एक्सप्लोरर

Har Ghar Tiranga Campaign: 'हर घर तिरंगा' दिल, राष्ट्र और भारतीय संविधान संग राष्ट्रीयता का एक एहसास…

Har Ghar Tiranga Campaign: "हर घर तिरंगा" अभियान को देखते हुए  राष्ट्रीय ध्वज के विकास के बारे में सोचना और बात करना लाजिमी हो जाता है और ये जरूरी भी हैं क्योंकि उपनिवेशवाद विरोधी संघर्ष के दौरान राष्ट्रवाद की कल्पना में इस ध्वज की खास जगह है. यही वजह है कि इसके साथ हमारा रिश्ता खास है और पूरी तरह से दिल से जुड़ा है. ये दिली रिश्ता देश और भारतीय संविधान की बात करता है, इसलिए ये  महज एक ध्वज नहीं बल्कि एक एहसास है. कुछ लोग यह सोच सकते हैं कि झंडे में केसरिया या नारंगी रंग हिंदू निर्वाचन क्षेत्र को दिखाता है, तो हरा रंग मुस्लिम समुदाय का प्रतीक है और इसका सफेद रंग देश के अन्य समुदायों का प्रतिनिधत्व करता है.आजादी से पहले के दौर में इस झंडे में नारंगी रंग की जगह लाल रंग ने ले रखी थी. सिवाय इसके इस झंडे का रंग-रूप कुछ-कुछ मौजूदा वक्त जैसा ही रहा था.

निर्णायक पलों का गवाह रहा ध्वज

गांधी जी ने 13 अप्रैल 1921 को यंग इंडिया एक लेख में इस झंडे के बारे में कहा था कि झंडे के बीच में चरखा या घूमता हुआ पहिया ब्रितानिया हुकूमत तले हर शोषित भारतीय की तरफ इशारा करने के साथ ही हर भारतीय घर के कायाकल्प की संभावनाओं को भी दिखाता है. संविधान सभा की बहस और चर्चाओं की वजह से  22 जुलाई 1947 को तिरंगे झंडे को अपनाया गया. हालांकि इसमें सभा के कुछ सदस्यों के झंडे के रंगों को लेकर दिए गए सुझाव इसकी दूसरी तरह की व्याख्या प्रस्तुत कर रहे थे.

ये सदस्य हरे रंग को प्रकृति के प्रतीक के रूप में देखते हुए और इस बात की तरफ अधिक झुकाव रखते थे कि हम सभी 'धरती माता' की संतान हैं. नारंगी रंग को त्याग और बलिदान के प्रतीक के रूप में तो सफेद रंग को  शांति के प्रतीक के रूप में लिया गया.  ऐसा माना जा सकता है, लेकिन फिर भी तिरंगे को इस बात पर सोचे बगैर नहीं खोला जा सकता है कि यह दिल, राष्ट्र और संविधान की ‘थ्री फोर्क्ड रोड’ से कैसे उभर कर आज के स्वरूप में आया है. यहां थ्री फोर्क्ड से मतलब इतिहास के निर्णायक पल से है, जब सामने कई विकल्पों में से एक विकल्प की जरूरत महसूस की जाती है और उस एक विकल्प के चुने जाने के बाद आप उसे बदल नहीं सकते. भारत के राष्ट्रीय ध्वज का मामला भी कुछ ऐसा ही रहा है.

राष्ट्र के सम्मान और अखंडता का प्रतीक

हालांकि, राष्ट्रीय ध्वज क्या है और सभी राष्ट्र-राज्यों में ये एक ही क्यों होता है ? ये जानने की उत्सुकता आपको भी होगी, क्योंकि  राष्ट्रगान और राष्ट्रीय ध्वज हर राष्ट्र-राज्य का आधार हैं. इसके साथ ही लगभग सभी राष्ट्रों का एक राष्ट्रीय प्रतीक भी होता है, जैसे की हमारे देश भारत में है. राष्ट्रगान, "जन गण मन" के आसपास भारत का एक उलझा हुआ सा इतिहास है. ये उलझी कड़ी देश के आधिकारिक  राष्ट्रीय गीत, "वंदे मातरम" से लेकर आमतौर पर इस्तेमाल होने वाले अनौपचारिक या अनाधिकारिक  गान "सारे जहां से अच्छा" तक खिंचती जाती है.

