहे हैं.

हाल फिलहाल की घटनाओं को देखें तो एक बहुत ही ख़ास मुद्दा है, जिसको लेकर बीजेपी और कमलनाथ में एक तरह की होड़ दिख रही है. हिन्दुत्व और हिन्दू राष्ट्र का मुद्दा बीजेपी की ताकत रही है. अब कमलनाथ बीजेपी की इसी ताकत को अपने तरीके से साधने में जुटे हैं.

कमलनाथ का हिंदू राष्ट्र पर ताज़ा बयान

ताजा मामला छिंदवाड़ा में बागेश्वर धाम के धीरेंद्र शास्त्री के कार्यक्रम और कथा से जुड़ा है. इस कथा में कमलनाथ पहुंचते हैं. धीरेंद्र शास्त्री का पसंदीदा विषय है हिन्दू राष्ट्र..ये हम सब जानते हैं. जिस वक्त 6 अगस्त को वे कथा सुनाते हुए हिन्दू राष्ट्र की बात कर रहे थे, कमलनाथ वहां मौजूद थे. कमलनाथ ने बाद में कहा भी कि वे हनुमान भक्त हैं और उन्हें हिंदू होने का गर्व भी है.

उसके अगले दिन जब कमलनाथ से हिन्दू राष्ट्र को लेकर सवाल पूछा गया तो कमलनाथ ने कहा कि हमारे देश में 82% हिन्दू हैं तो ये कौन सा राष्ट्र हुआ. उन्होंने आगे ये भी कहा कि हम सेक्युलर हैं और हमारा मुकाबला सांप्रदायिकता से है. हमारे संविधान में जो लिखा  है, हम उसी से चलते हैं.

कमलनाथ के बयान के सियासी मायने

कमलनाथ का धीरेंद्र शास्त्री के कथा वाचन कार्यक्रम में जाना और हिन्दू राष्ट्र पर ताज़ा बयान के बाद इससे सियासी मायने भी निकाले जाने लगे है. ये भी कहा जा रहा है कि सत्ता हासिल करने के लिए क्या कांग्रेस मध्य प्रदेश में सॉफ्ट हिंदुत्व की रणनीति पर आगे बढ़ रही है.

दरअसल कमलनाथ के लिए यो कोई नई बात नहीं है, लेकिन उनकी पार्टी के नेता आचार्य प्रमोद कृष्णम ने ही इस पूरे मसले को विवादित बना दिया है. आचार्य प्रमोद कृष्णम ने ट्वीट किया कि

"मुसलमानों के ऊपर “बुलडोज़र” चढ़ाने और RSS का एजेंडा हिंदू राष्ट्र की खुल्लम खुल्ला वकालत कर के “संविधान” की धज्जियां उड़ाने वाले “भाजपा” के स्टार प्रचारक की आरती उतारना कांग्रेस के वरिष्ठ नेताओं को शोभा नहीं देता,आज रो रही होगी गांधी की “आत्मा” और तड़प रहे होंगे पंडित नेहरू और भगत सिंह, लेकिन सेक्युलरिज्म के ध्वजवाहक जयराम रमेश, दिग्विजय सिंह जी और और मल्लिकार्जुन खरगे जी, सब खमोश हैं."

आचार्य प्रमोद कृष्णम का ये ट्वीट एक तरह से कमलनाथ और एमपी में उनकी रणनीति पर तंज है. हालांकि कमलनाथ सॉफ्ट हिन्दुत्व पर आगे बढ़ रहे हैं, इसके राजनीतिक पहलू पर बाद में गौर करेंगे. पहले छिंदवाड़ा के कार्यक्रम पर और उस कार्यक्रम पर कमलनाथ के संबंध को लेकर मध्य प्रदेश की राजनीति पर बारीकी से नजर रखने वाले वरिष्ठ पत्रकार केशव मेहता का नजरिया जान लेते हैं. केशव मेहता का नजरिया इसलिए भी मायने रखता है कि धीरेंद्र शास्त्री का मीडिया वही संभालते हैं. 

