डायपर हमेशा उन बच्चों को पहनाया जाता है, जो यह बता नहीं पाते कि उनको टॉयलेट जाना है. जब बच्चे छोटे होते हैं तो उन्हें माता-पिता डायपर पहनाते हैं, ताकि वो अपने कपड़े खराब न कर लें. वैसे तो आमौतर पर बच्चों को 2-3 साल की उम्र तक ही डायपर पहनाया जाता है. हालांकि कुछ बच्चे टॉयलेट से जुड़ी जरूरी बातें थोड़ी देर में सीखते हैं, इसलिए माता-पिता उन्हें ज्यादा समय तक डायपर पहनाते हैं.  मगर क्या आपने कभी 11 साल तक के बच्चों को डायपर पहने हुए देखा है? बेशक ऐसे मामले कम ही देखने को मिलते हैं. क्योंकि सही उम्र में उन्हें टॉयलेट ट्रेनिंग दे दी जाती है. लेकिन आपको यह जानकर हैरानी होगी कि एक देश में बच्चे ऐसे डायपर पहनकर स्कूल जाते हैं, जैसे अंडरवियर पहनकर जा रहे हैं.


यह देश स्विट्जरलैंड है, जहां की खूबसूरती के लोग कायल हैं. स्विट्जरलैंड के लोग न सिर्फ मॉर्डन है, बल्कि इनकी आमदनी भी काफी ज्यादा है. मगर सवाल है कि इतनी भी क्या मॉडर्निटी की, डायपर पहनाकर बच्चों को स्कूल भेजा जा रहा है? इंसाइडर वेबसाइट के मुताबिक, स्विट्जरलैंड की टीचर्स लगातार यह नोटिस कर रही हैं कि अच्छी-खासी उम्र के बच्चे भी डायपर पहनकर स्कूल आ रहे हैं. 4 साल के बच्चे, जो टॉयलेट आने पर बता सकते हैं, उनके माता-पिता भी डायपर पहनाकर स्कूल भेज रहे हैं. 


11 साल के बच्चे भी पहन रहे डायपर!


एक बाल विकास विशेषज्ञ रीटा मेसमर ने बताया कि एक 11 साल का बच्चा उनके पास आया था, जो डायपर के साथ स्कूल जाता था. एक्सपर्ट ने बताया कि ऐसा इसलिए क्योंकि माता-पिता ने उसे कभी टॉयलेट ट्रेनिंग दी ही नहीं. उसे यह बताया ही नहीं कि टॉयलेट का इस्तेमाल कैसे किया जाता है. चूंकि डायपर पहनाना सबसे आसान काम है, इसलिए अधिकतर माता-पिता अपने बच्चों को इसके साथ भेज देते हैं. इससे टॉयलेट ट्रेनिंग देने का उनका समय बचता है. इसके अलावा, अगर बच्चा गलती से डायपर में पेशाब या पॉटी कर देता है तो साफ करने का झंझट भी नहीं रहता. 


टॉयलेट ट्रेनिंग देना माता-पिता की जिम्मेदारी


एक एजुकेशनल साइंटिस्ट ने कहा कि डायपर बदलना टीचर्स का काम नहीं है और ना ही टॉयलेट ट्रेनिंग देना उनकी जिम्मेदारी है. हर माता-पिता को अपने बच्चों को वक्त पर टॉयलेट ट्रेनिंग दे देनी चाहिए. उन्हें यह बताना चाहिए कि टॉयलेट का इस्तेमाल कैसे किया जाता है. 


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