Supreme court on Noida Authority: सुप्रीम कोर्ट ने डेवलेपर सुपरटेक के एमरल्ड कोर्ट के ट्विन टावर एपेक्स और सियान के मामले में सुनवाई के दौरान जो तल्ख टिप्पणी नोएडा प्राधिकरण पर की वो कहीं न कहीं प्राधिकरण की कार्य प्रणाली पर कई सवाल खड़े करती है. आप को जानकर हैरानी होगी कि, देश की सर्वोच्च न्यायालय ने नोएडा प्राधिकरण पर टिप्पणी करते हुए कहा कि, आपके आंख, नाक-कान ही नहीं बल्कि आपके चेहरे से भी भ्रष्टाचार टपकता है. कोर्ट ने सभी पक्षों की दलील सुनने के बाद अपना फैसला सुरक्षित रख लिया है. 


रितु महेश्वरी का जवाब


हालांकि. कोर्ट की टिप्पणी पर एबीपी गंगा संवाददाता बलराम पाण्डेय ने नोएडा प्राधिकरण का पक्ष जानने के लिए प्राधिकरण पहुंचे. प्राधिकरण पहुंचने के बाद हमारे संवाददाता ने नोएडा प्राधिकरण की सीईओ रितु महेश्वरी को फोन मिलाया जब उनका फोन नहीं उठा तो उन्होंने उन्हें व्हाट्सएप मैसेज किया और सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणी पर प्राधिकरण का पक्ष जानने की बात कही. मैसेज पढ़ने के बाद जब क्यों का कोई जवाब नहीं आया तो हमारे संवाददाता ने फिर फोन मिलाया जिसके बाद सीईओ रितु महेश्वरी ने फोन उठाया बातचीत का सिलसिला शुरू हुआ. बातचीत के दौरान सीईओ रितु माहेश्वरी ने कहा यह मामला काफी पुराना है उस वक्त वह मौजूद नहीं थीं और इस प्रकरण की उन्हें पूरी जानकारी भी नहीं है. साथ ही उन्होंने यह भी कहा कि कोर्ट में उनके वकील ने प्राधिकरण का क्या पक्ष रखा है, यह भी उन्हें अभी मालूम नहीं है.


इसके बाद उन्होंने कहा कि, मामला सर्वोच्च न्यायालय में विचाराधीन है, लिहाजा उस पर कोई टिप्पणी करना उचित नहीं होगा. प्राधिकरण अपना पक्ष तभी रखेगा जब माननीय न्यायालय का फैसला आ जाएगा.


कोर्ट पहले भी कर चुका है सख्त टिप्पणी


आपको बता दें कि, देश की सर्वोच्च न्यायालय की टिप्पणी से पहले भी नोएडा प्राधिकरण का नाम भ्रष्टाचार को लेकर कई बार सामने आ चुका है. परियोजनाओं के टेंडर से लेकर जमीन अधिग्रहण, मुआवजा वितरण, प्लाट आवंटन और CAG यानी कैग के ऑडिट रिपोर्ट में भी कई हजार करोड़ रुपये का गड़बड़ झाला सामने आ चुका है.  


चीफ इंजीनियर यादव सिंह प्रकरण


चीफ इंजीनियर यादव सिंह भी किसी और प्राधिकरण के चीफ इंजीनियर नहीं थे बल्कि नोएडा प्राधिकरण के ही चीफ इंजीनियर थे, जिनकी जांच सीबीआई कर रही है और उन पर कई सौ करोड़ रुपए के घोटाले का आरोप है. प्राधिकरण के ऐसे कई अधिकारियों के नाम सामने आ चुके हैं जिन पर भ्रष्टाचार में लिप्त होने का आरोप लगा है.


इतना ही नहीं 2019 के चुनावों से पहले ग्रेटर नोएडा में एक जनसभा के दौरान देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी जनसभा को संबोधित करते हुए नोएडा प्राधिकरण के भ्रष्टाचार को लेकर कहा था कि, अन्य सरकारों में नोएडा प्राधिकरण भ्रष्टाचार का सबसे बड़ा अड्डा होता था लेकिन योगी सरकार में इस भ्रष्टाचार को खत्म करने की कवायद की जा रही है.