केशव मेहता कहते हैं:

" ये राजनीतिक कार्यक्रम तो था नहीं. ये विशुद्ध रूप से धार्मिक कार्यक्रम था. बाबा बागेश्वर धाम सरकार जो हैं, वो सभी के हैं. हिन्दू धर्म मानने वालों के लिए हिंदुत्व का मायने तो बाबा बागेश्वर धाम ने बताया ही है. जहां तक कमलनाथ जी का सवाल है, 15 साल पहले सिमरिया में कमलनाथ जी ने हनुमान जी की एक मूर्ति स्थापित की थी. छिंदवाड़ा के लिए उन्होंने जितना काम किया है, किसी ने नहीं किया है. वहां के लोगों को श्रीराम की भक्ति से जोड़ने के लिए भी उन्होंने एक कार्यक्रम का आयोजन किया था. लोग अलग-अलग मायने निकाल रहे हैं, लेकिन मेरी समझ से इसका कोई राजनीतिक मायने नहीं निकाला जाना चाहिए. बागेश्वर धाम सरकार दसियों बार कह चुके हैं कि वो न किसी पार्टी से जुड़े हैं, न उनकी कोई पार्टी है, वे हनुमान जी की पार्टी के हैं.

केशव मेहता आगे कहते हैं:

"कमलनाथ जी के अंदर भी हिन्दुत्व है. कमलनाथ के बयान से राजनीतिक मायने निकाले जा सकते हैं, लेकिन हिन्दुत्व के उस पैरामीटर पर, जिस पर बीजेपी है, शायद कांग्रेस का वो पैरामीटर नहीं है. छिंदवाड़ा के कार्यक्रम में सर्वधर्म सम्मेलन भी हुआ. सारे धर्म के लोग भी एकत्रित हुए. 7 अगस्त को मंच पर हिन्दू, मुस्लिम, सिख, ईसाई..चारों धर्म के लोग आकर व्यास पीठ की पूजा किए हैं, तो इसमें कट्टरवादी कोई एंगल मुझे समझ नहीं आता है. लेकिन लोग अपने-अपने हिसाब से अपने-अपने मायने निकाल लेते हैं."

छिंदवाड़ा में बाबा बागेश्वर धाम के कार्यक्रम के आयोजनकर्ता को लेकर भी केशव मेहता ने कुछ बातें स्पष्ट की. कमलनाथ ने कहा था कि बागेश्वर बाबा को मैंने नहीं बुलाया. वो खुद अपना कार्यक्रम बनाकर आए. इस पर केशव मेहता का कहना है कि व्यक्ति विशेष कोई कार्यक्रम नहीं करवाता है. कार्यक्रम काफी बृहद रूप में होता है. तकरीबन 10 से 15 लाख लोग एकत्रित होते हैं. उनकी व्यवस्था को संभालने के लिए एक समिति होती है. सिमरिया हनुमान समिति ने ये कार्यक्रम कराया था. छिंदवाड़ा के सांसद नकुल नाथ (कमलनाथ के बेटे) मुख्य यजमान की भूमिका में थे. इसमें आदिवासी क्षेत्र के जो लोग हैं, वो लोग भी जुड़े हुए थे. इसमें और भी समुदाय के लोग अपनी-अपनी भूमिका में थे.

कांग्रेस का सेक्युलरिज्म और कमलनाथ की नीति

केशव मेहता की बातों से एक बात तो स्पष्ट है कि कमलनाथ छिंदवाड़ा में धार्मिक कार्यक्रमों से जुड़े रहे हैं और ये उनके या उनके परिवार के लिए कोई नई बात नहीं है. धीरेंद्र शास्त्री हिंदू राष्ट्र की बात करते रहे हैं, वहीं कांग्रेस हमेशा ही खुद को सेक्युलरिज्म की पक्षधर बताते रही है. इस मसले पर कांग्रेस हमेशा बीजेपी को सांप्रदायिक माहौल को खराब करने का आरोप भी लगाते रही है. ऐसे में कमलनाथ का धीरेंद्र शास्त्री के कार्यक्रम में जाना और बाद में हिन्दू राष्ट्र पर बयान का सियासी मतलब निकाला जाना स्वाभाविक ही है.

कमलनाथ ही है एमपी में कांग्रेस का चेहरा

पार्टी प्रदेश अध्यक्ष कमलनाथ फिलहाल मध्य प्रदेश में वो चेहरा हैं, जिनको आगे करके कांग्रेस चुनावी तैयारियों में जुटी है. शिवराज सिंह चौहान का कद काफी बड़ा है. दिसंबर 2018 से मार्च 2020 के 15 महीनों को छोड़ दिया जाए, तो शिवराज सिंह चौहान 29 नवंबर 2005 से मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री हैं. मुख्यमंत्री के तौर पर उनका 17वां साल है. शिवराज सिंह चौहान 5वीं बार मुख्यमंत्री बनने का मंसूबा पूरा करना चाहते हैं. ज्योतिरादित्य सिंधिया भी इस बार बीजेपी में ही हैं.

