Rules For Alimony: तलाक को लेकर भारत में कानून तय किया गया है. पति-पत्नी के बीच तलाक होने के बाद इस कानून के तहत ही आगे की प्रक्रिया की जाती है. जिसमें एलिमनी यानी गुजारा भत्ता भी शामिल है. तलाक के बाद कोर्ट डिसाइड करता है कि कोई पति अपनी पत्नी को कितना गुजर भत्ता देगा.

कोर्ट इसके लिए कई पहलुओं को जांचता परखता है. उसी के आधार पर एलिमनी के रकम तय करता है. बहुत लोगों के मन में है सवाल भी आ रहा है. क्या सिर्फ हिंदू महिलाएं ही एलिमनी के लिए हकदार होती है. क्या मुस्लिम महिलाओं को तलाक के बाद गुजारा भत्ता नहीं मिलता. चलिए आपको बताते हैं क्या हैं इसे लेकर भारत में नियम और कानून. 

मुस्लिम महिलाएं तलाक के बाद गुजारा भत्ता ले सकती हैं?

अगर आपके भी मन नहीं सवाल आ रहा है. क्या मुस्लिम महिलाएं तलाक के बाद गुजारा भत्ता ले सकती हैं. तो आपको बता दें मुस्लिम महिलाओं को भी तलाक के बाद गुजारा भत्ता लेने का अधिकार प्राप्त है. साल 2024 में सुप्रीम कोर्ट ने इसके लिए एक फैसला दिया. जिसमें मुस्लिम महिला भी तलाक के बाद गुजारा भत्ता देने का आदेश दिया गया था. कोर्ट के आदेश के अनुसार सीआरपीसी की धारा 125 के तहत मुस्लिम महिलाओं को अपने पूर्व पति से तलाक के बाद गुजारा भत्ता पाने की अधिकार हैं. सीआरपीसी की धारा 125 सभी धर्म के लिए समान रूप से लागू होती है. 

 

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पति ने गुजारा भत्ता देने से किया मना तो?

अगर कोर्ट ने सीआरपीसी की धारा 125 के तहत तलाक के बाद किसी मुस्लिम महिला के पति को गुजारा भत्ता देने के लिए आदेश दिया है. लेकिन बावजूद कोर्ट के आदेश के पति गुजर भत्ता नहीं देता है. तो फिर ऐसे में इसे अपराध माना जाएगा. जिसके लिए कोर्ट पति को जेल तक भेज सकता है. 

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मुस्लिम कानून के तहत भी मिलता है गुजापा भत्ता

आपको बता दें अगर किसी महिला की शादी  मुस्लिम कानून के मुताबिक हुई है. और उसका अपने पति के साथ तलाक हो गया है. तो उसे मुस्लिम विवाह कानून के तहत इद्दत के दौरान तक गुजारा भत्ता दिया जाता है. सामान्य तौर पर इद्दत की अवधि 3 महीने तक की होती है. हालांकि अगर कोई महिला अपना खर्चा उठाने के लिए फाइनेंशली कैपेबल नहीं है. तो गुजारा भत्ते की अविधि बढ़ाई जा सकती है. ऐसे में सीआरपीसी की धारा 125 लागू हो सकती है.

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