उत्तर प्रदेश के गोरखपुर में रहने वाले पंडित हरिशंकर तिवारी एक समय अपराध की दुनिया का एक बहुत बड़ा नाम था. कहा जाता है कि पूर्वांचल में गैंगवार की शुरुआत उन्हीं की वजह से हुई. उस समय पूर्वांचल में पंडित हरिशंकर तिवारी का सिक्का चलता था. लेकिन उम्र बढ़ने के साथ-साथ उनकी धमक भी कम पड़ गई. दूसरे माफियाओं की तरह हरिशंकर तिवारी ने भी अपराध की दुनिया के बाद राजनीति में कदम रखा. उसमें भी वो सफल रहे. गोरखपुर की चिल्लूपार विधानसभा क्षेत्र से वो 6 बार विधायक चुने गए. एक समय हरिशंकर तिवारी और चिल्लूपार एक-दूसरे के पर्याय बन गए थे. वो 1997 से 2007 के बीच उत्तर प्रदेश में बनी हर सरकार में कैबिनेट मंत्री रहे. हर दल के नेताओं से उनके अच्छे संबंध हैं. 


ठाकुर-ब्राह्मणों की अदावत


उत्तर प्रदेश में ब्राह्मणों-ठाकुरों की दुश्मनी परंपरागत है. प्रशासन ने 1985 के चुनाव से पहले हरिशंकर तिवारी को राष्ट्रीय सुरक्षा कानून (एनएसए) के तहत जेल में डाल दिया था. लेकिन वो गोरखपुर की चिल्लूपार सीट पर जेल में रहते हुए चुनाव लड़े. वो जीते. इस जीत ने हरिशंकर तिवारी के लिए राजनीति के दरवाजे खोल दिए. उनके समर्थकों का कहना है कि रासुका लगाने के पीछे उसे समय कांग्रेस के दिग्गज नेता वीर बहादुर सिंह का हाथ था. बाद में तिवारी भी कांग्रेस में शामिल हो गए. वो 3 बार निर्दल, 2 बार कांग्रेस और 1 बार तिवारी कांग्रेस के टिकट पर विधायक चुने गए. लेकिन 2007 और 2012 में हरिशंकर तिवारी ने चुनाव तो लड़ा. लेकिन जनता ने उनका साथ नहीं दिया. 




बीजेपी के कल्याण सिंह ने 1998 में जब बसपा को तोड़कर सरकार बनाई तो उन्हें हरिशंकर तिवारी का भी समर्थन मिला. कल्याण सरकार में वो साइंस और टेक्नोलॉजी मंत्री थे. वहीं 2000 में जब रामप्रकाश गुप्त मुख्यमंत्री बने तो उन्होंने हरिशंकर तिवारी को स्टांप रजिस्ट्रेशन मंत्री बना दिया. इसी तरह 2001 में जब राजनाथ सिंह ने बीजेपी सरकार की कमान संभाली तो, उन्होंने भी हरिशंकर तिवारी को मंत्री बनाया था. हरिशकंर तिवारी 2002 में बनी मायावती की सरकार में भी शामिल रहे. मायावती के इस्तीफे के बाद अगस्त 2003 में बनी मुलायम सिंह यादव की सरकार में भी हरिशंकर तिवारी मंत्री थे.


राजनीति में बेटों को बढ़ाया आगे


लगातार दो चुनावों में मिली हार के बाद हरिशंकर तिवारी ने खुद ही राजनीति से तौबा कर ली. उन्होंने अपने बेटों भीष्म शंकर तिवारी और विनय शंकर तिवारी को राजनीति के मैदान में उतार दिया. विनय शंकर तिवारी अभी चिल्लूपार से बसपा के विधायक हैं. भीष्म शंकर तिवारी गोरखपुर के पड़ोसी संत कबीर नगर लोकसभा सीट से बसपा के टिकट पर 2008 (उपचुनाव) और 2009 में दो बार सांसद चुने गए. विनय शंकर तिवारी ने एक बार योगी आदित्यनाथ के खिलाफ गोरखपुर से चुनाव लड़ा था. लेकिन उन्हें 2 लाख 22 हजार से अधिक वोटों के अंतर से हार का सामना करना पड़ा था. हरिशंकर तिवारी के भांजे गणेश शंकर पांडेय भी राजनीति में हैं. वो स्थानीय निकाय कोटे से विधान परिषद के सदस्य चुने जाते थे. वो जनवरी 2010 से जनवरी 2016 तक विधान परिषद के अध्यक्ष भी थे.   


हरिशंकर तिवारी पर हत्या का पहला मामला फक्कड़ हत्याकांड में 1975 में दर्ज हुआ था. डेढ़ दर्जन से अधिक आपराधिक मामले उनपर दर्ज थे. लेकिन अधिकतर मामलों से वो बरी हो चुके हैं. यह राजनीति का ही कमाल था कि एक समय उनके पीछे पड़ी पुलिस अब उनकी सुरक्षा में मुस्तैद रहती है. गोरखपुर के जटाशंकर स्थित तिवारी हाता में कुछ साल पहले तक बहुत से लोग माथा टेकने और हाजरी लगाने जाया करते थे. अपराध और राजनीति की दुनिया के साथ ही हरिशंकर तिवारी ने ठेके-पट्टे में भी हाथ डाला. एक समय पूर्वांचल के लिए ऐसा भी था कि रेलवे जैसे विभाग के ठेके या तो हरिशंकर तिवारी के गंगोत्री इंटरप्राइजेज को मिलते थे या उनके अपने ही आदमियों को.   




पुलिसिया कार्रवाई के खिलाफ उतरे सड़क पर


योगी आदित्यनाथ के उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री के तौर पर शपथ लेने के अगले ही महीने अप्रैल 2017 में पुलिस ने हरिशंकर तिवारी के तिवारी हाता पर छापेमारी की थी. लेकिन पुलिस के पास कोई तलाशी वारंट नहीं था. हरिशंकर तिवारी ने इसे मुद्दा बना लिया. वो समर्थकों के साथ तिवारी हाते से जिला कलेक्ट्रेट की ओर चल दिए. देखते ही देखते बुजुर्ग हरिशंकर तिवारी के पीछे हजारों लोग चल पड़े. यह देख पुलिस के हाथ-पैर फूल गए. प्रशासन ने उन्हें मनाने की कोशिश की. लेकिन वो नहीं माने और एक कुशल राजनीतिज्ञ की तरह कलेक्ट्रट पहुंचकर जिला पुलिस प्रशासन के खिलाफ धरना दिया. इसका परिणाम यह हुआ कि उत्तर प्रदेश पुलिस यह तक भूल गई कि वो तिवारी हाते में करने क्या गई थी.