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मानस मंत्र: करहिं पुनीत सुफल निज बानी, भवसागर से पार करता है रामचरित का गुणगान
मानस मंत्र: करतब बायस बेष मराला, बाहर से अच्छे भीतर से कपटी होते हैं कलियुग में पापी
मानस मंत्र: सुमिरत सारद आवति धाई, सरस्वती जी ब्रह्म लोक से दौड़ी चली आती है रामचरित के तलाब में डुबकी लगाने
मानस मंत्र: मंगल भवन अमंगल हारी, जीवन में जब हो रहा हो सब अमंगल तो राम नाम जपने से होता है मंगल
मानस मंत्र: खल परिहास होइ हित मोरा, दुष्टों की पापी वाणी भी बढ़ाती है संतों के पुण्य
मानस मंत्र: देव दनुज नर नाग खग प्रेत पितर गंधर्ब, मानस प्रारंभ तुलसीदास जी करते हैं देव दानव की वंदना
मानस मंत्र: दुख सुख पाप पुन्य दिन राती, विषम परिस्थिति में घबराना नहीं चाहिए यह सब दिन रात की तरह आते जाते रहते हैं
मानस मंत्र : जलज जोंक जिमि गुन बिलगाहीं, भले कमल की तरह देते है सुख, बुरे जोंक की तरह पीते है खून
मानस मंत्र : पर हित हानि लाभ जिन्ह केरें, दुष्ट दूसरों को उजाड़ने में होते है खुश, दूसरों का सुख देख कर होते है दुखी
मानस मंत्र: बिनु सतसंग बिबेक न होई… सत्संग का मिलता है तुरंत फल, कौआ बने कोयल और बगुला बने हंस
मानस मंत्र: साधु चरित सुभ चरित कपासू के समान, संत समाज की त्रिवेणी में डुबकी लगाने से मिलते है इसी लोक में सब फल
मानस मंत्र: सुकृति संभु तन बिमल बिभूती, शिव जी के शरीर पर लिपटी भस्म ही है गुरु रज, तुलसीदास जी ने गुरु रज की बताई अद्भुत महिमा
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