देहरादून: आज बात करते हैं एक ऐसे वीर सपूत की, जिसने महज 22 साल की उम्र में शहीद होकर देश की सेवा में अपना सर्वोच्च बलिदान दे दिया. उत्तराखंड में चमोली जिले के मूल निवासी एनएसजी कमांडो सुरजन सिंह भंडारी, साल 2002 में गुजरात के अक्षरधाम मंदिर में निर्दोष लोगों की जान बचाते हुए घायल हो गए थे. इसके बाद दो साल तक जिंदगी और मौत के बीच अस्पताल में जूझते रहे और 2004 में देश के लिए शहीद हो गए. आज स्वतंत्रता दिवस के इस मौके पर हम उन्हें सैल्यूट करते हैं.


कमांडो सुरजन सिंह भंडारी को गुजरात के अक्षरधाम मंदिर में हुए आतंकी हमले के दौरान गोली लगी, वो दो साल कोमा में रहे. अंतत: जिंदगी की जंग हार गए. उत्तराखंड के इस वीर ने अक्षरधाम मंदिर में सैकड़ों लोगों की जान बचाई थी. अदम्य वीरता के लिए भंडारी को कीर्ति चक्र दिया गया था. जब उन्हें कीर्ति चक्र मिला वो उस दौरान अस्पताल में भर्ती थे.


शहीद सुरजन ने घर का पूरा खर्चा खुद ही वहन किया
शहीद सुरजन सिंह भंडारी के भाई ने कहा कि वो 6 भाई थे. बचपन गरीबी में बीता. लेकिन जब सुरजन सेना में भर्ती हुए तो उन्होंने पूरे परिवार की देखभाल की. सारा खर्चा चलाया. उत्तम सिंह बताते हैं कि जब उनकी शादी हुई तो शहीद सुरजन ने पूरा खर्चा खुद ही वहन किया. आज उनके बड़े भाई कहते हैं कि शहीद सुरजन ने जीते-जी भी परिवार को पाला और आज भी शहीद होने के बाद सरकार द्वारा मिली कुछ सुविधाओं से उनका परिवार पल रहा है.




शहीद भंडारी की मां अपने मूल गांव चमोली रानो में रहती हैं. जिस मां ने अपना 22 साल का बेटा खोया हो उसका दर्द शब्दों में बयां करना तो आसान नहीं है. लेकिन शहीद सुरजन भंडारी की मां बताती हैं कि सुरजन बचपन से ही पढ़ाई-लिखाई में भी अव्वल थे. उनका बचपन से ही सेना में जाने का सपना था. शहीद सुरजन की बातों को याद करते-करते मां भावुक हो उठीं. शहीद की मां ने सरकार से भी नाराजगी जताई. दरअसल आज सरकार की वादाखिलाफी के चलते भंडारी का परिवार शहीद की मूर्ति रखने और खुद के रहने के लिए उनके सम्मान में दिए गए घर का इंतजार कर रहा है.


शहीद के परिवार को हरीश रावत की सरकार में शहीद की मूर्ति और उनके रहने के लिए देहरादून में जगह दी गई. परिवार ने अपना पैसा लगातार जमीन पर मकान भी बनाया. लेकिन ऑर्डिनेंस फैक्ट्री के ऑब्जेक्शन से मामला कोर्ट में जा पहुंचा. अभी तक इसपर कोई फैसला नहीं हो पाया है. परिवार को शहीद के सम्मान में दी गई जमीन पर परिवार द्वारा बनाया गया घर भी अब खंडहर में तब्दील हो चुका है.


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