उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव का प्रचार-प्रसार इन दिनों जोरों पर चल रहा है. पहले चरण के मतदान में केवल 6 दिन का समय शेष रह गया है. ऐसे समय में समाजवादी पार्टी और अपना दल (कमेरावादी) के गठबंधन में खटपट की खबरें आ रही हैं. ऐसी खबरें हैं कि अपना दल सीट बंटवारे को लेकर खुश नहीं है. उसने वाराणसी में प्रेस कांफ्रेंस कर अपनी नाराजगी भी सार्वजनिक कर दी है. अगर इस मनमुटाव का जल्द ही दूर नहीं किया गया तो गठबंधन सहयोगियों के जरिए सत्ता में वापसी की उम्मीद लगाए बैठी समाजवादी पार्टी को नुकसान उठाना पड़ सकता है. 


समाजवादी पार्टी ने अपना दल (के) को कितनी सीटें दी हैं


समाजवादी पार्टी ने अपना दल (के) को बंटवारे में 18 विधानसभा सीटें दी थीं. इसके बाद अपना दल (के) ने 29 जनवरी को अपने 7 सीटों की घोषणा भी कर दी थी. दोनों दलों में मतभेद की खबर तब आई जब बुधवार को समाजवादी पार्टी ने इलाहाबाद पश्चिम सीट से अमरनाथ मौर्य को अपना उम्मीदवार घोषित कर दिया. जबकि यह सीट अपना दल (के) के लिस्ट में थी. उसी दिन सपा ने पल्लवी पटेल को उपमुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य के खिलाफ सिराथू से उम्मीदवार बनाने की घोषणा कर दी. सपा ने यह भी नहीं बताया कि पल्लवी उसके सिंबल पर चुनाव लड़ेंगी या अपने दल के.पल्लवी अपना दल (के) की प्रमुख कृष्णा पटेल की बेटी हैं. सपा की इस घोषणा से उसकी कौशांबी यूनिट में भी असंतोष है. कहा यह भई जा रहा है कि पल्लवी सिराथू से चुनाव लड़ने की इच्छुक नहीं हैं. 


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अपना दल (के) ने गुरुवार को सपा की ओर से दी गई सीटों को लौटाने की घोषणा कर दी. इनमें वाराणसी की पिंडारा और रोहनिया, प्रतापगढ़ सदर, जौनपुर की मडियाहूं, मिर्जापुर की मरिहान, सोनभद्र की घोरावल, प्रयागराज की इलाहाबाद पश्चिम सीट शामिल हैं. पार्टी ने सिराथू की सीट भी सपा को वापस करने की घोषणा की है. 


अपना दल (के) ने सपा को सीटें लौटाईं


अपना दल (के) महासचिव निरंजन ने वारणसी में पत्रकारों से कहा कि वो गठबंधन में कोई विवाद या कंफ्यूजन नहीं चाहते हैं, इसलिए पार्टी ने सभी वो सीटें सपा को लौटा दीं हैं, जो उसे मिली थीं. सपा ये सीटें उनको दे दे जिन्हें इसकी जरूरत हो, इसके बाद अगर कोई सीट बचेगी तो वो हमें दे दें.


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सपा और उसके गठबंधन सहयोगियों में इस तरह की खींचतान पहली बार नहीं हो रही है. इससे पहले 2017 के चुनाव में भी ऐसा ही हुआ था. उस समय सपा ने कांग्रेस से गठबंधन किया था. लेकिन करीब 20 सीटों पर दोनों दलों के उम्मीदवार चुनाव मैदान में थे. इसका परिणाम क्या हुआ था, वह इतिहास में दर्ज है. सपा ने इस बार ऐसी गड़बड़ियों को दूर नहीं किया तो उसे घाटा उठाना पड़ सकता है.


अपना दल (के) का आधार वोट बैंक क्या है


अपना दल (के) का आधार वोट बैंक कुर्मियों में माना जाता है. इस जाति का आबादी पूरे उत्तर प्रदेश में है. इस दल का पूर्वी और मध्य उत्तर प्रदेश के मुसलमानों में भी प्रभाव है, खासकर वाराणसी, प्रयागराज और मिर्जापुर में आने वाली सीटों पर. इन्हीं इलाकों में अपना दल (के) की प्रतिद्वंदी अपना दल (एस) की भी उपस्थिति है. अपना दल (एस) बीजेपी की गठबंधन सहयोगी है. 


सपा इस बार पिछड़ों को एक साथ करने की कोशिश कर रही है. वहीं मुसलमानों को उसका आधार वोट बैंक माना जाता है. ऐसे में अगर सपा ने अपना दल (के) के साथ मतभेदों को दूर नहीं किया तो उसे कई जगह कुर्मी वोटों का होगा. कुर्मियों को उत्तर प्रदेश में यादवों के बाद पिछड़ों का सबसे बड़ा वोट बैंक माना जाता है.