उत्तर प्रदेश की राजनीति में जाति की भूमिका सबसे महत्वपूर्ण होती है. राजनीतिक दल इसी के आसपास अपनी रणनीति बनाते हैं. इसलिए जातियां पार्टियों को काफी प्रिय हैं. मंडल कमीशन लागू होने के बाद से पिछड़ी जातियां लामबंद हुई हैं. उन्होंने अपने राजनीतिक दल तक बनाए. लालू प्रसाद यादव के राजद और मुलायम सिंह यादव की समाजवादी पार्टी ने इसे गति दी. उत्तर प्रदेश की राजनीति में पिछड़ी जातियों के प्रतिनिधित्व का दावा करने वाली कई पार्टियां बन चुकी है. चुनाव में बीजेपी, सपा और कांग्रेस जैसे दल इन छोटे दलों को साधने में जुटे रहते हैं. यही हाल अगले साल होने वाले विधानसभा चुनाव के लिए भी देखने को मिल रहा है. प्रदेश में सरकार चला रही बीजेपी ने निषाद पार्टी ने समझौता किया है. यह पार्टी निषादों का प्रतिनिधित्व करने का दावा करती है. बीजेपी के वरिष्ठ नेता अमित शाह शुक्रवार को लखनऊ में एक रैली को संबोधित करने वाले हैं. इस रैली को बीजेपी और निषाद पार्टी ने मिलकर आयोजित किया है. निषाद पार्टी ने इसे 'सरकार बनाओ, अधिकार पाओ' का नाम दिया है.  


उत्तर प्रदेश में कितने महत्वपूर्ण हैं निषाद?


अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) की एक प्रमुख जाति है, निषाद. इस जाति के लोगों को परंपरागत काम मछली मारना है या इनकी रोजी-रोटी नदियों-तालाबों पर निर्भर रहती है. इसमें केवट, बिंद, मल्लाह, कश्यप, नोनिया, मांझी, गोंड जैसी जातियां हैं. उत्तर प्रदेश की करीब 5 दर्जन विधानसभा सीटों पर इनकी अच्छी-खासी आबादी है. इसलिए निषाद समुदाय उत्तर प्रदेश की राजनीतिक में काफी महत्वपूर्ण है.






समाजवादी रूझान वाले कैप्टन जयनारायण निषाद, निषादों के सबसे बड़े नेता थे. बिहार से आने वाले कैप्टन निषाद मुजफ्फरपुर से 5 बार सांसद रहे. वो किसी भी दल में रहें, वहां से उनकी जीत पक्की रहती थी. अभी उनके बेटे अजय निषाद उसी सीट से सांसद हैं. कैप्टन निषाद ने बिना किसी भेदभाव के पार्टियां बदलीं. लेकिन कभी अपनी पार्टी नहीं बनाई. 


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गोरखपुर में रहने वाले संजय निषाद ने एक कदम आगे बढ़ते हुए 2016 में अपनी पार्टी ही बना ली. उन्होंने अपनी पार्टी का नाम रखा- निर्बल इंडियन शोषित हमारा आम दल या 'निषाद पार्टी'. वहीं बिहार में नीतीश कुमार की सरकार में शामिल विकासशील इंसान पार्टी (वीआईपी) भी निषादों की पार्टी है. इसका गठन मुकेश सहनी ने किया था. 


पूर्वांचल के जिलों में है अच्छी-खासी आबादी


उत्तर प्रदेश के गोरखपुर, गाजीपुर, बलिया, संतकबीर नगर, मऊ, मिर्जापुर, वाराणसी, भदोही, इलाहाबाद, फतेहपुर और पश्चिम के कुछ जिलों में निषादों की अच्छी खासी आबादी है. कई सीटों पर ये जीत-हार तय करते हैं. इसलिए सभी दलों की नजर निषाद वोटों पर रहती है. इनकी रहनुमाई का दावा निषाद पार्टी करती है. निषाद वोट बैंक को ध्यान में रखते हुए हर पार्टी ने इस समाज के नेताओं को अपने यहां जगह दी है. जैसे बीजेपी ने जयप्रकाश निषाद को राज्य सभा भेजा है. वहीं सपा ने विश्वभंर प्रसाद निषाद को राज्य सभा भेजा है. राजपाल कश्यप सपा के पिछड़ा वर्ग मोर्चे के प्रमुख हैं. वहीं निषादों को अपनी ओर करने के लिए कांग्रेस ने इस साल के शुरू में नदी अधिकार यात्रा निकाली थी. 


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निषाद पार्टी ने 2017 के चुनाव में किसी से गठबंधन नहीं किया था. वह 72 सीटों पर चुनाव लड़ी थीं. इनमें से 70 सीटों पर उसकी जमानत जब्त हो गई थी. लेकिन उसे 5 लाख 40 हजार 539 वोट जरूर मिले थे. निषाद पार्टी को भदोही की ज्ञानपुर सीट पर जीत मिली थी. वहां से विजय मिश्र जीते थे. इस जीत में पार्टी का योगदान कम विजय मिश्र की छवि का योगदान ज्यादा था. 


समाजवादी पार्टी से भी रही है यारी


निषाद पार्टी के इस प्रदर्शन को देखकर समाजवादी पार्टी ने उसकी ओर दोस्ती का हाथ बढा दिया. दोनों दलों में दोस्ती हो गई. सपा ने संजय निषाद के बेटे प्रवीण निषाद को गोरखपुर लोकसभा सीट पर हुए उपचुनाव में उम्मीदवार बना दिया. यह सीट योगी आदित्यनाथ के इस्तीफे से खाली हुई थी. परिणाम आया तो प्रवीण को विजेता घोषित किया गया. इसके बाद तो निषाद पार्टी की बल्ले-बल्ले हो गई. साल 2019 के लोकसभा चुनाव से पहले सपा को गच्चा देकर बीजेपी के साथ हो लिए. बीजेपी ने उनके सांसद बेटे को संतकबीर नगर सीट से टिकट दिया. वो जीते भी. बीजेपी ने समझौते के तहत संजय निषाद को विधान परिषद का सदस्य बनवा दिया है. 


उत्तर प्रदेश में निषादों पर बिहार की विकासशील इंसान पार्टी की भी नजर है. वीआईपी के प्रमुख मुकेश सहनी यूपी का दौरा करते रहते हैं. लेकिन वो बीजेपी सरकार को पसंद नहीं आते हैं. मुकेश सहनी 25 जुलाई को वो वाराणसी आकर फूलन देवी की प्रतिमा का अनावरण करने वाले थे. लेकिन योगी सरकार ने उन्हें वाराणसी हवाई अड्डे से बाहर ही नहीं आने दिया. उन्हें बैरंग बिहार भेज दिया गया. इसके बाद किसी तरह वो 25 अक्तूबर को बलिया पहुंचे. वहां उन्होंने 'निषाद आरक्षण अधिकार जन चेतना रैली' में घोषणा की कि वीआईपी यूपी की 165 सीटों पर अकेले चुनाव लड़ेगी. अब यह तो आने वाला समय ही बताएगा कि उत्तर प्रदेश के निषाद, केवट, मल्लाह किसके साथ हैं.