Mulayam Singh Yadav : समाजवादी पार्टी के संरक्षक रहे मुलायम सिंह यादव नका सोमवार सुबह करीब 8:16 बजे निधन हो गया. 82 साल की उम्र में उन्होंने दिल्ली से सटे गुरुग्राम के मेदांता अस्पताल में अंतिम सांस ली.  मुलायम सिंह यादव भारतीय राजनीति में एक बड़ा चेहरा रहे और उनके जाने से राजनीति के कई बड़े दिग्गजों ने शोक व्यक्त करते हुए अपनी संवेदनाएं रखी. देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी मुलायम सिंह यादव के निधन को लेकर अपना शोक व्यक्त किया.


समाजवादी पार्टी के संस्थापक मुलायम सिंह यादव जो देश के सबसे बड़े राज्य उत्तर प्रदेश के 3 बार मुख्यमंत्री रहे, इसके साथ ही 8 बार विधायक और 7 बार सांसद बने. लेकिन इसके साथ ही आज देश उन्हें केवल समाजवादी पार्टी के संस्थापक के तौर पर नहीं बल्कि देश के पूर्व रक्षा मंत्री के तौर पर भी याद कर रहा है क्योंकि वह साल 1996 से 1998 तक वह देश के रक्षा मंत्री रहे. और इस दौरान उन्होंने देश के शहीद जवानों के लिए एक ऐसा ऐतिहासिक फैसला लिया जो आज हर एक शहीद जवान के परिवार के लिए सुकून देने वाला है. 1996 में मुलायम सिंह यादव 11वीं लोकसभा के लिए मैनपुरी लोकसभा क्षेत्र से चुने गए और उसी समय उन्हें देश का रक्षा मंत्री बनाया गया. और अपने उस कार्यकाल में उन्होंने देश के शहीद जवानों के लिए एक बड़ा और अहम फैसला लिया जो आज मानवता के लिए एक नजीर है.


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मुलायम के फैसले से पहले क्या होता था?
देश की सरहदों की रक्षा करते हुए यदि आज कोई जवान शहीद हो जाता है तो उसका पार्थिव शरीर पूरे सम्मान के साथ उनके गांव के परिजनों के बीच पहुंचाया जाता है भारत सरकार और सेनाओं द्वारा यह सुनिश्चित किया जाता है. देश के लिए जान गवाने वाले शहीद इस सम्मान में किसी तरीके की कोई कमी ना रहे इसके लिए सभी इंतजाम किए जाते हैं. लेकिन हम आपको बता दे कि साल 1996 से पहले यदि जवान शहीद होता था तो उसका पार्थिव शरीर को उसके गांव तक या परिजनों को नहीं सौंपा जाता था बल्कि सीमा पर ही जवान का अंतिम संस्कार कर दिया जाता था, और जवान की टोपी, वर्दी और अन्य सामान परिजनों को सम्मान के साथ दिया जाता था.


लेकिन समाजवादी पार्टी के संस्थापक मुलायम सिंह यादव के उस समय रक्षा मंत्री रहते हुए उन्होंने यह बड़ा फैसला लिया और साल 1996 से देश में शहीद होने वाले हर एक जवान का पार्थिव शरीर उनके परिजनों को सौंपा जाने लगा और आज पूरे राजकीय सम्मान के साथ उसका अंतिम संस्कार किया जाता है. 1 जून 1996 से 19 मार्च 1998 तक समाजवादी पार्टी के संस्थापक मुलायम सिंह यादव देश के रक्षा मंत्री रहे और इस दौरान उन्होंने एक ऐसा फैसला लिया कि आज उनके फैसले के चलते ही देश के शहीद जवानों का पार्थिव शरीर उनके घर तक परिजनों के बीच पूरे आदर सम्मान के साथ पहुंचाया जाता है. और पूरे राजकीय सम्मान के साथ परिजनों के बीच शहीद जवान का अंतिम संस्कार किया जाता है. 


साल 1996 में हुआ बड़ा बदलाव
सेना के जवानों के शहीद हो जाने के बाद उसका अंतिम संस्कार सीमा पर ही कर दिया जाता था. लेकिन 1996 में मुलायम सिंह यादव के रक्षा मंत्री बनने के बाद उन्होंने एक बड़ा फैसला लिया और उन्होंने कानून बनाया कि अब कोई भी जवान शहीद होता है तो उसका पार्थिव शरीर पूरे सम्मान के साथ उसके घर परिजनों के बीच घर पहुंचाया जाएगा. जहां पर शहीद जवान का पूरे राजकीय सम्मान के साथ अंतिम संस्कार होगा और उस दौरान उस जिले के एसपी और डीएम शहीद जवान के घर जाएंगे. पूरे राजकीय सम्मान के साथ उसका अंतिम संस्कार कराया जाएगा. रक्षा मंत्री रहते हुए मुलायम सिंह यादव के इस फैसले के बाद से आज तक इसी प्रथा को निभाया जाता है.


वहीं सोमवार को देश के पूर्व रक्षा मंत्री मुलायम सिंह यादव के निधन को लेकर रिटायर मेजर जनरल वीके सहगल ने भी शोक व्यक्त किया. उन्होंने कहा कि पूर्व रक्षा मंत्री मुलायम सिंह यादव की तरफ से साल 1996 में जो फैसला लिया गया वह ऐतिहासिक फैसला था और उनके इस फैसले के बाद ही देश की सीमाओं पर शहीद होने वाले जवानों के पार्थिव शरीर को पूरे आदर सम्मान के साथ उनके घरों तक पहुंचाया जाता है. उनका पूरे राजकीय सम्मान के साथ अंतिम संस्कार होता है. ये हमारे लिए एक गौरव की बात है क्योंकि जो जवान देश की अखंडता, संप्रभुता और उसके गौरव के लिए अपनी जान गवाता है उसे ये सम्मान और अधिकार मिलना बेहद आवश्यक है. जिसे ध्यान में रखते हुए पूर्व रक्षा मंत्री मुलायम सिंह यादव ने साल 1996 में फैसला लिया. जबकि अगर दूसरे देशों की बात की जाए अमेरिका जैसे देशों में शुरुआत से ही अपने देश की जवानों के पार्थिव शरीर को पूरे सम्मान के साथ उनके परिजनों को सौंपा जाता रहा है.


इसके साथ ही रिटायर लेफ्टिनेंट जनरल जीएस चंदेल ने एबीपी न्यूज़ से बात करते हुए कहा कि यह फैसला बेहद ही सराहनीय था. यह एक सकारात्मक फैसला था जो जवानों के परिवारों को सुकून देने वाला है, कि वह देश के लिए जान गवाने वाले अपने बेटे, पिता या भाई के अंतिम दर्शन कर सकते हैं और गौरवान्वित महसूस कर सकते हैं. उन्होंने बताया कि 1977 में उन्होंने आर्मी जॉइन की और उस समय ऐसा कोई कानून नहीं था जब शहीद जवान के पार्थिव शरीर को उनके परिजनों को सौंपा जाए. लेकिन 1996 में पूर्व रक्षा मंत्री मुलायम सिंह यादव की तरफ से फैसला लिया गया जो हर एक जवान के लिए भी सुकून देने वाला था.


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