Igaas Diwali 2022: उत्तराखंड के टिहरी जनपद में इगास दिवाली बड़ी धूमधाम के साथ मनाई जा रही है. जगह जगह लोग भैलो खेलकर, परिवार के लोगों, सगे संबंधियों के साथ स्थानीय नृत्य कर मना रहे है. इगास दिवाली पर घरों में पूड़ी, स्वाली, पकौड़ी आदि पकवान बनाकर अपने सगे संबंधियों व परिवार में बांटकर हंसी खुसी इगास दिवाली मनाई जा रही है.


दरअसल ‘बेलो’ पेड़ की छाल से तैयार की गई रस्सी को कहते हैं. इसमें निश्चित दूरी पर चीड़ की लकडिय़ां (छिल्ले) फंसाई जाती हैं. इसके बाद सभी लोग गांव के किसी ऊंचे एवं सुरक्षित स्थान पर एकत्र होते हैं. जहां पांच से सात की संख्या में तैयार बेलो में फंसी लकड़ियों के दोनों छोरों पर आग लगा दी जाती है. इसके उपरांत ग्रामीण बेलो के दोनों छोर पकड़कर सावधानीपूर्वक उसे अपने सिर के ऊपर से घुमाते हुए नृत्य करते हैं, जिसे 'भैलो' खेलना कहा जाता है. लोक मान्यता है कि ऐसा करने से मां लक्ष्मी सभी के आरिष्टों का निवारण करती है.


जानिए क्या है मान्यता?
पौराणिक मान्यता है कि भगवान राम के बनवास के बाद अयोध्या पहुंचने पर लोगों ने दिये जलाकर उनका स्वागत किया और उसे दीपावली के त्योहार के रूप में मनाया, लेकिन कहा जाता है कि गढ़वाल क्षेत्र में भगवान राम के पहुंचने की खबर दीपवाली के ग्यारह दिन बाद मिली और इसीलिए ग्रामीणों ने अपनी खुशी जाहिर करते हुए ग्यारह दिन बाद दीपावली का त्योहार मनाया. 

वहीं कुछ लोगों का मानना है कि गढ़वाल के राजा महिपत शाह ने वीर माधवसिंह भंडारी को गढ़वाल राज्य की सीमा का विस्तार करने भेजा था और माधवसिंह लड़ते लड़ते बहुत दूर निकल गए और वीरगति को प्राप्त हुए और ये खबर दीपावली के 11 दिन बाद एकादशी को पता चली और उनकी याद में ईगास मनाया जाता है और भैलो खेला जाता है. 


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