सफलता जीवन चरणों का कोई एक भाग नहीं है. वह सम्पूर्ण जीवन यात्रा का वृतांत होती है. तरक्कीशुदा व्यक्ति वही होता है जो आगे बढ़ने के क्रम को बनाए रखता है. जो लोग विकास यात्रा में अचानक आगे बढ़ते हैं और वहां स्थिरता नहीं दिखा पाते उन्हें सफल नहीं माना जाता है.


इसे ऐसे समझें कि जिंदगी की रेस में एक दो बार सफल होना ही काफी नहीं होता है. हर बार और लगातार इस अवस्था को बनाए रखना जरूरी है. शिखरस्थ पुरुष तभी तक उच्चस्थ कहलाता है जब तक कि वह वहां मौजूद है. शिखर से उतरा व्यक्ति उपलब्धि पूर्ण तो माना जाता है लेकिन उसकी सफलता स्थायी नहीं मानी जा सकती है. सम्पूर्ण जीवन की सफलता को किसी पहाड़ी की चढ़ाई की तरह नहीं देखा जा सकता है जिस पर चढ़ा और उतरा जाता है.


जीवन क्रम में उन्नति का पथ सतत उूचाईं की ओर ले जाने वाली सीढ़ी की तरह होता है. आगे बढ़ते रहने की अवस्था और गुंजाइश दोनों इसमें बनी रहती है. 
कहा भी जाता है लक्ष्य कभी छोटा नहीं बनाना चाहिए. बड़े लक्ष्य लंबे प्रयासों से प्राप्त होते हैं. सफलता को दीर्घजीवी बनाते हैं.


आगे बढ़ने के क्रम में जब एक निश्चित मुकाम हासिल हो जाता है तो उसे बनाए रखना भी आवश्यक होता है. जो जितन उस अवस्था में बना रहता है. वह उतना ही सफल माना जाता है. महत्वपूर्ण पदों के मामले में ये बात और अधिक प्रभावी हो जाती है. इसके लिए यथासंभव कोशिश की जानी चाहिए.