यही वजह है कि राष्ट्रीय ध्वज भारत में खास और बेहद अहम हो जाता है. राष्ट्रीय ध्वज राष्ट्र और राज्य के स्पष्ट निशान  या प्रतीक के तौर पर लिया जाता है. राष्ट्र के सम्मान और अखंडता को ध्वज से जोड़कर देखा जाता रहा है. राष्ट्र-राज्य की गाथा का इतिहास गवाह है कि कैसे राष्ट्रीय ध्वज के लिए देश के नागरिक किसी भी तरह का बलिदान करने के लिए उतावले रहते हैं. इसकी शक्ति का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि राष्ट्रीय झंडे या ध्वज में राष्ट्रवाद की भावनाओं को पैदा करने की ताकत है. तभी तो इस ध्वज की शान के लिए देशवासी  हंसते -हंसते फांसी पर झूल जाने से लेकर सबकुछ न्यौछावर कर डालने से भी गुरेज नहीं करते.

भारत जैसे बहु-जातीय, बहु-धार्मिक, और अत्यधिक बहुभाषी राष्ट्र में राष्ट्रीय ध्वज हर भारतीय को ये याद दिलाने के लिए है कि कुछ है जो उन्हें जोड़ता है एक करता है. यह देशवासियों को बताता है कि किसी भी भाषा, धर्म, जाति समूह या किसी अन्य चीज़ के प्रति उनकी निष्ठा से पहले  वे भारतीय हैं . देखा जाए तो हर तरह से राष्ट्रीय ध्वज न केवल हमारे सम्मान, बल्कि राष्ट्र के लिए हमारी निष्ठा को निभाने का एक तरह से अप्रत्यक्ष आदेश देता है. 

राष्ट्रीय ध्वज से करीबी रिश्ता बनाने की कवायद

संस्कृति मंत्रालय की "आज़ादी का अमृत महोत्सव" वेबसाइट में "हर घर तिरंगा" अभियान एक अहम हिस्सा है.यह अहम हिस्सा एक अलग तरह की बहस को जन्म देता है. इसमें कहा गया है कि राष्ट्रीय ध्वज के साथ हमारा रिश्ता हमेशा से निजी से अधिक औपचारिक और संस्थागत रहा है.

इस अभियान मकसद हर भारतीय के तिरंगे से व्यक्तिगत यानी निजी रिश्ते बनाने और राष्ट्र-निर्माण के प्रति प्रतिबद्धता को साकार करना है. यह विचार सुझाव खुले तौर पर बताता है कि इसका मकसद देशभक्ति की भावना का आह्वान करना है.

इसका सही मतलब  समझने और जानने के लिए हमें दो बातों को अलग करना होगा. पहली बात देशभक्ति का सवाल है तो दूसरी बात राष्ट्रीय ध्वज के साथ भारतीयों के औपचारिक, कठोर और संस्थागत संबंधों को बेहद निजी और करीब बनाने की कोशिशों की जा रही है. देशभक्ति पर लंबी और बड़ी चर्चा करने से पहले आइए हम यहां दूसरी बात यानी भारतीयों के राष्ट्रीय ध्वज से करीबी रिश्ते से चर्चा शुरू करते हैं. 

जब आया झंडा फहराने का फ्लैग कोड 

संयुक्त राज्य अमेरिका और कनाडा जैसे देशों के विपरीत दरअसल भारत ने लंबे वक्त तक आम नागरिकों को अपने घर  या ऑफिस में  झंडा फहराने की मंजूरी नहीं दी थी.  इस अधिकार को राज्य के विशेषाधिकार के तौर पर संरक्षित लिया गया था. साल 2002 में  " दि फ्लैग कोड-इंडिया" की ओवरहाल किया गया यानि इसकी कमी-पेशी दूर की गई. इसकी जगह  "फ्लैग कोड ऑफ इंडिया" लाया गया. इसके साथ ही राष्ट्रीय सम्मान के अपमान की रोकथाम अधिनियम, 1971 के तहत  राष्ट्रीय ध्वज को फहराने में पालन किए जाने वाले प्रोटोकॉल बनाए गए.

21 सितंबर 1995 को दिल्ली उच्च न्यायालय ने "फ्लैग कोड-इंडिया" को लेकर आधिकारिक फैसला दिया. भले ही कोर्ट का ये फैसला कम याद किया जाए, लेकिन ये इस मामले में बेहद अहम रहा. इसमें कोर्ट ने निर्देशित किया था कि तत्कालीन "फ्लैग कोड-इंडिया" की इस तरह से नहीं लिया जा सकता जो एक आम नागरिक को उसके ऑफिस या घर से राष्ट्रीय ध्वज फहराने से रोक सके. यही वजह रही कि आखिरकार साल 2002 में  ध्वज संहिता -2002 (Flag Code Of 2002) अस्तिव में आई. ये फ्लैग कोड राष्ट्रीय ध्वज की गरिमा और सम्मान के अनुरूप तिरंगे के बेरोक-टोक  प्रदर्शन की अनुमति देता है.

