बिहार की राजनीति के इतिहास के पन्नों को पलटेंगे तो पाएंगे कि अतीत से अब तक राजनीति में कई ब्यूरोक्रेट शामिल हुए हैं. गुप्तेश्वर पांडेय से लेकर आरसीपी सिंह और यशवंत सिन्हा ऐसे कई नाम है जो अब राजनीति से जुड़े हैं लेकिन उनके करियर की शुरुआत अफसरशाही से हुई. 


आरसीपी सिंह ने आईएएस की नौकरी छोड़ थामा था जेडीयू का हाथ


आरसीपी के नाम से मशहूर राम चंद्र प्रसाद सिंह आईएएस रह चुके हैं. आरसीपी मूल रूप से बिहार के रहने वाले हैं. आरसीपी सिंह उत्तर प्रदेश के कई जिलों में उच्च पदों पर रहे. आरसीपी सिंह नीतीश कुमार की जाति और उन्हीं के जिले के भी हैं. आरसीपी सिंह को बिहार का प्रमुख सचिव बना कर लाया गया था. बाद में नीतीश ने उन्हें जेडीयू का राष्ट्रीय अध्यक्ष बनाया और 2010 में उन्हें राज्यसभा भेज दिया. तीसरी बार जेडीयू ने उन्हें राज्यसभा जाने का मौका नहीं दिया और जेडीयू के अध्यक्ष पद से भी हटा दिया. आरसीपी सिंह को पार्टी से भी निकाल दिया गया था. 
 
यशवंत सिन्हा ने भी चुनी थी राजनीति की राह


अफसरशाही से बिहार की राजनीति में आने वालों में सबसे शानदार उदाहरण भाजपा के यशवंत सिन्हा हैं. यशवंत सिन्हा पहले केंद्रीय वित्त और विदेश मंत्री थे. सिन्हा खुद कहते हैं कि राजनीतिक यात्रा आकस्मिक थी.  ईटी मैगजीन की रिपोर्ट के मुताबिक यशवंत का राजनीति सफर साल 1967 में शुरू हुआ. लेकिन राजनीति में यशवंत को एक मुकाम हासिल करने में में 17 साल लग गए. 1967 में, सिन्हा अविभाजित बिहार के संथाल परगना जिले में डिप्टी कमिश्नर थे. 


सूखे के दौरान, सिन्हा को बिहार के तत्कालीन मुख्यमंत्री महामाया प्रसाद सिन्हा ने सार्वजनिक रूप से अपमानित किया था. तब यशवंत अपना आपा खो बैठे और मुख्यमंत्री पर पलटवार करते हुए कहा कि , "आप कभी आईएएस अधिकारी नहीं बन सकते, लेकिन मैं मंत्री बन सकता हूं. इसके बाद यशवंत सिन्हा को ट्रान्सफर कर दिया गया था. बाद में आरसीपी सिंह की गुस्से में कही बात सच भी हुई. 


सिन्हा ने समाज सुधारक जयप्रकाश नारायण से मुलाकात की और जेपी आंदोलन में शामिल होने की इच्छा जताई. हालांकि, ऐसा नहीं हुआ.  सिन्हा कहते हैं, "जब मैंने आखिरकार 1984 में आईएएस छोड़ दिया, तो मुझे पता था कि मैं जेपी को दिए गए वादे को पूरा कर रहा था. 1990 में चंद्रशेखर सरकार में वित्त मंत्री बने. उन्होंने कहा, 'एक सिविल सेवक के रूप में, मैंने अलग-अलग आर्थिक मंत्रालयों में काम किया ,और यही वजह है कि चंद्रशेखर ने उन मुश्किल दिनों में मुझ पर अपना वित्त मंत्री बनाने का भरोसा जताया. यशवंत सिंहा कहीं ना कहीं जेपी आंदोलन से प्रभावित थे. 


मीरा कुमार ने विदेश सेवा की नौकरी छोड़ी थी


बिहार के आरा में जन्मी मीरा कुमार ने पूरे देश में चर्चाएं बटोरी थी. मीरा कुमार 2009 से 2014 तक लोकसभा की स्पीकर रहीं. मीरा कुमार देश की पहली महिला स्पीकर थी. 2009 से 2014 तक लोकसभा की स्पीकर रहीं. मीरा कुमार 1973 में भारतीय विदेश सेवा की नौकरी में आयीं. राजनीति में आने पर उन्होंने बिजनौर से उपचुनाव लड़ा.  राम विलास पासवान और मायावती को हराकर पहली बार वह 1985 में संसदीय राजनीति में आईं. कांग्रेस के उम्मीदवार के रूप में मीरा कुमार ने 2017 में राष्ट्रपति पद के लिए चुनाव लड़ा, लेकिन रामनाथ कोविंद से हार गईं. 


राज कुमार सिंह ने गृह सचिव की नौकरी छोड़ी


राज कुमार सिंह आरा के सांसद हैं. राज कुमार सिंह भी आईएएस की नौकरी छोड़ राजनीति में आये हैं. सिंह 1975 बैच के बिहार कैडर के आईएएस हैं. राज कुमार सिंह समस्तीपुर के वे डीएम भी रह चुके हैं. 