ऐसे में अब आप जरा खुद ही सोचिए कि, जब देश के प्रधानमंत्री से लेकर देश की सर्वोच्च न्यायालय अगर नोएडा प्राधिकरण पर भ्रष्टाचार को लेकर टिप्पणी कर रहे हो तो प्राधिकरण की कार्यशैली कैसी रही होगी, इसका अंदाजा आप माननीय न्यायालय की टिप्पणी से लगा सकते हैं.


ये था पूरा मामला 


पहले हम आपको बताते हैं कि, आखिरकार यह पूरा मामला है क्या. जिस पर सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने नोएडा प्राधिकरण के खिलाफ तल्ख टिप्पणी की है. 


दरअसल, 2012 में एमराल्ड कोर्ट की RWA ने इलाहाबाद हाईकोर्ट में सुपर टेक बिल्डर और नोएडा प्राधिकरण के खिलाफ एक याचिका दायर की, जिसमें आरोप लगाया कि, बिल्डर बिना किसी नक्शे के अवैध निर्माण कर रहा है. एमराल्ड कोर्ट ओनर रेजीडेंट वेलफेयर एसोसिएशन की याचिका पर सुनवाई करते हुए इलाहाबाद हाईकोर्ट ने 2014 में एपेक्स और सियान टावरों को गलत ठहराते हुए ढहाने का आदेश दिया था. हाईकोर्ट ने सुपरटेक को फ्लैट बुक कराने वालों को पैसा वापस करने का आदेश दिया था, साथ ही प्लान सेंक्शन (मंजूर) करने के जिम्मेदार नोएडा अथारिटी के अधिकारियों के खिलाफ मुकदमा चलाने का आदेश दिया था.


सुप्रीम कोर्ट में दी गई चुनौती


इसके बाद इस फैसले के खिलाफ सुपरटक बिल्डर और नोएडा अथॉरिटी ने सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी. इस पर टावर को गिराने पर रोक लगाते हुए यथास्थिति  बनाये रखने का आदेश दिया गया. साथ ही सुपरटेक से कहा था कि, जो लोग पैसा वापस चाहते हैं, उन्हें पैसा लौटाया जाए. वहीं, सुप्रीम कोर्ट ने एनबीसीसी से दोनों टावरों की जांच कर कोर्ट में रिपोर्ट पेश करने को कहा. एनबीसीसी ने अपनी जो रिपोर्ट पेश की, उसमे साफ कहा कि दोनों टावरों के बीच जरूरी दूरी नहीं है. नियमानुसार टावर का निर्माण अवैध है. 


जस्टिस चंद्रचूड़ ने की सख्त टिप्पणी


जिसके बाद इसी मामले पर सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस चंद्रचूड़ ने नोएडा अथॉरिटी की भूमिका पर सवाल उठाते हुए कहा कि. नोएडा का काम हैरान करने वाला है. जस्टिस चंद्रचूड़ ने कहा कि, जब आपसे रेजीडेंट वेलफेयर एसोसिएशन ने बिल्डिंग का सैंक्शन प्लान मांगा तो आपने सुपरटेक से पूछा और उसने मना कर दिया तो आपने बिल्डिंग प्लान नहीं दिया. अंत में हाईकोर्ट के आदेश पर आपने हाईकोर्ट में प्लान दिया. आप सुपरटेक की मदद ही नहीं कर रहे, आपकी उसके साथ मिलीभगत है. नोएडा एक भ्रष्ट निकाय है, इसकी आंख, नाक, कान और यहां तक कि चेहरे तक से भ्रष्टाचार टपकता है. साथ ही नोएडा प्राधिकरण के वकील से कहा कि, हम लोग भी वकील रहें हैं. याचिकाकर्ता, प्रतिवादी और अथारिटी सभी की ओर से पेश हुए हैं लेकिन आप जिस तरह से प्राधिकरण का पक्ष रख रहे हैं वह उचित नहीं है.