हालांकि, हाल के दिनों में  राष्ट्रीय ध्वज को बनाने के लिए इस्तेमाल होने वाली सामग्री पर भी काफी चर्चा हुई है.  अगर इस सवाल को छोड़ दिया तो अभी भी  फ्लैग कोड के तहत राष्ट्र ध्वज को लेकर कई तरह के प्रतिबंध जारी हैं, जैसे कि फ्लैग कोड के पैरा 2.2, सेक्शन 11 (Para 2.2, sec. xi)  केवल "सूर्योदय से सूर्यास्त तक" फहराया जाने का नियम.

हालांकि फ्लैग कोड में हुए ये बदलाव आम जन के जानकारी में कभी भी नहीं आ पाए. नतीजन यह कहना अधिक सुरक्षित रहा कि भारतीयों के राष्ट्रीय ध्वज के साथ निजी और अंतरंग रिश्तों के बजाय दूरी और औपचारिक रिश्ते रहें हैं. राष्ट्रीय ध्वज के साथ भारतीय नागरिकों के रिश्ते को "हर घर तिरंगा" पहल ने बदलने की कोशिश की है. 

आजादी से पहले ही झंडे से भारतीयों का रहा है करीबी रिश्ता

चौंकाने वाली बात यह है कि भले ही यह अब सार्वजनिक या संस्थागत स्मृति का हिस्सा न हो, लेकिन आजादी से पहले के दो से तीन दशकों में भारतीयों का वास्तव में कांग्रेस के झंडे के साथ एक निजी और करीबी रिश्ता रहा. तब तत्तकालीन अंग्रेजी अधिकारी कुछ उपहास या मजाक के साथ इस रिश्ते के बारे में बात करते थे. यह, गांधी ध्वज वही ध्वज हैं जिसमें कई सुधार किए गए. मसलन पहले ध्वज में लगे अशोक की लाट के शेरों की जगह ध्वज में चरखे को जगह मिली और बाद में यह संविधान सभा ने अपनाया और इसे आज के राष्ट्रीय ध्वज का सम्मान मिला.

झंडा फहराने के अधिकार के लिए कांग्रेसियों और महिलाओं ने ब्रिटिश सरकार के अधिकारियों से जोश के साथ लड़ाई लड़ी. लोगों ने देखा कि झंडा फहराने से हमेशा ही ब्रिटिश अधिकारी गुस्से में आते थे और अक्सर इसका प्रतिशोध लेने के लिए  ब्रिटिश अधिकारियों ने झंडे को नीचे गिराने का आदेश दिया. दुर्लभ अवसरों पर जब कोई ब्रिटिश  सरकारी अधिकारी कांग्रेस का झंडा फहराने देता, तो उसे औपनिवेशिक सरकार से तुरंत फटकार लगाई जाती थी. 

जब यूनियन जैक के साथ कांग्रेसी झंडा फहराने पर चिढ़ गई ब्रितानी हुकूमत

इस तरह का एक वाकया साल 1923 में भागलपुर में सामने आया था. तब एक सरकारी अधिकारी ने यूनियन जैक के साथ कांग्रेस का झंडा फहराने के लिए सहमति दी थी, हालांकि इसे जूनियन जैक की तुलना में कम ऊंचाई पर फहराया गया था. इसका नतीजा ये हुआ कि न केवल भारत की ब्रितानी सरकार, बल्कि ब्रिटिश कैबिनेट ने एक सख्त नोट जारी किया. इसमें कहा गया, "किसी भी परिस्थिति में स्वराज या गांधी ध्वज को यूनियन जैक के नीचे भी नहीं फहराया जाना चाहिए."