ताजा मामला पुलिस सेवा के चर्चित अधिकारी गुप्तेश्वर पांडेय का रहा. जिन्हें बिहार का 'रॉबिनहुड पांडेय' भी कहा जाता है. बिहार विधानसभा चुनाव 2020 के ठीक पहले उन्होंने दोबारा वीआरएस चुनाव लड़ने का फैसला लिया था. 


अफसरशाही से बिहार की राजनीति में शामिल होने वाले कुछ और नाम


 मीरा कुमार, यशवंत सिन्हा, गुप्तेश्वर पांडेय, आरसीपी सिंह, आरके सिंह के अलावा मुनिलाल, गोरेलाल यादव, डीपी ओझा, सुधीर कुमार, सर्वेश कुमार (जो अभी बेगूसराय से एमएलसी हैं), सुनील कुमार अरुण कुमार, मुनिलाल , ललित विजय सिंह, डीजी के पद से रिटायर सुनील कुमार ऐसे सरकारी मुलाजिम हैं जिन्होंने राजनीति की राह पकड़ ली. 


नौकरशाही बैकग्राउंड राजनीति में पकड़ बनाने में मदद कर सकती है. लेकिन लंबे समय राजनीति में सफर को लेकर अभी भी सवाल है.  बिहार की राजनीति में लंबे समय तक टिके रहने वाला कोई ऐसा नेता नहीं है जो सिविल सेवक रहा है. पूरे देश की राजनीति में भी ऐसा ही है, चाहे वह चिदंबरम हों, एंटनी हों, मायावती हों या जयललिता हों. इनमें से कोई भी नेता सिविल सेवक नहीं रहा है.  मणिशंकर अय्यर ने ईटी मैगजीन से बातचीत में कहते हैं राजनीति एक व्यापक जाल है जो कई मछलियों को पकड़ता है. उनमें से कुछ पूर्व सिविल सेवक हैं. 


पार्टी के आकाओं के इशारे की वजह से ज्यादातर नौकरशाहों के लिए राजनीति एक चुंबक बन जाती है. ऐसे में सवाल उठता है कि क्या नौकरशाह अपने वैचारिक विश्वासों के आधार पर पार्टियों की तरफ आकर्षित हुए?


दरअसल राजनीति में आए नौकरशाहों के राजनीतिक करियर प्रोफाइल से साफ पता चलता है कि सिर्फ वैचारिक प्राथमिकताएं किसी पार्टी में शामिल होने या पार्टी छोड़ने के उनके फैसले को निर्धारित नहीं करती हैं. ये नौकरी के दौरान ही नेताओं के साथ व्यक्तिगत संबंध स्थापित कर लेते हैं.  


बिहार के राजनेता भी नौकरशाहों की वफादारी जीतने के लिए अपनी शक्ति का इस्तेमाल करते हैं. राजनेता और नौकरशाह एक-दूसरे को फायदा पहुंचाने के आधार पर काम करते हैं. 


राजनीतिक टिप्पणीकार और एएमयू के राजनीति विज्ञान विभाग में प्रोफेसर मिर्जा असमर बेग मैगजीन आउटलुक से बातचीत में कहते हैं कि नौकरशाहों का राजनीति में शामिल होने के पीछे कई मकसद हो सकते हैं. लेकिन उनमें से जरूरी जो लगता है वो ये है कि कई सालों तक राजनेताओं के अधीन काम करने के बाद, सिविल सेवक सिर्फ आदेश का पालन करने के बजाय सत्ता को चलाने की भी इच्छा रखते हैं.  


बेग कहते हैं, 'एक बार जब आप किसी मुकाम पर पहुंच जाते हैं तो तो आप अगले स्तर तक जाना चाहते हैं.' दूसरी तरफ राजनीतिक दल भी नौकरशाहों की साफ-सुथरी छवि की वजह से उन्हें पसंद करते हैं. जिससे वो उनसे अपनी विचारधारा के हिसाब से काम करवा सकते हैं. 


जनता के बीच लोकप्रियता भी है वजह 


मतदाता केवल उन नामों को पसंद करते हैं जिनका काम काम जनता के बीच लोकप्रिय रहा है. बिहार में इसका सबसे बेहतर उदाहरण गुप्तेश्वर पांडे है. गुप्तेश्वर पांडे को बिहार के रॉबिनहुड के नाम से भी जाना जाता है.  सुशांत सिंह मामला हो या गाना रॉबिन हुड बिहार के ' हो गुप्तेश्वर पांडेय आम जनता के बीच खूब जाने जाते हैं. सुशांत सिंह की मौत के मामले में भी पांडेय मुंबई पुलिस पर सहयोग न करने का आरोप लगे थे. 


गुप्तेश्वर पांडेय अपने काम के लिए काफी मशहूर हैं. बेगुसराय में उनकी टीम ने 42 मुठभेड़  किया था, और 400 से ज्यादा अपराधियों को जेल भेजा था. उस दौर में बेगुसराय में माफिया अशोक सम्राट का दबदबा था, लेकिन गुप्तेश्वर पांडे ने उन सबको कंट्रोल कर दिया था.


इसी बीच चर्चा है एक और आईपीएस अधिकारी की भी हो रही है. माना जा रहा है कि बहुत जल्द ही वो बीजेपी में शामिल हो सकते हैं. हालांकि अभी तक इसकी पुष्टि नहीं है लेकिन बिहार में उनका एक बयान काफी चर्चा में हैं और लोगों में उनके राजनीति में आने की भी बातें खूब हो रही हैं.