Maintenance Allowance Rules: देश में गुजारा भत्ता को लेकर कई बार चर्चाएं होती रही हैं. किसी को लाखों में गुजारा भत्ता मिलता है. तो किसी को महज हजारों में तो किसी को बिल्कुल नाम मात्र के लिए. गुजारा भत्ता को लेकर इन दिनों फिर से मामला चर्चा में है. क्योंकि भारतीय क्रिकेटर मोहम्मद शमी की पूर्व पत्नी हसीन जहां जिन्हें हर महीने 4 लाख रुपये बतौर गुजारा भत्ता मिलते हैं. अब उन्होंने इस रकम को बढ़ाने की मांग की है.
हसीन जहां का कहना है कि मौजूदा खर्चों और महंगाई को देखते हुए यह रकम उनके लिए काफी नहीं है. उनके इस कदम के बाद यह सवाल फिर उठ गया है कि आखिर कोई पत्नी अपने पति से गुजारा भत्ता के रूप में अधिकतम कितना पैसा मांग सकती है और अदालत इस रकम को तय कैसे करती है. चलिए आपको बताते हैं इस बारे में पूरी जानकारी.
कितना मिल सकता है गुजारा भत्ता?
भारतीय कानून के मुताबिक गुजारा भत्ता की राशि तय करने के लिए कई पहलुओं पर गौर किया जाता है. इसमें पति की इनकम, पत्नी की जरूरतें उसकी लाइफस्टाइल और वैवाहिक जीवन की अवधि यानी शादी कितने सालों तक चली यह सब बातें शामिल होती है. कोर्ट आम तौर पर पति की कुल मंथली इनकम का 25 से 33 प्रतिशत हिस्सा गुजारा भत्ता के रूप में तय कर सकती है.
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हालांकि यह कोई तय नियम नहीं है. अगर पत्नी के पास खुद की आमदनी नहीं है या बच्चे उसके साथ रहते हैं. तो रकम और बढ़ सकती है. वहीं अगर पत्नी पहले से नौकरी कर रही है या उसके पास ठीक-ठाक संपत्ति है. तो इस लिहाज से गुजारा भत्ता कम भी किया जा सकता है. यानी अधिकतम गुजारा भत्ता कितना हो सकता है इसकी लिमिट तय नहीं है.
कैसे तय होता है गुजारा भत्ता का पैमाना?
गुजारा भत्ता अलग-अलग मामलों के हिसाब से तय होता है. कोर्ट सभी मामलों में परिस्थितियों के आधार पर फैसला देती है. इसमें देखा जाता है कि पति की आमदनी कितनी है, पत्नी की जरूरतें क्या हैं, और क्या उसके पास खुद का कोई साधन है या नहीं. कुछ मामलों में अदालत पति से उसकी इनकम के प्रूफ जैसे सैलरी स्लिप, बैंक स्टेटमेंट और टैक्स रिटर्न की जानकारी मांगती है.
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इसके साथ ही पत्नी के खर्चों और बच्चों की पढ़ाई जैसी जरूरतों को भी ध्यान में रखा जाता है. हसीन जहां के मामले में भी कोर्ट इन्हीं आधारों पर रकम तय करेगी. अगर यह साबित होता है कि शमी की आमदनी में बड़ा इजाफा हुआ है. तो गुजारा भत्ता बढ़ाने का दावा मजबूत हो सकता है. अगर कोर्ट हसीन जहां की बातों से सहमत नहीं होता और जरूरत नहीं लगती तो भत्ता नहीं बढ़ेगा.
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