टूंडला: उत्तर प्रदेश में हुए उपचुनाव में टूंडला विधानसभा सीट में जीत का सेहरा बीजेपी प्रत्‍याशी प्रेम पाल धनगर के सिर पर बंध गया है. धनगर ने तकरीबन 17 हजार से ज्‍यादा वोटों से जीत हासिल की है. दूसरे नंबर पर सपा प्रत्‍याशी महाराज सिंह धनगर रहे. पहले राउंड में जरूर वो आगे रहे लेकिन बाद में 39 राउंड में लगातार भाजपा उम्‍मीदवार मात देते रहे. मतदान के बाद संघर्ष त्रिकोणीय लग रहा था. लेकिन, बहुजन समाज पार्टी के प्रत्‍याशी संजीव चक शुरुआत से ही तीसरे पायदान पर रहे थे. 3 नवंबर को हुए मतदान में 54 फीसदी वोट पड़े थे.


बीजेपी ने बनाई रणनीति
बीजेपी ने टूंडला उपचुनाव में कहीं भी कोताही नहीं बरती. मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की जनसभा से लेकर दोनों उपमुख्यमंत्री के कार्यक्रम आयोजित किए गए. यहां तक की बृज क्षेत्र की पूरी टीम लगा दी गई. यहां तक कि सोशल इंजीनियरिंग का भी पूरा ध्यान रखा गया. जातिगत समीकरण साधते हुए टूंडला में जातीय क्षत्रपों की बीजेपी के समर्थन में सभाएं कराई गईं. जाट मतदाताओं को प्रभावित करने के लिए संजीव बालियान और जैन समाज के लोगों को अपनी तरफ खींचने के लिए नवीन जैन ने संपर्क किया. वहीं, बीएसपी के वोट में सेंध लगाते हुए दलित बस्तियों के लिए अलग रणनीति बनाई गई. धनगर मतदाताओं को रिझाने के लिए एसपी सिंह बघेल को लगा दिया गया. नतीजा ये हुआ कि बीजेपी सीट निकालने में कामयाब रही.


खूब चली साइकिल, नहीं मिली मंजिल
बीते विधानसभा चुनाव में गठबंधन के बावजूद करारी शिकस्त झेलनी वाली सपा को उपचुनाव में जीत तो नहीं मिली, लेकिन ऊर्जा का संचार होता दिखा. बिना जनसभा और स्टार प्रचारकों के नगर से देहात तक साइकिल आखिरी तक दौड़ती रही, मगर मंजिल तक पहुंच नहीं पाई. हालांकि, सपा शुरू से ही बसपा पर हावी रही. टूंडला विधानसभा सीट पर सपा ने आखिरी बार 2002 में चुनाव जीता था. इसके बाद लगातार पिछड़ती गई. 2017 के विधानसभा चुनाव में सपा ने कांग्रेस के साथ मिलकर चुनाव लड़ा. भाजपा से टिकट न मिलने पर बागी हुए पूर्व विधायक शिव सिंह चक को साइकिल सवार बनाकर उतारा गया. सपा सुप्रीमो अखिलेश यादव ने जनसभा की और पूरी ताकत झोंक दी, इसके बाद भी करारी हार झेलना पड़ी. तीसरे नंबर पर रही सपा को महज 22 फीसद वोट मिले थे. उपचुनाव में इस बार आगरा के महाराज सिंह धनगर को मैदान में उतारा गया. चुनाव शुरू होने के बाद से ही धनगर आरोपों में घिरते गए. इसके बाद न तो सपा की कोई सभा हुई और न बड़े नेताओं ने प्रचार किया. मतगणना में बढ़त के साथ ओपनिंग से सपाइयों में उम्मीद जगी और बीस राउंड तक उम्मीद कायम भी रही. इसके बाद समर्थकों की उम्मीदें टूटने लगीं. 2017 के चुनाव में जहां सपा को 22.23 फीसद वोट मिले थे, वहीं अबकी बार 30.30 फीसद वोट मिले. इसके साथ ही हार का अंतर 26.15 फीसद से घटकर 9.50 फीसद रह गया.


नीला खेमा रहा सबसे फिसड्डी
टूंडला उपचुनाव के परिणाम ने नीली खेमे को सबसे बड़ी चिंता में डाल दिया. अबकी बार न तो परंपरागत वोट बैंक का दम दिखा और न ब्राह्मण कार्ड और सोशल इंजीनियरिंग काम आई. पिछले तीन चुनावों के बाद अबकी बार हाथी फिसड्डी साबित हुआ. हाथी को पछाड़कर साइकिल तेजी से आगे निकल गई और हाथी वाले निराशा में डूब गए. फीरोजाबाद जिले की आरक्षित सीट टूंडला पर ही अब तक बसपा अपनी ताकत दिखा पाई है. 2002 में तीसरे नंबर पर रही बसपा ने 2007 में पहली बार 37 फीसद से ज्यादा वोट हासिल कर चुनाव जीता और राकेश बाबू पहली बार बसपा के विधायक बने थे. अगली बार फिर से बसपा ने टूंडला में परचम लहराया. लगातार दो बार चुनाव जीतने वाली बसपा के भविष्य के मजबूत समीकरण नजर आते थे. 2017 में जब बीजेपी की लहर चली तब भी बसपा यहां दूसरे नंबर पर रही. राकेश बाबू हैट्रिक बनाने में नाकाम रहे और पार्टी ने भी उनसे दूरी बनाना शुरू कर दिया. उपचुनाव में उन्हें टिकट नहीं दिया गया. उपचुनाव में नए चेहरे के रूप में आगरा के रहने वाले संजीव चक को उतारा गया, लेकिन वो कहीं असर नहीं दिखा पाए.


मैदान में रहे ये प्रत्याशी


- प्रेमपाल सिंह धनगर-बीजेपी- कमल का फूल
- महाराज सिंह धनगर-समाजवादी पार्टी- साइकिल
- संजीव कुमार चक--बीएससपी- हाथी
- अशोक कुमार-जन अधिकार पार्टी- डोली
-धर्मवीर - मौलिक अधिकार पार्टी- सिलाई मशीन
- भगवान सिंह- भारतीय किसान परिवर्तन पार्टी- ट्रैक्टर
- भूपेंद्र कुमार- राष्ट्रीय शोषित समाज पार्टी- गिलास
- सतीश कुमार-परिवर्तन समाज पार्टी-ऑटो रिक्शा
- मिथलेश मझवार-निर्दलीय- एसी
- सचिन कुमार माइकल डैन-निर्दलीय- कम्प्यूटर



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