पूर्व RWA अध्यक्ष ने बताया पूरा मामला 


सुप्रीम कोर्ट द्वारा प्राधिकरण पर की गई टिप्पणी को लेकर एबीपी गंगा की टीम  एमराल्ड कोर्ट सोसायटी के पूर्व RWA अध्यक्ष उदय भान सिंह तेवतिया के पास पहुंची, जिन्होंने इस लड़ाई की शुरुआत की थी. एबीपी गंगा से बातचीत के दौरान उदयभान सिंह तेवतिया ने बताया कि, उन्होंने जब बिल्डर से यह जानकारी ली कि आखिरकार जब आपने हमें फ्लैट बेचे इसे ग्रीन बेल्ट बताया था, लेकिन आज अचानक से यहां पर निर्माण क्यों शुरू हो गया, इसका जवाब जब बिल्डर ने नहीं दिया तो उन्होंने नोएडा प्राधिकरण से संपर्क साधा और उससे प्लान और नक्शा मांगा ताकि यह जानकारी हो सके कि, आखिरकार बिल्डर यह निर्माण नियमावली के तहत कर रहा है, लेकिन जब प्राधिकरण ने कोई नक्शा व प्लान उपलब्ध नहीं कराया तो दिसंबर 2012 में उदय भान सिंह तेवतिया के नेतृत्व में एमराल्ड कोर्ट के बायर्स ने याचिका दायर कर न्याय की गुहार लगाई. 


उदय भान सिंह ने कहा कि, दोनों टावर के बीच में महज 9 मीटर का गैप है. सब की 2006 में जो लॉ था उसके हिसाब से दोनों टावरो के बीच में कम से कम 35 मीटर का गैप होना चाहिए था. अगर हम 2010 के नए कानून की बात करें तो उस हिसाब से भी कम से कम दोनों टावरों के बीच में 20 मीटर का फासला होना चाहिए और यही वजह है कि, जब सुप्रीम कोर्ट ने एनडीसीस से जांच कराई तो प्राधिकरण और बिल्डर की सच्चाई सामने आ गई. 


बिल्डरों ने की मनमानी 


इसके बाद हमने वर्तमान में आरडब्ल्यूए अध्यक्ष राजेश कुमार राणा सोसाइटी के कुछ बायर से बात कर यह जानने की कोशिश की कि, आखिरकार सुप्रीम कोर्ट द्वारा की गई टिप्पणी पर उनका क्या कहना है और उन्होंने इस मामले को लेकर कोर्ट में जाने का फैसला क्यों लिया. बातचीत के दौरान राजेश कुमार राणा ने कहा, बिल्डर और प्राधिकरण की मिलीभगत की वजह से उन्हें न्याय नहीं मिल रहा था और एक वक्त ऐसा आ गया जब उनके टावर की हवा पानी और फायर की गाड़ियों के जाने का रास्ता तक बिल्डर ने बंद कर दिया. यही वजह है कि, उन्होंने मिलकर आवाज उठाई और कोर्ट जाने का फैसला लिया और कोर्ट जो भी फैसला करेगा वह उन्हें मान्य होगा.


सुप्रीम कोर्ट द्वारा प्राधिकरण पर की गई टिप्पणी को लेकर उदय भान सिंह तेवतिया ने कहा कि प्राधिकरण पर टिप्पणी माननीय न्यायालय ने की है. वह होनी चाहिए थी. क्योंकि प्राधिकरण की कार्यशैली हमेशा से सवालों के घेरे में रही है. साथ ही, सुपर टेक का पक्ष रखते हुए एडवोकेट विकास सिंह ने बताया कि एपेक्स और सियान टावर में कुल 915 फ्लैट और 21 दुकानें हैं. इसमें शुरू में 633 लोगों ने बुकिंग कराई थी. जिसमें से 248 लोगों ने पैसा वापस ले लिया है. 133 लोगों ने सुपरटेक के दूसरे प्रोजेक्ट में निवेश कर दिया है और 252 लोग अभी बचें हैं जिन्होंने पैसा वापस नहीं लिया है. सुपरटेक को दोनों टावरों से करीब 188 करोड़ रुपये मिले थे, जिसमें से उसने 148 करोड़ रुपये वापस कर दिये हैं.


सुप्रीम कोर्ट की इस तल्ख टिप्पणी ने नोएडा प्राधिकरण के अधिकारियों और प्रदेश सरकार को सोचने पर मजबूर कर दिया कि आखिरकार एक प्राधिकरण के खिलाफ देश की सर्वोच्च न्यायालय ने ऐसी टिप्पणी क्यों की.


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