ट्रेन में कोई स्टीयरिंग नहीं होती है, और ट्रैक चेंज का काम ऑटोमैटिक होता है

आप सोच रहे होंगे कि फिर ट्रेन ड्राइवर का काम क्या होता है

लोको पायलट की जब ड्यूटी शुरू होती है तो सबसे पहले वो इंजन की जांच करता है

इसके बाद ट्रेन के रूट और मैनुअल की जानकारी लेता है

पायलट को कंट्रोल रूम से मिल रहे डायरेक्शन पर काम करना होता है

लोको पायलट को ट्रैक पर आने वाली समस्या का भी ध्यान रखना होता है

पटरी के बराबर में लगे साइन बोर्ड के अनुसार स्पीड को बदलना होता है

लोको पायलट यह फैसला खुद नहीं ले सकता है कि ट्रेन को किस स्टेशन पर रोकना है

लेकिन लोको पायलट के पास ट्रेन को रोकने या चलाने को लेकर काफी अधिकार होता है

कोहरे और धुंध के वक्त लोको पायलट का काम और जिम्मेदारी दोनों ही बढ़ जाती है