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भारत के लिए कितना अहम साबित होगा तीन देशों का ये नया गठजोड़?

कहते हैं कि दुनिया एक ऐसा मैदान है जिस पर खेलने और उसे जीतने का सपना हर ताकतवर मुल्क का होता है. लेकिन इस सच्चाई से भी इंकार नहीं कर सकते कि ये ऐसा जंगी मैदान है जिस पर अकेले खेलते हुए उस सपने को हक़ीक़त में बदलना थोड़ा मुश्किल इसलिये हो जाता है क्योंकि सामने सिर्फ एक नहीं बल्कि कई टीमें होती हैं. इसलिये सबसे ज्यादा ताकतवर समझी जाने वाली टीम ऐसी छोटी दो-तीन टीम को अपने साथ मिला लेती है, जिनकी ताकत भले ही कम हो लेकिन उनका साथ मिलने के बाद वो अपने विरोधियों को मनोवैज्ञानिक रुप से ये संदेश दे देती है कि तुम, अब हमारे मुकाबले में कुछ नहीं हो.

प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की प्रस्तावित यात्रा से पहले अमेरिका ने एक नई तिकड़ी बनाकर ये बताने की कोशिश की है कि वह अपनी 'दादागिरी 'को किसी भी सूरत में कमजोर नहीं होने देना चाहता. हालांकि फिलहाल उसका ये संदेश भारत नहीं बल्कि चीन के लिए है, इसीलिये कूटनीतिक लिहाज से भारत ने न तो इस पर खुशी जाहिर की है और न ही विरोध किया  है. सुरक्षा समझौते के मकसद से बनाई गई इस तिकड़ी को नाम दिया गया है- AUKUS. यानी ऑस्ट्रेलिया,  ब्रिटेन और अमेरिका. इसमें भारत शामिल नहीं है लेकिन फिर भी भारत के लिए इन तीन देशों का नया गठबंधन इसलिये अहम है क्योंकि इसे चीन की बढ़ती हुई ताकत का मुकाबला करने के लिए एक अहम कारगर हथियार के रुप में देखा जा रहा है. हालांकि इस नए गठजोड़ को लेकर तमाम तरह के सवाल भी उठ रहे हैं और चीन के अलावा फ्रांस ने भी इस पर अपना ऐतराज़ जताया है.

जबकि इससे पहले बने चार देशों के गठजोड़ में भारत भी शामिल है, जिसका नाम है- क्वाड. इसमें भारत के अलावा अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया और जापान है. यही कारण है कि AUKUS. का नया गठजोड़ बन जाने के बाद कूटनीतिक गलियारों में ये सवाल उठ रहे हैं कि इससे भारत को फायदा होगा या नुकसान?

लेकिन भारत ने कूटनीतिक भाषा के जरिये अपनी बात दुनिया के सामने रख दी है कि ये हमारे लिए चिंता का विषय जरा भी नहीं है. वैसे भी चीन के साथ हमारे रिश्ते बेहतर नहीं हैं और परोक्ष रुप से तीन देशों का ये गठजोड़ निलत भविष्य में भारत के लिये मददगार ही साबित होने वाला है. इस बारे में विदेश सचिव हर्षवर्धन श्रृंगला के मंगलवार को दिए बयान को भी अगर गहराई से समझने की कोशिश करें, तो ये भारत के लिए किसी भी लिहाज से घाटे का सौदा बनता तो नहीं दिखता. उन्होंने कहा कि अमेरिका,  ब्रिटेन और ऑस्ट्रेलिया का नया सुरक्षा समझौता न तो क्वाड से संबंधित है और न ही समझौते के कारण इसके कामकाज पर कोई प्रभाव पड़ेगा. जाहिर है कि दोनों समूहों के मकसद अलग-अलग हैं. क्योंकि ऑकस (ऑस्ट्रेलिया,  ब्रिटेन और अमेरिका) देशों के बीच का एक सुरक्षा गठबंधन है, जबकि क्वाड एक मुक्त,  खुले,  पारदर्शी और समावेशी हिंद-प्रशांत के दृष्टिकोण के साथ एक बहुपक्षीय समूह है।

