बहुत सारे लोग समय पर इलाज न मिलने की वजह से इमरजेंसी मेडिकल सिचुएशंस में अपनी जान गंवा बैठते हैं. इसी को देखते हुए अब ऐसी परिस्थितियों में तुरंत इलाज सुनिश्चित करने के लिए इमरजेंसी मेडिकल केयर को जीने के अधिकार के तहत शामिल किया गया है. इसके तहत किसी भी अस्पताल में इमरजेंसी हालत में पहुंचे मरीज का इलाज बिना देर किए शुरू किया जाना ज़रूरी है.
आपको बता दें इमरजेंसी मेडिकल केयर अब सिर्फ एक सुविधा नहीं बल्कि एक बुनियादी हक माना जा रहा है. किसी भी अस्पताल द्वारा गंभीर हालत में पहुंचे मरीज का इलाज न करना अब सिर्फ नैतिक नहीं बल्कि कानूनी रूप से भी गलत माना जाएगा. अगर इलाज से इनकार किया जाता है. तो ऐसी स्थिति में कंज्यूमर कोर्ट में केस किया जा सकता है. चलिए आपको बताते हैं इस बारे में जरूरी बातें.
इमरजेंसी में अस्पताल इलाज से नहीं कर सकते मना
अगर कोई मरीज गंभीर हालत में अस्पताल पहुंचता है. तो अस्पताल उसे इलाज देने से मना नहीं कर सकता. चाहे वो सरकारी हो या प्राइवेट इमरजेंसी की स्थिति में पहले जान बचाना ज़रूरी है. बाकी फॉर्मेलिटी बाद में हो सकती है. यह सिर्फ नैतिक जिम्मेदारी नहीं है. बल्कि यह अब कानून से जुड़ा ज़रूरी नियम बन चुका है.
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दरअसल इमरजेंसी मेडिकल केयर को अब जीने के अधिकार यानी अनुच्छेद 21 का हिस्सा माना गया है. इसका मतलब है कि अगर किसी को वक्त पर इलाज नहीं मिला और जान चली गई या फिर कुछ और नुकसान हुआ. तो इसे अधिकार हनन माना जाएगा. ऐसी स्थिति में मरीज या परिजन कंज्यूमर कोर्ट में केस कर सकते हैं.
कैसे कर सकते हैं कंज्यूमर कोर्ट में केस?
आप या आपका परिजन इमरजेंसी में किसी अस्पताल में गए हैं. और अस्पताल ने इलाज से इनकार कर दिया है. तो आप इसे जीने का अधिकार के तहत सेवा में कमी मानते हुए कंज्यूमर कोर्ट में शिकायत कर सकते हैं. इसके लिए सबसे पहले आपको कोई सबूत जैसे वीडियो, ऑडियो, गवाह, या फिर कोई दस्तावेज अपने पास रखना होगा. फिर आप जिला, राज्य या नेशनल कंज्यूमर फोरम में आवेदन कर सकते हैं.
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केस फाइल करने के लिए वकील की जरूरत नहीं है. आप खुद भी अपना केस लड़ सकते हैं. ऐसे में आपको कोर्ट में यह साबित करना होता है कि अस्पताल ने गंभीर स्थिति में इलाज न देकर आपकी या मरीज की जान को खतरे में डाला. आपकी शिकायत सही होती है तो कोर्ट ना आपको मुआवजा दिलवाता है. बल्कि इसके लिए अस्पताल पर जुर्माना भी लगा सकता है.
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