ब्रिटिश सरकार की झंडे को लेकर नाराजगी का असर बेहद क्रूर था. नमक सत्याग्रह के दौरान, आठ साल की उम्र के लड़कों को झंडा फहराने या फहराने की कोशिश  के अपराध के लिए कोड़े लगाए गए थे. पदविभूषण से सम्मानित निडर और साहसी कमलादेवी चट्टोपाध्याय (Kamaladevi Chattopadhyay) ने अपने जीवंत संस्मरणों में नमक सत्याग्रह (Salt Satyagraha) के दौरान झंडे को लेकर हुए संघर्ष के बारे में बताया. इसमें बताया गया है कि  कांग्रेस के स्वयंसेवकों ने समय-समय पर झंडा फहराया और ब्रिटिश पुलिस ने इसे हर बार उतारा. उन्होंने लिखा,"आज भी झंडे के साथ ऊपर, झंडे के साथ ऊपर की आवाजें कानों में गूंजती रहती हैं.” स्वतंत्रता संग्राम सेनानी और समाज सुधारक कमलादेवी चट्टोपाध्याय की साल 1988 में मौत हो गई. 

कठिन संघर्षों से मिला झंडा फहराने का हक

भारतीयों को राष्ट्रीय ध्वज फहराने का अधिकार एक मुश्किल संघर्ष के बाद मिला है. इन संघर्षों की छाया में ही राष्ट्रीय ध्वज विकसित होता रहा. यह भीकाजी कामा (Bhikaji Cama) थीं, जिन्होंने अखबार बंदे मातरम (Bande Mataram) का संपादन किया और यूरोप में भारतीय क्रांतिकारियों के साथ बेहद करीबी से जुड़ीं रहीं. यहीं वही भीकाजी कामा है, जिन्होंने  22 अगस्त 1907 जर्मनी के स्टुटगार्ट में हुई दूसरी 'इंटरनेशनल सोशलिस्ट कांग्रेस' में पहला भारतीय राष्ट्रीय ध्वज फहराया था.

ये देश के आज के झंडे से अलग था, लेकिन आज़ादी की लड़ाई के दौरान बनाए गए कई अनौपचारिक झंडों में से एक था. इस मामले में कमलादेवी ने ठीक ही लिखा हैं कि कामा ने ऐसा करके "भारत को एक स्वतंत्र राजनीतिक अस्तिव के तौर पर स्थापित किया. साल 1906 में कलकत्ता (कोलकाता) में पहली बार वही झंडा फहराया गया था. साल 1921 में गांधी जी के कहने पर इसके केंद्र में चरखे को जगह दी गई. इसके बाद ध्वज के स्वरूप को फिर से 1931 में संशोधित किया गया था. जैसा कि गांधी ने लिखा था, "सभी राष्ट्रों के लिए झंडा एक अहम जरूरत है.” 

इस ध्वज के लिए लाखों की जानें जा चुकी है. इसमें कोई संदेह नहीं की यह मूर्तिपूजा की तरह ही ध्वज के लिए अटूट प्रेम और श्रद्धा है, जिसे नष्ट करना पाप होगा. यूनियन जैक को हवा में लहराते देख ब्रिटिशों का दिल किस तरह गर्व से भर गया. तब यही देखकर उस वक्त गांधी ने पूछा, “क्या इसी तरह यह जरूरी नहीं है कि सभी भारतीय "जीने और मरने के लिए एक समान झंडे को पहचान दें?" इस तरह उस दौर में अगर आजादी के हर अभियान के साथ कांग्रेस का झंडा होता तो कलाकारों ने भी अपनी कला में झंडे को प्रमुखता से शामिल किया था.

जब निकला झंडे का रंगीन प्रिंट

साल 1945 में झंडे का रंगीन प्रिंट निकला था. उसमें सुभाष चंद्र  बोस और देशद्रोह के आरोप में मुकदमे का सामना करने वाले भारतीय राष्ट्रीय सेना (Indian National Army) के नायकों को जगह दी गई थी. एक तरह से यह उन नायकों के हौसले का जश्न मनाने जैसा था. हम उस दौर के कांग्रेस के झंडे में चरखे तो आईएनए (INA) के झंडे में बाघ को उछलते हुए (Springing Tiger) और दूसरी तरफ सुभाष चंद्र बोस को देखते हैं.

देश की आजादी की लड़ाई में शहीदों को भले ही नाकामयाबी का मुंह भी देखना पड़ा हो, लेकिन उनका संघर्ष और कुर्बानी बेकार नहीं गई. साल 1947 से सुधीर चौधरी के बनाए प्रिंट में भारत माता के चरणों में रखे भगत सिंह और खुदीराम बोस जैसे शहीदों के सिर दिखाए गए हैं और इसमें भारत माता को भारत की आजादी की पूर्व संध्या में नेहरू को तिरंगा सौंपते हुए दिखाया गया है. इस प्रिंट में भारत माता अपने अलग-अलग हाथों में राष्ट्रीय ध्वज के तिरंगे में विकसित होने से पहले के सफर को दिखाते हुए है. 

