सोमवार को लोकसभा में 'वंदे मातरम्' के 150 साल पूरे होने पर चर्चा हुई, जिसमें   यूपी की कैराना सीट से समाजवादी पार्टी की सांसद इकरा हसन ने अपनी बात रखी. इस दौरान उन्होंने वंदे मातरम् का अर्थ समझाते हुए सरकार पर हमला बोला और कहा कि आज हमें गीत के भाव का समझना जरूरी है. ये गीत देश की प्रकृति की वंदना करता है. 

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इकरा हसन ने वंदे मातरम् को लेकर मुस्लिमों कठघरे में खड़ा करने पर भी सवाल उठाए और कहा कि हम भारतीय मुसलमान इंडियन बाय च्वाइस हैं, बाय चांस नहीं. वंदे मातरम के किन छंदों का अपनाया जाए ये फैसला नेताजी सुभाष चंद्र बोस और गुरू रविंद्रनाथ टैगोर के परामर्श से हुआ था क्या अब हम उन महान नायकों की समझ पर सवाल उठाएंगे? 

सपा सांसद ने समझाया 'वंदे मातरम्' का अर्थ

सपा सांसद ने कहा कि उन महान हस्तियों में मातरम् के उन छंदों को अपनाया जिन्होंने देश के सभी वर्गों को एक सूत्र में पिरोने का काम किया. आज हमें इस गीत के भाव को समझना आवश्यक है. 

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ये गीत देश के जल, जंगल जमीन, हरियाली और निर्मल हवा की वंदना को समर्पित है, ये भारत के जन-जन की मंगल कामना करता है. कि भारत का हर नागरिक स्वस्थ रहे..सुरक्षित रहे और सम्मान के साथ जी सके. 

सुजलाम सुफलाम का अर्थ है ऐसा देश जहां पर्याप्त जल हो, जहां नदियां जिंदा हों..बहती हों और जीवन देती हों.. लेकिन, अब यमुना का हाल देखिए.. दिल्ली प्रदूषण समिति 2025 की रिपोर्ट बताती है कि यमुना के कई हिस्सों में बीओडी स्तर 127 एमजी के स्तर पर पहुँच चुका है जबकि जीवित नदियों के लिए ये सिर्फ 3 एमजी प्रति लीटर होना चाहिए. 

ये सिर्फ नदी का संकट नहीं बल्कि किसान का संकट है. 'नमामि गंगे' के नाम पर करोड़ों रुपये खर्च हो गए लेकिन सच्चाई ये है कि आज किसान मजबूरी में गंगा और यमुना के किनारे उसी जहरीले पानी में खेती कर रहा है. जब पानी जहर हो जाएगा तो सुफलाम कैसे होगा? 

'मलयज शीतलाम्' में मलयज का अर्थ है मलय पर्वत से बहने वाली ठंडी सुगंधित हवा जो जीवन देती है बीमारी नहीं. क्या आज के भारत की हवा मलयज शीतलाम हैं. बस संसद के बाहर कदम रखिए एक गहरी साँस लीजिए ये हवा नहीं ये ज़हर है जो आपके हमारे फेफड़ों में उतर रहा है. 

हम वो देश हैं जो देश प्रकृति की वंदना तो करती है लेकिन उसकी प्रकृति की जंगल, हवा पेड़ को बचाने के वाले क़ानूनों को खुद ही खत्म कर रही है. अगर हम हवा को साफ नहीं कर पाए तो न सुजलाम बचेगा ना सुफलाम बचेगा. शस्य शामलाम का अर्थ है जहां जमीन उपजाऊ, खेत फसल से भरे हो किसान निराशा में न हो..आज किसान सिर्फ मौसम नहीं प्रदूषण, सिस्टम की नीतियों से मर रहा है. 

सपा सांसद ने कहा कि आज वंदे मातरम् को बुनियाद बनाकर राजनीति की जा रही है लेकिन, ज़मीन पूंजीपतियों को सौंपी जा रही है. आदिवासियों को उनके घरों से हटाया जा रहा है. 'मातरम्' में सिर्फ मातृभूमि की वंदना नहीं इस धरती की हर नारी, बेटी और महिला के सम्मान की बात करता है. लेकिन आंकड़े आप देखेंगे तो देश में हर साल महिलाओं पर अत्याचार बढ़ रहा है. 

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