भारत के संविधान में समाज के हर वर्ग और तबके को सुरक्षा दी गई है, सभी के अपने मौलिक अधिकार हैं, जिनका कोई हनन नहीं कर सकता है. इसके लिए कानून बनाए गए हैं. महिलाओं की सुरक्षा और अधिकारों के लिए भी कई तरह के कानून हैं. ऐसे ही कानूनी अधिकार विधवा महिलाओं के भी होते हैं. इसमें ऐसी महिलाओं को संपत्ति के अधिकार, सम्मान से जीने के अधिकार और बाकी तमाम तरह की चीजें शामिल हैं. इनका हनन होने की सूरत में महिला कोर्ट जा सकती है. 


कानून के तहत मिले हैं अधिकार
जब किसी शादीशुदा महिला के पति की मौत हो जाती है तो उसे विधवा कहा जाता है. पति की मौत के बाद पत्नी को ही तमाम तरह की जिम्मेदारियों को देखना होता है, कई बार ये काफी ज्यादा मुश्किल हो जाता है. यही वजह है कि विधवाओं को भारतीय कानून के तहत कई तरह के अधिकार दिए गए हैं. 


संपत्ति का अधिकार
कोई भी विधवा महिला अगर कमाती नहीं है और पति की संपत्ति से उसका गुजारा नहीं हो रहा है तो ऐसे में उसके ससुर को भरण-पोषण की जिम्मेदारी लेनी होगी. इसके लिए वो दावा कर सकती है. विधवा महिला के अपने पति की संपत्ति पर पूरा अधिकार होता है. पति की मौत के बाद वारिसों में पत्नी का भी बराबरी का हिस्सा होता है. हाईकोर्ट ने एक फैसले में कहा था कि विधवा महिला अगर दूसरी शादी भी कर लेती है तो उसका पहले पति की संपत्ति पर अधिकार होगा. हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम के तहत इसका फैसला होता है. 


वसीयत लिखने का अधिकार
अगर किसी विधवा की बिना वसीयत लिखे मौत हो जाती है तो इस सूरत में उसके बच्चे संपत्ति के हकदार होते हैं. विधवा महिला को दूसरे पति से भी विरासत में संपत्ति मिल सकती है, उसकी मौत के बाद इस संपत्ति के हकदार बच्चे होंगे, फिर चाहे वो पहले पति के ही क्यों न हों. विधवा अपनी संपत्ति को किसी के भी नाम कर सकती है, ऐसा करने का उसका पूरा अधिकार होता है.


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