यदि भारतीयों ने राष्ट्रीय ध्वज के लिए जोश के साथ लड़ाई लड़ी, तो उन्होंने ऐसा इसलिए किया क्योंकि वो उस पर विश्वास करते थे जिसके लिए वे खड़े थे और उन्होंने औपनिवेशिक उत्पीड़न के खिलाफ अपनी मर्जी से ऐसा किया था. झंडे के लिए यह प्यार राज्य के बजाय देशवासियों के दिलों के अंदर से एक जनादेश के तौर पर आया था. ये प्यार दबाव में नहीं बल्कि सहज था, लेकिन आज ऐसी किसी भी चर्चा में, जिसमें हम ध्वज या झंडे के अर्थ के बारे में बात करते हैं तो यह ध्यान रखा जाना चाहिए कि भले ही राष्ट्र का काम देशभक्त नागरिक बनाना है, लेकिन राष्ट्र के दबाव में बनाई गई ये देशभक्ति अधिक दिनों तक नहीं टिक सकती है. यह बाजार के किसी प्रोडेक्ट की तरह ही कुछ ही दिनों की मेहमान जैसी है. 

भारत का संविधान और राष्ट्र ध्वज

यह भी कम प्रासंगिक नहीं है कि भारत के संविधान में राष्ट्रीय ध्वज पर कहने के लिए कुछ नहीं है. हालांकि पूर्व मुख्य न्यायाधीश वीएन खरे ने सुप्रीम कोर्ट की तीन सदस्यीय पीठ का नेतृत्व करते हुए 2004 में कहा था कि संविधान के अनुच्छेद 19 (1) (ए) के लिखित प्रावधानों के तहत नागरिक को झंडा फहराने का मौलिक अधिकार है. ये अनुच्छेद  भाषण और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के बारे में है. इसी के तहत झंडा फहराने के अधिकार की वकालत की गई है.

बेशक, संविधान में हजारों विषयों पर साफ तौर पर कहने के लिए कुछ नहीं है, और मुख्य न्यायाधीश खरे ने वही किया जो अदालतों को करना चाहिए, मतलब संविधान की व्याख्या करना. यह बेहतरीन और अच्छा है, लेकिन हमें इस बात का भी सामना करना होगा कि झंडे का सम्मान करने वाले कई लोग संविधान का सम्मान नहीं करते हैं. इसमें राष्ट्र भी कोई अपवाद नहीं है.मतलब भले ही लोग देश के संविधान को तवज्जो न दें, लेकिन वह झंडे की इज्जत करते हैं.

दरअसल यहां बहुत अधिक संभावना लोगों के संविधान की जगह राष्ट्रीय ध्वज का सम्मान करने की है. भाषण और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता वह बड़ा अधिकार है, जिसमें  झंडा फहराने का अधिकार भी शामिल है. इसमें कोई संदेह नहीं कि ये बेहद महत्वपूर्ण भी है, लेकिन यह जानना भी उतना ही जरूरी है कि संविधान देश के सर्वोच्च कानून के तौर पर खुद में राष्ट्रीय ध्वज को शामिल करता है. अब जब भारत के नागरिकों ने बगैर किसी रोक-टोक के राष्ट्रीय ध्वज फहराने का अधिकार हासिल कर लिया है, तो शायद समय आ गया है कि वे भाषण और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का सम्मान करने के कर्तव्य के बारे में भी सोचें.

नोट- उपरोक्त दिए गए विचार लेखक के व्यक्तिगत विचार हैं. ये जरूरी नहीं कि एबीपी न्यूज ग्रुप इससे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

View More

ओपिनियन

Sponsored Links by Taboola
25°C
New Delhi
Rain: 100mm
Humidity: 97%
Wind: WNW 47km/h

