What is CNAP: टेलीकॉम रेगुलेटरी अथॉरिटी ऑफ इंडिया (TRAI) ने भारत में Calling Name Presentation यानी CNAP फीचर को धीरे-धीरे लागू करना शुरू कर दिया है. इस तकनीक के तहत अब हर इनकमिंग कॉल के साथ कॉल करने वाले का वेरिफाइड नाम स्क्रीन पर दिखाई देगा. अक्टूबर 2025 में इसके ढांचे को मंजूरी मिलने के बाद, पिछले महीने से इसका लाइव टेस्ट शुरू हुआ और अब इसे अलग-अलग नेटवर्क पर चरणबद्ध तरीके से रोलआउट किया जा रहा है. उम्मीद है कि मार्च या अप्रैल 2026 तक यह सुविधा सभी मोबाइल यूजर्स के लिए एक्टिव हो जाएगी.

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CNAP लाने की जरूरत क्यों पड़ी?

बीते कुछ सालों में फर्जी कॉल, टेली-स्कैम और बैंक या सरकारी अधिकारी बनकर ठगी करने के मामले तेजी से बढ़े हैं. हालात ऐसे हो गए हैं कि लोग अनजान नंबर से आई कॉल उठाने से भी कतराने लगे हैं. TRAI का मानना है कि अगर कॉल के साथ सामने वाले का असली और सत्यापित नाम दिखे तो यूजर्स को सही फैसला लेने में मदद मिलेगी और ठगी के मामलों में कमी आएगी.

CNAP कैसे है बाकी कॉलर ID ऐप्स से अलग?

CNAP को खास बनाने वाली सबसे बड़ी बात इसका डेटा सोर्स है. यह फीचर किसी थर्ड-पार्टी ऐप या यूजर्स द्वारा दिए गए नामों पर निर्भर नहीं करता. इसके बजाय, कॉलर का नाम सीधे टेलीकॉम कंपनियों के KYC-वेरिफाइड रिकॉर्ड से लिया जाता है. ये वही जानकारियां होती हैं जो सिम लेते समय आधार जैसे आधिकारिक दस्तावेजों के जरिए दी जाती हैं. यानी कॉल के दौरान जो नाम दिखेगा, वह उस नंबर से कानूनी तौर पर जुड़ा हुआ नाम होगा, न कि किसी ने अनुमान से डाला हुआ टैग.

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फेज में हो रहा है रोलआउट

टेलीकॉम कंपनियों ने पिछले महीने चुनिंदा नेटवर्क पर CNAP का ट्रायल शुरू किया था ताकि असली हालात में इसकी परफॉर्मेंस देखी जा सके. फिलहाल यह सुविधा पहले 4G और 5G यूजर्स तक पहुंचाई जा रही है जबकि पुराने नेटवर्क्स को बाद में जोड़ा जाएगा. इसके अलावा, TRAI ने स्मार्टफोन कंपनियों से भी कहा है कि वे छह महीने के भीतर अपने डिवाइसेज़ में CNAP सपोर्ट देना सुनिश्चित करें.

Truecaller और CNAP में क्या फर्क है

भारत में Truecaller पहले से ही काफी लोकप्रिय है लेकिन CNAP उससे अलग तरीके से काम करता है. Truecaller यूजर्स द्वारा सबमिट किए गए और क्राउडसोर्स्ड नामों पर निर्भर करता है जिनमें गलती या भ्रामक जानकारी की संभावना रहती है. वहीं CNAP नेटवर्क-लेवल फीचर है और किसी ऐप की जरूरत नहीं होती. इससे नकली पहचान बनाना मुश्किल हो जाता है हालांकि यूजर्स को कस्टमाइजेशन के विकल्प कम मिलते हैं.

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