मुगल शासक शाहजहां और मुमताज महल की सबसे बड़ी बेटी का नाम जहांआरा था. जब मुमताज का निधन हुआ तो जहांआरा को हरम की बादशाह बेगम बना दिया गया, जो उस वक्त का सबसे बड़ा पद हुआ करता था.
जहांआरा मुगल काल की सबसे अमीर शहजादी थीं क्योंकि उनको सलाना आय के तौर पर 30 लाख रुपए दिए जाते थे, जिसकी वैल्यू आज के टाइम में डेढ़ अरब के बराबर है.
उनकी मां की मृत्यु के बाद जहांआरा 17 साल की उम्र में बादशाह बेगम बन गई थीं और मुमताज की संपत्ति का आधा हिस्सा जहांआरा को दिया गया, जबकि बाकी का आधा हिस्सा दूसरे बच्चों में बांट दिया गया.
जब जहांआरा को हरम की बादशाह बेगम बनाया गया तो उन्हें एक लाख अशरफियां और चार लाख रुपये इनाम में मिले थे और चार लाख रुपये वार्षिक की ग्रांट दी गई थी.
अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी के एसोसिएट प्रोफेसर डॉक्टर एम.वसीम राजा ने बताया कि बागों में उन्हें बाग जहां आरा, बाग नूर और बाग सफा दिए गए थे.
'डॉटर ऑफ द सन' की लेखिका इरा मुखोती बताती हैं कि जहांआरा के पास सूरत का व्यापारिक शहर था, जहां उनके जहाज चलते थे और अंग्रेजों के साथ व्यापार होता था.
उनकी जागीरों में अछल, फरजहरा, बाछोल, साफापुर, दोहारा की सरकारें और पानीपत का परगना शामिल थे. इससे उनकी आर्थिक स्थिति और भी मजबूत हो गई.
'निजाम हैदराबाद की सल्तनत' में पुरातत्व के निदेशक जी. यजदानी ने लिखा है कि नवरोज के अवसर पर जहांआरा को 20 लाख रुपये के आभूषण और जवाहरात उपहार में मिले थे.
जहांआरा बेगम सिर्फ अमीर ही नहीं, बल्कि राजनीतिक रूप से प्रभावशाली भी थीं और दरबार में उनका विशेष स्थान था. 19 मार्च 1637 को उन्होंने अपने पिता को ढाई लाख रुपये का अष्टकोणीय सिंहासन भी उपहार में दिया था.
उनकी संपत्ति और शक्ति का कोई मुकाबला नहीं था, जिससे वे मुगल काल की सबसे अमीर और शक्तिशाली शहजादी बनीं.