ज्योतिरादित्य सिंधिया के जाने के बाद पिछले तीन साल से जिस तरह से कमलनाथ ने प्रदेश में कांग्रेस को मजबूत करने और कार्यकर्ताओं को एकजुट रखने में अथक मेहनत की है, सिर्फ वहीं एक चेहरा हैं जो शिवराज सिंह के लिए चुनौती पेश कर सकते हैं. इस बात से कांग्रेस का शीर्ष नेतृत्व भलीभांति परिचित है. शायद यही वजह है कि कांग्रेस के वरिष्ठ नेता और दो बार प्रदेश के मुख्यमंत्री रह चुके दिग्विजय सिंह भी बार-बार ये कहते आए हैं कि कमलनाथ ही आगामी विधानसभा चुनाव में पार्टी के मुख्यमंत्री पद का चेहरा होंगे. पिछली बार की तरह दिल्ली में बैठा कांग्रेस का शीर्ष नेतृत्व इस बार कोई रिस्क नहीं लेना चाहता है. इसलिए ऐसा लगता है कि चुनावी रणनीतियों को अंजाम देने में ऊपर से कमलनाथ को फ्री हैंड भी मिला हुआ है. 

शिवराज सिंह की काट कमलनाथ के पास

शिवराज सिंह चौहान के खिलाफ एंटी इनकंबेंसी है. इतने लंबे वक्त से मुख्यमंत्री रहने के कारण शिवराज सिंह के खिलाफ अपनी पार्टी के भीतर भी नाराजगी होगी, इसमें भी कोई दो राय नहीं है. ये स्वाभाविक भी है कि जब आप इतने सालों से मुख्यमंत्री रहेंगे तो पार्टी संगठन में आपके खिलाफ सुगबुगाहट भी रहेगी ही. तमाम विपरीत परिस्थितियों के बावजूद शिवराज सिंह चौहान और बीजेपी के लिए एक बड़ा सहारा हिंदुत्व का मुद्दा है. अगर वोटों का ध्रुवीकरण हिंदू-मुस्लिम कसौटी पर हुआ तो बीजेपी के लिए ये प्लस प्वाइंट होगा. कमलनाथ बस इस संभावना को खत्म करना चाहते हैं.

हिंदुत्व को नहीं बनना देने चाहते हैं चुनावी मुद्दा

पिछले एक डेढ़ साल में कमलनाथ ने सार्वजनिक तौर से मध्य प्रदेश में हिंदुत्व को बड़ा मुद्दा या फिर कहे बीजेपी के पक्ष में मुद्दा नहीं बनने दिया है. कमलनाथ ने सार्वजनिक तौर से हर वो काम किया है जिसके जरिए लोगों में  कांग्रेस को लेकर हिंदू विरोधी छवि बनाने की बीजेपी की कोशिश को मध्य प्रदेश में कामयाबी नहीं मिल सके.

शिवराज सिंह चौहान की पहचान एक विनम्र छवि वाले नेता के तौर पर  रही है. पहले वे बड़े ही शांत तरीके से हिन्दुत्व के एजेंडे पर काम करने वाले नेता के तौर पर जाने जाते थे. हालांकि पिछले दो साल से वे खुलकर इस एजेंडे पर बोलते दिखते हैं. कमलनाथ इसे समझ गए थे और इसी कारण से वे कांग्रेस के मूल एजेंडे सेक्युलरिज्म को साथ लेकर भी प्रतीकात्मक हिंदुत्व आधारित राजनीति का कोई मौका खोना नहीं चाहते हैं.

हिंदुत्व पर भी 'तू डाल-डाल, मैं पात-पात'

कमलनाथ, शिवराज सिंह चौहान के वादों और योजनाओं का तो तोड़ निकाल ही रहे हैं, साथ ही हिंदुत्व के मसले पर भी कमलनाथ चाहते हैं कि मध्य प्रदेश में कांग्रेस पीछे नजर न आए. इसी के तहत कमलनाथ ने प्रदेश कांग्रेस कमेटी में कई अन्य प्रकोष्ठ के साथ ही पुजारी प्रकोष्ठ, मठ मंदिर प्रकोष्ठ और धार्मिक उत्सव प्रकोष्ठ भी बनाया है. मई में कर्नाटक में कांग्रेस की बड़ी जीत के बाद एमपी में कई ऐसे पोस्टर दिखे जिसमें कमलनाथ की तस्वीर के साथ लिखा था कि 'कर्नाटक में हनुमान भक्त कांग्रेस पार्टी को मिला आशीर्वाद'. उस वक्त भोपाल में कई ऐसे पोस्टर प्रदेश कांग्रेस कमेटी के मुख्यालय के पास भी लगाए गए पिछले दो साल में कांग्रेस लगातार सूबे मे धार्मिक आयोजन कर रही है. भगवा रंग को प्रदेश के कांग्रेस दफ्तरों में जगह दी गई है. खुद कमलनाथ को पोस्टरों और ट्विटर के जरिए हनुमान भक्त के तौर पर प्रचारित किया जा रहा है. कमलनाथ इससे पहले भी फरवरी में बागेश्वर धाम जाकर धीरेंद्र शास्त्री से मिलकर उनका आशीर्वाद ले चुके हैं. 

