Property Donate Rules:  आज के दौर में बेटे और बाप में अक्सर रिश्ते बिगड़ते देखे जा रहे हैं. अलग-अलग वजहों के चलते बेटे और बाप में बनती नहीं है. अक्सर ऐसे में परिवार के मतभेद बढ़ जाते हैं. फिर अगर कोई पिता अपने बेटे से नाराज हो. तो कई बार वह बेटे को प्राॅपर्टी से बेदखल करने का सोचता है. और प्राॅपर्टी दान करने की धमकी देता है. लेकिन अब सवाल यह  क्या वह अपनी पूरी प्रॉपर्टी दान कर सकता है? 

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भारत में संपत्ति और दान के मामले में कानून तय किए गए हैं. कई लोग सोचते हैं कि नाराजगी में संपत्ति को दान करना आसान है. लेकिन इसके लिए सही प्रक्रिया और कानूनी नियमों को समझना जरूरी है. बिना जानकारी के ऐसा करना बाद में विवाद और कानूनी परेशानियों को जन्म दे सकता है. चलिए बताते हैं कोई हिंदू शख्स कैसे अपनी प्राॅपर्टी दान कर सकता है. 

प्रॉपर्टी दान करने की कानूनी प्रक्रिया

अगर कोई हिंदू पिता अपने बेटे से नाराज़ होकर प्रॉपर्टी दान करना चाहता है. तो सबसे पहले यह सुनिश्चित करना जरूरी है कि यह प्रॉपर्टी उसकी अपनी अर्जित प्रॉपर्टी हो और वह इसे स्वतंत्र रूप से दे सकता है. अचल प्रॉपर्टी के लिए लिखित गिफ्ट डीड तैयार करना जरूरी है. जिसमें डोनर, रिसीवर, प्रॉपर्टी का पूरा विवरण, अपनी मर्जी से दान और बिना किसी रिटर्न की कंडीशन साफ लिखी हो. 

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डोनर वयस्क, मानसिक रूप से स्वस्थ और प्रॉपर्टी पर पूर्ण अधिकार रखता हो. रिसीवर का दान स्वीकार करना भी जरूरी है. गिफ्ट डीड पर डोनर और कम से कम दो गवाहों के साइन होने चाहिए और इसे ज़िले के उप-पंजीयक कार्यालय में रजिस्टर्ड करना जरूरी है. स्टाम्प ड्यूटी और रजिस्ट्रेशन शुल्क राज्य के नियमों के अनुसार जमा करना होता है.

इन तरीकों से कर सकते हैं दान 

कोई भी व्यक्ति अपनी प्रॉपर्टी दो तरीकों से दान कर सकता है. पहला वसीयत और दूसरा गिफ्ट डीड. वसीयत में डोनर अपनी प्रॉपर्टी को मरने के बाद किसी धर्मार्थ संस्था या ट्रस्ट को देने का निर्देश लिखता है. इसमें साफ लिखा जाता है कि संतान को कोई हिस्सा नहीं मिलेगा. वैध होने के लिए डोनर और कम से कम दो निष्पक्ष एडल्ट गवाहों के साइन जरूरी हैं. रजिस्ट्रेशन जरूरी नहीं लेकिन सब-रजिस्ट्रार में रजिस्टर कराने से कानूनी तौर पर मजबूती मिलेगी. 

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गिफ्ट डीड में प्रॉपर्टी तुरंत और बिना किसी रिटर्न के ट्रांसफर होती है. अचल प्रॉपर्टी के लिए रजिस्टर्ड गिफ्ट डीड जरूरी है और स्टांप ड्यूटी/रजिस्ट्रेशन शुल्क लागू होता है. इसमें डोनर अपनी जिंदगी भर प्रॉपर्टी का इस्तेमाल करने की शर्त रख सकता है. जिसे सुप्रीम कोर्ट भी वैध मानता है. इसमें फर्क यह है कि वसीयत मृत्यु के बाद लागू होती है. जबकि गिफ्ट डीड तुरंत प्रभावी होती है.

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