टॉप हेडलाइंस

Train Derailed: हाथियों से टकराई राजधानी एक्सप्रेस ट्रेन, इंजन और 5 डिब्बे पटरी से उतरे, क्या हैं ताजा हालात?
हाथियों से टकराई राजधानी एक्सप्रेस ट्रेन, इंजन और 5 डिब्बे पटरी से उतरे, क्या हैं ताजा हालात?
दिल्ली में प्रदूषण, कोहरे और ठंड का ट्रिपल अटैक! हर तरफ धुंआ ही धुआं, राजधानी का AQI 500 के पार
दिल्ली में प्रदूषण, कोहरे और ठंड का ट्रिपल अटैक! हर तरफ धुंआ ही धुआं, राजधानी का AQI 500 के पार
'टैरिफ अब मेरा 5वां पसंदीदा शब्द...’, ट्रंप ने मजाकिया अंदाज में अमेरिका के लिए कर दिया ये बड़ा ऐलान
'टैरिफ अब मेरा 5वां पसंदीदा शब्द...’, ट्रंप ने मजाकिया अंदाज में कर दिया ये बड़ा ऐलान
Kis Kisko Pyaar Karoon 2 BO Collection Day 8: 'धुरंधर' और 'अवतार' ले डूबी कपिल शर्मा की फिल्म, कमाई का हुआ ऐसा हाल
'धुरंधर' और 'अवतार' ले डूबी कपिल शर्मा की फिल्म, कमाई का हुआ ऐसा हाल
ABP Premium

वीडियोज

Bangladesh News: बांग्लादेश में हिंसा के बाद तनाव बरकरार...
Top News: अभी की बड़ी खबरें | PM Modi | Amit Shah | Donald Trump
Top News: 10 बजे की बड़ी खबरें | PM Modi | Nitin Nabin | Hijab Controversy | Delhi Pollution
Delhi Airport: दिल्ली एयरपोर्ट पर एक यात्री को पायलट ने पीटा..पायलट सस्पेंड | AIR India
Top News: 9 बजे की बड़ी खबरें | PM Modi | Nitin Nabin | Hijab Controversy | Delhi Pollution

पर्सनल कार्नर

टॉप आर्टिकल्स
टॉप रील्स
Train Derailed: हाथियों से टकराई राजधानी एक्सप्रेस ट्रेन, इंजन और 5 डिब्बे पटरी से उतरे, क्या हैं ताजा हालात?
हाथियों से टकराई राजधानी एक्सप्रेस ट्रेन, इंजन और 5 डिब्बे पटरी से उतरे, क्या हैं ताजा हालात?
दिल्ली में प्रदूषण, कोहरे और ठंड का ट्रिपल अटैक! हर तरफ धुंआ ही धुआं, राजधानी का AQI 500 के पार
दिल्ली में प्रदूषण, कोहरे और ठंड का ट्रिपल अटैक! हर तरफ धुंआ ही धुआं, राजधानी का AQI 500 के पार
'टैरिफ अब मेरा 5वां पसंदीदा शब्द...’, ट्रंप ने मजाकिया अंदाज में अमेरिका के लिए कर दिया ये बड़ा ऐलान
'टैरिफ अब मेरा 5वां पसंदीदा शब्द...’, ट्रंप ने मजाकिया अंदाज में कर दिया ये बड़ा ऐलान
Kis Kisko Pyaar Karoon 2 BO Collection Day 8: 'धुरंधर' और 'अवतार' ले डूबी कपिल शर्मा की फिल्म, कमाई का हुआ ऐसा हाल
'धुरंधर' और 'अवतार' ले डूबी कपिल शर्मा की फिल्म, कमाई का हुआ ऐसा हाल
सूर्यकुमार यादव के लिए किसी बुरे सपने से कम नहीं रही दक्षिण अफ्रीका टी20 सीरीज, आंकड़े देख सिर पकड़ लेंगे आप
सूर्यकुमार यादव के लिए किसी बुरे सपने से कम नहीं रही दक्षिण अफ्रीका टी20 सीरीज, आंकड़े देख सिर पकड़ लेंगे आप
ओमान में पीएम मोदी का वेलकम देखकर हिल गया मुस्लिम वर्ल्ड? पाक एक्सपर्ट चिढ़कर बोले- भारत को इतनी तवज्जो और पाकिस्तान...
ओमान में पीएम मोदी का वेलकम देखकर हिल गया मुस्लिम वर्ल्ड? पाक एक्सपर्ट चिढ़कर बोले- भारत को इतनी तवज्जो और पाकिस्तान...
Roasted Chana: मिलावटी चने खा लिए हैं तो सबसे पहले करें यह काम, ऐसे पता लगाएं मिलावट
मिलावटी चने खा लिए हैं तो सबसे पहले करें यह काम, ऐसे पता लगाएं मिलावट
Stress Effects: टेंशन होते ही क्यों बन जाता है प्रेशर, जानें बॉडी के अंदर कैसे होता है केमिकल लोचा
टेंशन होते ही क्यों बन जाता है प्रेशर, जानें बॉडी के अंदर कैसे होता है केमिकल लोचा
Embed widget