एमपी में कौन है हिंदुत्व का सबसे बड़ा चेहरा?

हम कह सकते हैं कि कमलनाथ मध्य प्रदेश में हिंदुत्व के चेहरे के तौर पर भी शिवराज सिंह चौहान को बढ़त लेने नहीं देना चाहते हैं. शायद यही  वजह है कि यहां की सियासत को बखूबी समझने वाले केशव मेहता भी कहते हैं कि एबीपी ने ही एक सर्वे करवाया था, जिसमें ये पूछा गया था कि मध्य प्रदेश में हिंदुत्व का बड़ा चेहरा कौन हैं तो उसमें करीब 45% लोग कमलनाथ और 42% शिवराज सिंह चौहान के पक्ष में थे. इस सर्वे की मानें तो यहां के लोगों के लिए तो कमलनाथ ही हिन्दुत्व के बड़े चेहरे हैं.

एमपी की सत्ता और आदिवासियों का महत्व

छिंदवाड़ा में बाबा बागेश्वर धाम के कार्यक्रम के आयोजन से एक और बात निकलकर सामने आती है, जिसका पॉलिटिकल इंपैक्ट आगामी विधानसभा चुनाव पर काफी पड़ सकता है. छिंदवाड़ा में धीरेंद्र शास्त्री के कार्यक्रम के आयोजन में वहां के आदिवासी समुदाय का महत्वपूर्ण योगदान था. इस इलाके की एक बड़ी आदिवासी आबादी कार्यक्रम में पहुंची थी. जैसा कि केशव मेहता का भी कहना है.

मध्य प्रदेश ऐसा राज्य है जहां देश में आदिवासियों की संख्या सबसे ज्यादा है. 2011 की जनगणना के मुताबिक मध्य प्रदेश में अनुसूचित जनजातियों की संख्या 1.53 करोड़ से ज्यादा थी. प्रदेश की कुल जनसंख्या में आदिवासियों की संख्या 21 फीसदी से ज्यादा है. मध्य प्रदेश देश का एक ऐसा राज्य है, जहां हर पांचवां आदिवासी समुदाय से आता है.

एमपी में 47 सीटें एसटी के लिए आरक्षित

मध्य प्रदेश की सत्ता को हासिल करने के लिए आदिवासियों का समर्थन काफी महत्वपूर्ण हो जाता है. मध्य प्रदेश विधानसभा में कुल 230 सीटें हैं, जिनमें से 47 सीटें आदिवासियों (ST) के लिए और 35 सीटें अनुसूचित जातियों (SC) के लिए आरक्षित हैं. देश में मध्य प्रदेश में ही सबसे ज्यादा विधानसभा सीटें आदिवासियों के लिए आरक्षित हैं.  मध्य प्रदेश में कुल 29 लोकसभा सीटें हैं, जिनमें से 6 सीटें आदिवासियों के लिए और 4 सीटें अनुसूचित जातियों के लिए आरक्षित हैं. मध्य प्रदेश ऐसा राज्य है जहां सबसे ज्यादा लोकसभा सीटें आदिवासियों के लिए आरक्षित हैं. इनके अलावा भी यहां विधान सभा और लोकसभा की बहुत सीटें ऐसी हैं, जिन पर जीत-हार में आदिवासियों का वोट निर्णायक होता है.

आदिवासी वोट बैंक पर कमलनाथ की नज़र

जनजातीय राज्य होने की वजह से आदिवासी वोट बैंक किसी भी पार्टी के लिए रणनीतिक तौर से महत्वपूर्ण हो जाता है. सत्ता किस पार्टी की आएगी, ये बहुत हद तक आदिवासियों से मिले समर्थन पर टिका होता है.