यहां ये बताना जरुरी है कि ऑकस समझौते के तहत ऑस्ट्रेलिया को अमेरिका और ब्रिटेन से परमाणु ऊर्जा से चलने वाली पनडुब्बियां बनाने की तकनीक मिलेगी. इसकी खास वजह भी है क्योंकि चीन ने पिछले कुछ अरसे से दक्षिण चीन सागर में बेहद आक्रामक तरीके से अपनी सक्रियता बढ़ाई है, जिसे ऑस्ट्रेलिया भी अपने लिए एक बड़े खतरे के रूप में देख रहा है. यही कारण है कि वैश्विक कूटनीति के विशेषज्ञ  इस गठबंधन को दक्षिण चीन सागर में चीन की बढ़ती आक्रामता का मुकाबला करने के एक कारगर प्रयास के तौर पर दख रहे हैं. चूंकि इसका पूरा मकसद ही चीन को उसकी हदों में रखने का है, सो  चीन ने इस गठजोड़ की जमकर आलोचना की है लेकिन उससे अमेरिका की सेहत पर कोई फर्क नहीं पड़ने वाला है.

हालांकि फ्रांस ने भी इस नए गठबंधन पर नाराजगी जताई है और उसकी वजह भी है. क्योंकि इसका नतीजा ये हुआ है कि  उसने ऑस्ट्रेलिया के लिए 12 पारंपरिक पनडुब्बियां बनाने  के लिए अरबों डॉलर का जो करार किया था, वह अब उसके हाथ से निकल गया है. दरअसल, फ्रांस चाहता था कि उसे भी इस गठबंधन में शामिल किया जाए लेकिन अमेरिका इसके खिलाफ था. फ्रांस इस कदर नाराज हो गया कि उसने अमेरिका व ऑस्ट्रेलिया से अपने राजदूत वापस बुला लिए.

दरअसल, ये तीन देश भी बेवजह ही साथ नहीं आये हैं. इसके पीछे वह सौदा है, जो परमाणु ऊर्जा से चलने वाली पनडुब्बियों के बेड़े को विकसित करने के लिए ऑस्ट्रेलिया को भी बाहरी सुरक्षा के लिहाज से ताकतवर मुल्क बना देगा.  ऐसे में परमाणु प्रसार की आशंकाओं को लेकर कई सवाल उठ रहे हैं और पूछा जा रहा है कि ये आने वाले वक्त में भारत के लिए भी तो एक बड़ा खतरा बन सकता है. इसी आशंका को लेकर विदेश सचिव श्रृंगला से सवाल पूछे गए थे. अपने जवाब से उन्होंने साफ कर दिया कि ये भारत के लिए चिंता का विषय नहीं है. उन्होंने कहा कि,  ‘मैंने देखा कि ऑस्ट्रेलिया ने स्पष्ट किया है कि वे एक परमाणु-चालित पनडुब्बी पर काम कर रहे हैं. इसका मतलब है कि यह परमाणु प्रौद्योगिकी पर आधारित है,  लेकिन उस पर कोई परमाणु हथियार नहीं होगा और इसलिए इससे परमाणु प्रसार के संबंध में ऑस्ट्रेलिया की किसी भी अंतरराष्ट्रीय प्रतिबद्धता का उल्लंघन नहीं होगा।’

कुल मिलाकर देखें,  तो चीन के साथ कड़वाहट भरे संबंधों के बीच तीन मुल्कों का ये गठजोड़ भारत की सेहत के लिए किसी टॉनिक से कम नहीं है.

नोट- उपरोक्त दिए गए विचार व आंकड़े लेखक के व्यक्तिगत विचार हैं. ये जरूरी नहीं कि एबीपी न्यूज ग्रुप इससे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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