पिछले कई विधानसभा चुनाव से आदिवासियों का भरपूर समर्थन बीजेपी को मिलता रहा था, लेकिन 2018 के विधानसभा चुनाव में बीजेपी का प्रदर्शन आदिवासियों के लिए आरक्षित सीटों पर उतना अच्छा नहीं रहा था. 2018 के विधानसभा चुनाव में बीजेपी को एसटी समुदाय के लिए आरक्षित 47 में से सिर्फ़ 16 सीटों पर ही जीत मिल पाई थी. जबकि 2008 और 2013 के विधानसभा चुनाव में बीजेपी इनमें से 31-31 सीटों पर जीतने में कामयाब रही थी.

यही वजह है कि 2018 के चुनाव में बीजेपी बहुमत से दूर रह गई थी और शिवराज सिंह चौहान को सत्ता से हाथ धोना पड़ा था. ये तो ज्योतिरादित्य सिंधिया का कमाल था कि बाद में मध्य प्रदेश में बीजेपी फिर से सरकार बनाने में कामयाब हो पाई.

पिछली बार की तरह ही इस बार भी कांग्रेस को आदिवासियों का उतना ही समर्थन मिले, कमलनाथ ये भी सुनिश्चित करना चाहते हैं. 2018 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस को एसटी और एससी के लिए आरक्षित कुल 82 में से 47 सीटों पर जीत मिली थी, जबकि बीजेपी के इनमें से सिर्फ 34 पर जीत मिली थी.

क्या कांग्रेस को आदिवासियों का भरपूर समर्थन मिलेगा?

भले ही बाबा बागेश्वर धाम का कार्यक्रम धार्मिक आयोजन हो, लेकिन चुनाव से चंद महीने पहले छिंदवाड़ा में इसके होने और आयोजन में कमलनाथ परिवार की महत्वपूर्ण भूमिका रहने को आदिवासी समाज का समर्थन हासिल करने की कवायद मानी जा सकती है.

लोकसभा चुनाव 2024 पर भी कमलनाथ की नज़र

कमलनाथ के लिए पहली प्राथमिकता तो नवंबर-दिसंबर में होने वाला विधानसभा चुनाव ही है, लेकिन साथ ही उनकी नजर 2024 के लोकसभा चुनाव पर भी है. मध्य प्रदेश बीजेपी के लिए उन राज्यों में शामिल है, जहां पार्टी शत-प्रतिशत सीटें जीतने का लक्ष्य लेकर चलती है. 2009 के लोकसभा चुनाव में  बीजेपी को कुल 29 में से 25 सीटों पर जीत मिली थी. वहीं 2014 में 27 और 2019 के लोकसभा चुनाव में 28 सीटों पर जीत मिली थी.

मध्य प्रदेश में शहडोल, मंडला, रतलाम, धार, खरगौन और बैतूल  लोकसभा सीट एसटी के लिए आरक्षित हैं. 2014 और 2019 दोनों ही लोकसभा चुनाव में बीजेपी को इन सभी 6 सीटों पर जीत मिली थी. वहीं 2009 के लोकसभा चुनाव में बीजेपी इनमें से सिर्फ दो सीट बैतूल  और खरगौन ही जीत पाई थी, जबकि कांग्रेस को शहडोल, मंडला, रतलाम और धार लोकसभा सीट पर जीत मिली थी. ये आंकड़े बताते हैं कि 2014 से लोकसभा में आदिवासियों का भरपूर समर्थन बीजेपी को मिल रहा है.

हिन्दू-मुस्लिम पर न हो वोटों का ध्रुवीकरण

कमलनाथ की नजर इस पर भी है और वे चाहते हैं कि आदिवासियों का समर्थन विधानसभा की तरह ही आगामी लोकसभा में भी कांग्रेस को मिले. कमलनाथ पिछले दो लोकसभा चुनाव की परंपरा को तोड़ना चाहते हैं. इसलिए आदिवासियों का समर्थन हासिल करने के लिहाज से छिंदवाड़ा में बागेश्वर धाम के कार्यक्रम और धीरेंद्र शास्त्री के साथ कमलनाथ के मंच साझा करने को जोड़ा जा सकता है.

मध्य प्रदेश की राजनीति में हावी होने के लिए कमलनाथ किसी भी मुद्दे पर जिनसे वोटों का ध्रुवीकरण हो सकता है, उन पर शिवराज सिंह चौहान और बीजेपी से पीछे नहीं दिखना चाहते हैं.

[नोट- उपरोक्त दिए गए विचार लेखक के व्यक्तिगत विचार हैं. ये जरूरी नहीं कि एबीपी न्यूज़ ग्रुप इससे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.]

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